शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2022

दिवाली 2023 विशेष - गणेश लक्ष्मी केर संपूर्ण पूजा विधि

टीम मिथिला धरोहर : दीपावाली के अवसर पर लक्ष्मी माता के प्रसन्न करवा के लेल अहाँ घर के साज-सजावट पर खूब ध्यान दय छी। मुदा साज सजावट बहुत नय अछि। लक्ष्मी माता के प्रसन्न करवा के लेल सबसँ जरूरी अछि जे अहाँक पूजा विधि विधान पूर्वक होय। ताहिलेल दीपावली के राइत गणेश लक्ष्मी केर संग कुबेर महाराज के सेहो पूजा करु।

देवी लक्ष्मी के पूजा होइन और अहाँ विष्णु भगवान के अनदेखी करब त माता एकरा केना सहन क सकती। ताहिलेल दीपावली मे लक्ष्मी माता केर संग विष्णु के सेहो पूजा होइत छनि।
पूजाक संपूर्ण विधि बता रहल छथि पण्डित मुरली झा।

पूजन सामग्री :-
कलावा, रोली, सिंदूर, एकटा नारियल, अक्षत, लाल वस्त्र , फूल, पांच गोट सुपारी, लौंग, पानक पत्ता, घी, कलश, कलश हेतु आम के पल्लव, चौकी, समिधा, कमल गट्टे, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल), फल, बताशा, मिठाई, पूजा मे बैसबाक हेतु आसन, हरैद, अगरबत्ती, कुमकुम, दीपक, रूई, आरती के थारी। कुशा, रक्त चंदनद, श्रीखंड चंदन।

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पर्वोपचार :-
पूजन शुरू करवा सँ पहिले चौकी (बैसय वला पिरहि) धोय के ओहि पर अरिपन (रंगोली) बना लिअ। चौकी के चारु कोन पर चाइर गोट दीप जरा लिअ। जाहि स्थान पर गणेश आ लक्ष्मी केर प्रतिमा स्थापित करवा के होय ओतय किछ चाउर (चावल) राखु। अहि स्थान पर क्रमश: गणेश और लक्ष्मी केर मूर्ति के राखु। लक्ष्मी माता केर पूर्ण प्रसन्नता हेतु भगवान विष्णु केर मूर्ति लक्ष्मी माता के बायां दिस राइख पूजा करवाक चाहि।

आसन बिछा कऽ गणपति आ लक्ष्मी केर मूर्ति के सम्मुख बैस जाउ। ताहि उपरांत अपनेक आ आसन के अहि मंत्र सँ शुद्धि करु- 
"ऊं अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि :॥" 

अहि मंत्र सँ अपना ऊपर आ आसन पर 3-3 बेर कुशा या पुष्पादि सँ छींटू लगाबु फेर आचमन करु – 
ऊं केशवाय नम: ऊं माधवाय नम:, ऊं नारायणाय नम:, 
फेर हाथ धोंउ पुन: आसन शुद्धि मंत्र बाजु - 
ऊं पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता। त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥

शुद्धि और आचमन'कऽ बाद चंदन लगेबाक चाहि। अनामिका उंगली सँ श्रीखंड चंदन लगावैत इ मंत्र बाजू - 
चन्‍दनस्‍य महत्‍पुण्‍यम् पवित्रं पापनाशनम्, आपदां हरते नित्‍यम् लक्ष्‍मी तिष्‍ठतु सर्वदा।

दीपावली पूजन हेतु संकल्प :-
पंचोपचार करबाक बाद संकल्प करबाक चाहि। संकल्प मे पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी कऽ सिक्का या रुपया, नारियल (पैइन वला), मिठाई, आदि सब सामग्री कनि-कनि मात्रा मे लऽ के संकल्प मंत्र बाजू - 
ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ऊं तत्सदद्य श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय पराद्र्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मवर्तैकदेशे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2070, तमेऽब्दे शोभन नाम संवत्सरे दक्षिणायने/उत्तरायणे हेमंत ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे अमावस तिथौ (जो वार हो) रवि वासरे स्वाति नक्षत्रे आयुष्मान योग चतुष्पाद करणादिसत्सुशुभे योग (गोत्र केऽ नाम लिअ) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लिअ) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया– श्रुतिस्मृत्यो- क्तफलप्राप्तर्थं— निमित्त महागणपति नवग्रहप्रणव सहितं कुलदेवतानां पूजनसहितं स्थिर लक्ष्मी महालक्ष्मी देवी पूजन निमित्तं एतत्सर्वं शुभ-पूजोपचारविधि सम्पादयिष्ये।

