बुधवार, 19 मई 2021

मैथिली किस्सा - गोनू झा के कॉमन टेस्ट एग्जाम गोनू झा मरलथि ! सौंसे गाम जंचलथि!!'

गोनू झा केर चालाकी सँ सब गाँव बला जरैय छल मुदा मुंह पर हुनकर 'प्रशंसक' बनल रहैत छल। मुदा गोनू झा के छट्ठी बुद्धि के सन्देह छल जे ई लोगक प्रेम में किछ झूठ फेटल ऐछ। गोनू बहुते दिन सं गाँव-घरक लोग के अनमोल प्रेमक परीक्षा लेबाक पिलान बना रहल छलैथ। अगर गप्प अग्वे गाँव बला के रहितै त गोनू झा अपन जोगार टेक्नोलोजी सं ओकरा तुरत फिट क देतै। मुदा हुनका त अपन घरक लोगक बात में सेहो मिलाबटक महक आबैत छल। से गोनू सोचलैथ जे किया न सबक एके संगे 'कॉमन टेस्ट एग्जाम' ल लेल जाय।

बहुते सोच-विचार क झा जी एक दिन भोरे में उठबे नै केलैथ। सूरुज चढि गेल छप्पर पर मुदा गोनू झा बिछौना नै छडलैथ। तहन ओझाइन के कनि अंदेशा भेलनि। गेलनि जगाबय त ई की.... गे दैय्या.... रे बाप रे बाप...!!! झा जी के मुंह सं त गोज-पोटा निकलल छल आ बेचारे बिछौना सं नीचा एगो कोना में खसल छलैथ। ओझाइन त लगलनी कलेजा पीट के ओतय कानय। बेटा सेहो माँ क आवाज़ सुनि क  बाबू क कमरा में आयल। ओतय के नजारा देख क हुनको कलेजा सेहो दहैल गेल। ओहो लागल फफक-फफक क कानय।


एमहर ओझाइन कलेजा पर दुहत्थी माइर-माइर क चिग्घार रहल छली,.... ओमहर बेटा कहैत जा रहल छल जे हमर सब किछ कियो ल लिए बस हमरा बाबूजी के लौटा दिए। ई महा दुखद खबर सुन के गोनू झा सं हुनका मरणोपरांत अपन खर्चा पर गंगा भेजबाक वादा करय बला मुखिया जी सेहो पहुँच गेला। गोदान के भरोसा देबय बला सरपंच बाबू सेहो। लागल दुन्नु झा जी के बेटा के समझाबय। "आ..हा...हा... ! बड़ परतापी आदमी छलथि। पूरा जवार में हुनो जोर नै। आब विध क यैह विधान छलैय।"

ओमहर जिनगी भरी झा जी के चिलमची रहल अकलू हजाम औरत महाल में ज्ञान बाँटि रहल छल। 'करनी देखब मरनी बेला !' देखलियै गोनू झा जँहिना उमिर भरी सब के बुरबक बनाबैत रहला ओहिना चट-पट में अपन प्राण सेहो चली गेलनि। सबटा भोग बांकिये रैह गेलनि।' सरपंच बाबू ओझाइन के दिलासा देलक, 'झा जी बहुते धर्मात्मा आदमी छलैथ। सीधे सर्ग गेल हेता। आब हुनका पाछु रोला-पीटला के कुनो काज नै ऐछ। किछ रुपैय्या पैसा रखने छी त गौदान करा दियौ। बैकुंठ भेटतैक।'


ओमहर मुखिया जी हुनकर बेटा क बाजल, जल्दी करु बौआ, घर में लाश ज्यादे देर धैर नै रखबाक चाहि। ऊपर सं मौसम सेहो खराब छैक। प्रभुआ आ सीताराम क तोरा गाछी में भेज देलियै गाछ काटए। जल्दी सं ल के चल। फेर दू आदमी सं पकैड़ के झा जी क घर सं बाहर निकालए लागल। मुदा गोनू झा कद काठी के जतेक नमहर छलैथ हुनकर घरक दरवाजा ओतबी छोटा छल। अपन जिनगी में त झा जी झुइक क निकैल जाइत छलैथ। मुदा एखन लोग बाहर क'ए नै पा रहल छल। तहने मोहन बाबू करैक क बजला, रौ सुरजा बढई के बजा। दरवाजा काइट देतैय।

सुरुज तुरते औजार-पाती ल'के हाज़िर सेहो भ गेल तखने झा जी के बेटा बाजी पड़ल, 'रुकु यौ सुरुज भाई ! बाबू जी त आब रहला नै। ओ बड़ शौख सं ई दरवाजा बनवेने छलैथ। एकरा काटला सं हुनकर आत्मा के सेहो तकलीफ हेतैन। आब त ओ दिवंगत  भ गेलैथ। शरीर त हुनकर रहलैन नै। से हुनकर पैरे क बीच सं काइट क छोटा क दियौ। फेर आराम सं निकैल जेतए।'

हूँ क के सुरुज बढई जहने झा जी के ठेहुन पर आरी भिरेलक कि गोनू झा फटाक सं उइठ के बैस गेला.... आ बजला रुक! अखन हम मरल नै छी। ओ त हम तोरा सब लोगक परीक्षा ल रहल छलियौ जे मुंहे पर खाली अपन मरला के बादो। आब त सरपंच बाबू, मुखिया जी, अकलुआ हजाम, सूरज बढ़ई आ हुनकर अपन बेटा... सब के मुंह बसिया जिलेबी जंका लटैक गेल। आखिर सब के कलई जे खुइल गेल छलौ। गोनू झा त नकली मइर के असली जी गेला मुदा तहने सं ई कहावात बैन गेल "गोनू झा मरलथि ! सौंसे गाम जंचलथि!!" 

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