रविवार, 26 अप्रैल 2015

जानकी नवमी : माता जानकी के जन्मदिवस

मिथिला धरोहर, प्रभाकर मिश्रा : वैशाख शुक्ल नवमी के "जानकी नवमी" माता जानकी के जन्म दिवसक रूप मे मनायल जाइत अछि। एही बेरा इ तिथि सोमदिन अर्थात २४ अप्रैल के परत। जनकपुर धाम भारत के पड़ोसी देश नेपाल मे स्थित अछि। नेपाल के राजधानी काठमांडू सँ 400 किमी० दक्षिण पूरब मे बसल अछि। दरभंगा, मधुबनी, आ सीतामढ़ी जिला सँ एही स्थान पर पंहुचवा आसान अछि। 

ओहि समय मिथिला के राजा जनक कहैत छलैथ। भगवती सीता के पिता जनक परम्परा के २१वें राजा छलैथ जिनक नाम सीरध्वज जनक छल। जनक राजा मे सबसँ प्रसिद्ध सीरध्वज जनक छलथि। जे बहुते विद्वान आ धर्मिक विचार के छलथि। 
सीता जन्म के कथा
कथा अछि जे एक बेरा सीरध्वज जनक जी के राज्य मिथिला मे वर्षा नै भेल। लोग अकाल सँ पीड़ित होमय लागल। लोगके दशा देखी के राजा जनक ऋषि-मुनि आ विद्वान के सभा बजेलैंथ। एही सभा मे उपस्थित विद्वान सँ पूछलैंथ जे हम धर्मानुसार शासन करैत छिं मुदा फेर अकाल के की प्रयोजन अछि। एही पर विद्वान कहलैंथ महराज यदि अहाँ स्वंय अपन हाथ सँ हल जोतब तऽ देवराज इन्द्र के कृपा होयत।
विद्वान सभ जेहि स्थान पर हल जोतवा के लेल कहने छलैंथ ओ आय के पुनौरा नामक स्थान अछि। इ सीतामढ़ी जिला मे स्थित एकटा गाम अछि। एही स्थान पर जेखन जनक जी हल चलाबी रहल छलैथ ताहि क्रम मे हुनक हल के नोक जाहि के सीत सेहो कहल जाइत अछि से कुनो धातु सँ जा के टकराबै के आवाज आयल। ओही स्थान सँ हल आगू बैढे नै रहल छल। ताहि पर जनक जी ओही स्थान सँ मैईट हटाबी के देखलैंथ तऽ ओतय सँ एकटा कलश निकलल। कलश के मुह हटेला पर जनक जी देखलैंथ जे ओही मे सुन्दर सन कन्या अछि। जनक जी कन्या के अपन पुत्री बना लेलैंथ और हिनक नाम सीता राखीलैंथ।

राजा जनक जी सीता के अपन संगे अपन राजधानी जनकपुर लऽ एला। एही ठाम सीता के लालन-पालन राजकुमारी जका होमय लागल। सीता जनक जी के पुत्री हेबाक कारणे जानकी कहाबय लगलि। हिनके नाम पर जनकपुर के जानकी धाम कहल जाइत अछि।

राजा जनक के शिव के प्रति हिनक अगाध श्रद्धा छल। हिनक भक्ति सँ प्रसन्न भऽ के भगवान शंकर हिनका अपन धनुष प्रदान केने छलैथ। इ धनुष बहुते भारी छल।

जनक जी के पुत्री सीता धर्मपरायण छलीह ओ नियमित रूप सँ पूजा स्थल के साफ-सफाई स्वयं करैत छलि। एक दिन के बात अछि जनक जी जेखन पूजा करवाके लेल एला तऽ ओ देखलैंथ जे शिव के धनुष एक हाथ मे लऽ के सीता पूजा स्थल के साफ कऽ रहल छलि। एही दृश्य के देखिके जनक जी आश्चर्य चकित रही गेला जे एही अत्यंत भारी धनुष के एगो सुकुमारी केना उठा लेलक। ताहि समय जनक जी तय कऽ लेलैथ जे सीता के पति वैह हेता जे शिव के द्वारा देल गेल एही धनुष पर प्रत्यंचा चढावै मे सफल हेता। भगवान राम एही धनुष के तोड़ी के सीता संग बियाह केने छलैथ।
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