गणपति पूजन :-
कुनो भी पूजा मे सर्वप्रथम गणेश जी केर पूजा कैल जाय छैन। ताहिलेल अहाँ के सेहो सबसँ पहिले गणेश जी केर पूजा करवाक चाहि। हाथ मे पुष्प लऽ के गणपति के ध्यान करैत। मंत्र पढु- 
गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।आवाहन: ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ।। 
अतेक कैह के पात्र मे अक्षत छोड़ू।

अर्घा मे जल लऽ के बाजु - एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम् ऊं गं गणपतये नम:। रक्त चंदन लगाबू: इदम रक्त चंदनम् लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:, अहि प्रकार श्रीखंड चंदन बाइज के श्रीखंड चंदन लगाबू। ताहि पश्चात सिन्दूर चढ़ाबू "इदंम सिन्दूराभरणं लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:। दर्वा और बेलपत्र सेहो गणेश जी के चढाबु। गणेश जी के वस्त्र पहिराबु। इदं रक्त वस्त्रं ऊं गं गणपतये समर्पयामि।

पूजन के बाद गणेश जी के प्रसाद अर्पित करू: इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं गं गणपतये समर्पयामि:। मिष्टान अर्पित करवाक लेल मंत्र: इदं शर्करा घृत युक्त नैवेद्यं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:। प्रसाद अर्पित करवा के बाद आचमन कराबू: इदं आचमनयं ऊं गं गणपतये नम:। एकर बाद पान सुपारी चढ़ाबू: इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:। आब एकटा फूल लऽ गणपति जी पर चढ़ाबू और बाजू: एष: पुष्पान्जलि ऊं गं गणपतये नम:

कलश पूजन :-
घैला (घड़ा) या लोटा पर मोली बैंध कलश के ऊपर आम कऽ पल्लव राखु। कलश के अंदर सुपारी, दूर्वा, अक्षत, मुद्रा राखु। नारियल पर वस्त्र लपेट कऽ कलश पर राखु। हाथ मे अक्षत और पुष्प लऽ वरूण देवता के कलश मे आह्वान करू। ओ३म् त्तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविभि:। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मान आयु: प्रमोषी:। (अस्मिन कलशे वरुणं सांगं सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि, ओ३म्भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥)

एखर बाद जाहि प्रकार गणेश जी केर पूजा केलौ अछि ताहि प्रकार वरूण देवता के पूजा करू। ताहि उपरांत देवराज इन्द्र फेर कुबेर के पूजा करू।

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लक्ष्मी पूजन :-
सबसँ पहिले माता लक्ष्मी केर ध्यान करू

    ॐ या सा पद्मासनस्था, विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी।
    गम्भीरावर्त-नाभिः, स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।।
    लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः। मणि-गज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः।
    नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।।

एकर बाद लक्ष्मी देवी के प्रतिष्ठा करू। हाथ मे अक्षत लऽ  के बाजू  “ॐ भूर्भुवः स्वः महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ, एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।”
प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराबु: ॐ मन्दाकिन्या समानीतैः, हेमाम्भोरुह-वासितैः स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभिः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः।। इदं रक्त चंदनम् लेपनम् सँ रक्त चंदन लगाबु। इदं सिन्दूराभरणं सँ सिन्दूर लगाबु। ‘ॐ मन्दार-पारिजाताद्यैः, अनेकैः कुसुमैः शुभैः। पूजयामि शिवे, भक्तया, कमलायै नमो नमः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।’ अहि मंत्र सँ पुष्प चढ़ाबू फेर माला पहिराबु। आब लक्ष्मी देवी के 'इदं रक्त वस्त्र समर्पयामि' कही कऽ लाल वस्त्र पहिराबु।

लक्ष्मी देवी केर अंग पूजा :-
बामा हाथ मे अक्षत लऽके दाहिना हाथ सँ कनि-कनि छोडैत जाऊ — ऊं चपलायै नम: पादौ पूजयामि ऊं चंचलायै नम: जानूं पूजयामि, ऊं कमलायै नम: कटि पूजयामि, ऊं कात्यायिन्यै नम: नाभि पूजयामि, ऊं जगन्मातरे नम: जठरं पूजयामि, ऊं विश्ववल्लभायै नम: वक्षस्थल पूजयामि, ऊं कमलवासिन्यै नम: भुजौ पूजयामि, ऊं कमल पत्राक्ष्य नम: नेत्रत्रयं पूजयामि, ऊं श्रियै नम: शिरं: पूजयामि।

