शनिवार, 29 दिसंबर 2018

मिथिलाक दलान, चौकी आ बाबा'क महत्व

"दलान" मिथिलाक हरेक घर मे घुसबाक सँ पूर्व, ओहि घरक संस्कार-व्यवहार दलान मे देखैत छैक। छोट होय या नमहर, फूइसक चार, खपड़ा या एसबेस्टर या किछ और मुदा दलान मे जे सुकून भेटय छैक ओ नै बदलबाक चाही। मिथिला मे पाहुन अतिथि के सत्कार भलेही घर मे होइत होइन, खाना-पीना-पाहुनगिरी भीतर मे भ जाइत होय मुदा "दलान" समाजिक बनाबय छैक आ संगेह गाँव रहनिहार के भीतर तक पहुँचबाक मौका दैत छैक।

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चौकी - बिना चौकी के "दलान" कहाँ, दलान आ दलान पर चौकी दुनु एक दोसरक पूरक एहन छैक। कुनो न कुनो रूप सँ। लोग आबय छैक बैठैत छैथ आ गोलिया के बैठैय छैथ। फेर तास खेलनाय हो, पंचैती केनाय होय या कुनो भोजक बैसार भेनाइ होय, सबटा काज एहि चौकी पर बैस के तय होइत छैक। जिनकर दलान मे बेसी चौकी, ओतय सबसँ बढियाँ आ झमटगर जुटानी! इहो एकटा अनकहल रीत छैक, लोग सब इहो चाहैत छै जे हमर दलान सुन नै रहैय।  यदि ओ अहिमे सोफा-गद्देदार बेड सेट लगा देता त दलान त रहत मुदा मिथिलाक दलान बला बात नै रहत। गामक लोग के गाँव जँका रहबाक आदत आदत छै, पातर या अखरा पर टिकबाक आदत छै। लकड़ी सं बनल कुर्सी आ चौकीए जँचैत छै। 

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बाबा - जेना कैमरा मे बिना मेमरी कार्ड के फोटो लेला सँ, इन्सर्ट कार्ड के नोटिफिकेशन आबैत छै बिल्कुल ओनाही, बिना बाबा के दलान के देखनाय छै। दलान मे बाबा के भेनाइ, इतिहासक संग वर्तमान के भेनाइ अछि। पूर्वज सँ भविष्य के भेनाइ अछि। एकटा बाबा, एकटा गाँव के बराबर अछि। दलान मे हुनक नै भेनाइ, बताबैत छै जे कैमरा सँ कार्ड हरा चुकल अछि।

(आलेख - प्रभाकर मिश्रा 'ढुन्नी' - फोटो : साभार)

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