गोनू रहथि पंडित लोक। खेती-बाड़ी सँ कम्मे मतलब राखथि। तथापि जे किछु खेत-पथार रहनि ले कोहुना के करथि। हुनक जमीनक एकटा पैघ भाग घरे लग रहनि जाहि मे साग-सब्जीक अलावा आरो बहुत किछु उपजाबथि। लेकिन एहि बेर एहेन संजोग भेल जे हुनका गाम मे जोन नहि भेटलनि। लाख खुरछारी कटलनि एको गोटे हुनका खेत मे काज करब नहि गछलकनि। ओ पत्नी सँ पुछलखिन जे कदाचित ककरो पछिला सालक बोनि तँ नहि बाँकी रहि गेलैक। परन्तु पत्नी नहि मे उत्तर देलथिन। आब गोनू पड़लाह बेस फेर मे। तथापि ओ अपन युक्ति लगौलनि। गाम मे घोषणा कऽ देलनि जे एहि बेर ओ आन गाम सँ जोन अनताह। हुनक ई घोषणा शीघ्रे पूरा गाम मे पसरि गेल। लोक कनफुसकी करय लागल जे एतनी जमीनक लेल गोनू आन गाम सँ जोन अनताह। तथापि गोनू गाम मे रहथि वा आन गाम मे गौंआक लेल ओ हरदम कौतुहलक वस्तु छलाह।
वस्तुत: गोनू आन गाम चलि गेलाह आ घुमलाह ८-१० दिनक बाद। परन्तु हुनका संगे मे कोनो जोन नहि रहनि। ओ भोरे-भोर गाम पहुँचलाह। हुनक गाम पहुँचतहि पूरा गाम शोर भऽ गेल। कोनहुना ओ गौंआ सभ कें बुझा देलनि जे ओ एकठाम पंडिताई मे गेल छलाह आ बहुत रास दान-दक्षिणा लऽ कऽ घुमलाह अछि। दिन भरि एहि सभ मे बीति गेल। भेंट केनहार अबैत रहल आ ओ व्यस्त रहलाह। जहन संध्याक भोजनक बाद गोनू विश्रामक लेल अयलाह तँ पत्नी जिज्ञासा केलथिन जे जाहि धन दऽ अहाँ गौंआ के कहलियौ से कतय अछि ले हमहूँ तँ बुझियै।
इहो पढु - कवि राजकमल चौधरी केर सम्पूर्ण जीवनी
एहि बीच गामक किछु चोर ओही दिन हुनका घर मे चोरि करबाक योजना बनेलक आ सांझे हुनका घरक लग पास मे नुका रहल, ताकि मौका लगितहि हुनक सभटा धन पार कयल जाय। गोनू रहथि सतर्क लोक। ओ परिस्थिति के भांपि लेलनि। तें ओ पत्नी सँ कहलथिन जे हम धन बाड़ी मे गारि देने छियैक, कारण चोरबा सभक कोन ठेकान। पत्नी आग्रह केलखिन जे धन बाड़ी मे कतय अछि से हमरा कहू, परन्तु ओ कहलथिन जे यदि अहाँ के कहि देब तँ अहाँ काल्हिये सँ निकालि-निकालि के खर्च करय लागब। पत्नीक लाख यत्नक बादो गोनू बाड़ीक ओ स्थान नहि बजलाह जाहिठाम धन गाड़ल छल। अंत मे पत्नी तमसा कें सूति रहलीह आ ओहो करोट बदलि सुतबाक उपक्रम करय लगलाह।
चोर सभ सभटा सुनिते रहय। ओ सभ आनन-फानन मे कोदारि अनलक आ धनक लोभ मे लागल बाड़ी तामय। जहन बाड़ी तमनाय लगिचा गेल तँ गोनू बहरेलाह आ आवाज लगेलाह - तों सभ पनपिआई कय कें जयबह आ कि ओहिना। ई सूनि चोरबा सभ लंक लऽ कऽ पड़ा गेल। भिनसरे पत्नी कें जगबैत गोनू कहलथिन - बीयाक जोगार अछि की नहि? पत्नी अचंभित होईत पुछलखिन जे खेत तँ तैयारे नहि अछि तँ बीयाक की करब? गोनू कहलनि जे उठू आ देखू जे बाड़ी कतेक नीक जेंका तैयार अछि। पत्नी उठलीह तँ देखैत छथि जे सत्ते बाड़ी तँ तैयार अछि। ओ गोनू कें कहलनि जे अहाँ मंगनी मे चोरबा सभ सँ पूरा बाड़ी तमबा लेलियैक। गोनू हंसैत बजलाह - जाने पहचान वला लोक सभ छल। उपजा भेलाक बाद साग-सब्जी पठा देबैक।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
अपन रचनात्मक सुझाव निक या बेजाय जरुर लिखू !