अष्टसिद्धि पूजा
अंग पूजन के भांति हाथ मे अक्षत लऽके मंत्रोच्चारण करू। ऊं अणिम्ने नम:, ओं महिम्ने नम:, ऊं गरिम्णे नम:, ओं लघिम्ने नम:, ऊं प्राप्त्यै नम: ऊं प्राकाम्यै नम:, ऊं ईशितायै नम: ओं वशितायै नम:।

अष्टलक्ष्मी पूजन
अंग पूजन आ अष्टसिद्धि पूजा'क भांति हाथ मे अक्षत लऽके मंत्रोच्चारण करू। ऊं आद्ये लक्ष्म्यै नम:, ओं विद्यालक्ष्म्यै नम:, ऊं सौभाग्य लक्ष्म्यै नम:, ओं अमृत लक्ष्म्यै नम:, ऊं लक्ष्म्यै नम:, ऊं सत्य लक्ष्म्यै नम:, ऊं भोगलक्ष्म्यै नम:, ऊं  योग लक्ष्म्यै नम:

नैवैद्य अर्पण :-
पूजन'क पश्चात देवी के "इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि" मंत्र सँ नैवैद्य अर्पित करू। मिष्टान अर्पित करवा'क लेल मंत्र: "इदं शर्करा घृत समायुक्तं नैवेद्यं ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि"। प्रसाद अर्पित करवा'क बाद आचमन कराबू। इदं आचमनयं ऊं महालक्ष्मियै नम:। एकर बाद पान सुपारी चढाबु: इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि। आब एकटा फूल लऽके लक्ष्मी देवी पर चढ़ाबु और बाजु: एष: पुष्पान्जलि ऊं महालक्ष्मियै नम:।

लक्ष्मी देवी केर पूजा'क बाद भगवान विष्णु एवं शिव जी केर पूजा करवा'के चाहि फेर गल्ला (तिजौरी) के पूजा करू। पूजन'क पश्चात सपरिवार आरती और क्षमा प्रार्थना करू-

क्षमा प्रार्थना :-
न मंत्रं नोयंत्रं तदपिच नजाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपिच नजाने स्तुतिकथाः ।
नजाने मुद्रास्ते तदपिच नजाने विलपनं
परं जाने मातस्त्व दनुसरणं क्लेशहरणं                           

विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्याच्युतिरभूत् ।
तदेतत् क्षंतव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति                      

पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः संति सरलाः
परं तेषां मध्ये विरलतरलोहं तव सुतः ।
मदीयो7यंत्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत् क्वचिदपि कुमाता न भवति                          
जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया ।
तथापित्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदप कुमाता न भवति                          
परित्यक्तादेवा विविध सेवाकुलतया
मया पंचाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि
इदानींचेन्मातः तव यदि कृपा
नापि भविता निरालंबो लंबोदर जननि कं यामि शरणं       

श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातंको रंको विहरति चिरं कोटिकनकैः
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ     
                    
चिताभस्म लेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कंठे भुजगपतहारी पशुपतिः
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदं                            
न मोक्षस्याकांक्षा भवविभव वांछापिचनमे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः
अतस्त्वां सुयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडाणी रुद्राणी शिवशिव भवानीति जपतः                     

नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः
किं रूक्षचिंतन परैर्नकृतं वचोभिः
श्यामे त्वमेव यदि किंचन मय्यनाधे
धत्से कृपामुचितमंब परं तवैव                                     

आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि
नैतच्छदत्वं मम भावयेथाः
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरंति                                         

जगदंब विचित्रमत्र किं
परिपूर्ण करुणास्ति चिन्मयि
अपराधपरंपरावृतं नहि माता
समुपेक्षते सुतं                                                      

मत्समः पातकी नास्ति
पापघ्नी त्वत्समा नहि
एवं ज्ञात्वा महादेवि
यथायोग्यं तथा कुरु     

Tags : # Dipawali # Diwali # lakshmi puja # diyabati

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