नाहि करब बर हर निरमोहिया।
बित्ता भरि तन बसन न तिन्हका,
बघछल काँख तर रहिया॥
बन-बन फिरथि मसान जगावथि,
घर आंगन उ बनौलन्नि कहिया।
सास ससुर नहिं ननद जेठौनी,
जाए बैठति धिया केकरा ठहिया॥
बढ़ बरद, ढकढोल मोल एक,
संपति भाँगक झोरिया।
भनइ विद्यापति सुन हे मनाइन,
सिब सन दानि जगत के कहिया॥
Gori kathila karab vivha
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