गोसाईं लक्ष्मीनाथ परमहंस (Paramhans Lakshminath Gosain ) मैथिली भाषा के संत परंपरा के सुप्रसिद्ध कवि छलथि। अपन जीवनकाल मे राधा-कृष्ण आ शिव पर अनेक स्तोत्रक रचना केलनि। हुनकऽ ईसाई शिष्य जॉन साहब सेहो हुनकऽ भजन के संकलन प्रकाशित कैलक। गोसाईं लक्ष्मीनाथ गोसाईं परमहंस के जन्म 1793 ई. मे सहरसा जिलाक परसरमा गाँव मे कुजिलवार-दिगौन’ मूल एवं कात्यायन गोत्र के ब्राह्मण कुल में भेलनि। हिनकर पिताजी के नाम पंडित बच्चा झा छलनि। हिनक मूल नाम लक्ष्मीनाथ झा छलनि। ओ महात्मा जे नेनपनहि सँ असाधारण लगैत छलाह, अपन मातृभूमि केँ अपन चौतरफा प्रतिभा सँ प्रकाशित केलनि। हिनका लोग ‘बाबाजी’ कही सेहो संबोधन करैत अछि।
ओ प्रायः गाय चरबा लेल जाइत छलाह। ओतय गहींर पोखरि मे देर तक डुबकी लगाबैत छलाह। हुनका मे साँस रोकबाक एकटा अजब क्षमता छलनि। किंवदंती अछि जे एक दिन पोखरि मे पैघ डुबकी लगेला पर भगवान श्रीकृष्ण प्रकट भऽ गेलाह आ कहलनि जे लक्ष्मीनाथ ! अहाँकेँ गाय चरेबाक लेल नहि भेजलौ अछि। अहाँकेँ समाजके बहुते किछु देबाक अछि, कहल जाइत अछि जे बाबाजीक आँखि ओतहि खुजि गेलनि ।
हुनकर पिता बच्चा लक्ष्मीनाथ के ज्योतिष सीखय लेल दरभंगा जिला अंतर्गत महिनाथपुर गाम के निवासी ज्योतिशाचार्य श्री रत्ते झा के पास पठा देलखिन। ओहि समय मे ज्योतिषक माध्यमे नीक पाइ कमायब संभव छल। मुदा लक्ष्मीनाथ एहि शिक्षाक अतिरिक्त तंत्रिक रत्ते झा सँ तंत्र मे सेहो महारत हासिल केलनि । बचपनहि सँ योग आ वेदान्त दर्शन मे रुचि छलनि। सांसारिक काज मे हुनकर मोन नै लागय छलनी। हुनकर ओहि विरक्ति भाव देखि माय-बाबू चाहैत छलैन जे बियाह भऽ जाय। माता-पिता आ बुजुर्गक बहुते कहला पर कहुआ गामक निवासी शोखदत्त ठाकुरक बेटी सँ विवाह सेहो केलनि। एकटा पुत्र सेहो भेलनि, जिनकर नाम छलनि नेना झा। मुदा युवा लक्ष्मीनाथ सांसारिकता मे रैम नहि सकलाह ।
कालान्तर में एक दिन वैवाहिक जीवन छोड़ि घर सँ बाहर निकलि गेलाह। गुरु के खोज में घनघोर जंगल में भटकय लगलाह। भारत आ नेपालक अनेक धार्मिक स्थानक यात्रा केलनि। एक दिन लक्ष्मीनाथ के जंगल में भटकैत काल नाथ सम्प्रदाय के गुरु मत्स्येन्द्र नाथ के शिष्य गोरखनाथ आ हुनकर शिष्य गुरु लंबनाथ सं भेंट भेलैन। भूखल लक्ष्मीनाथ के प्रेमपूर्वक अमरकंद खुएलखिन आ हुनकर कतेको परीक्षा लेलनि। लक्ष्मीनाथ झा नाम लेला पर ओ ‘झा’ शब्दक अर्थ पूछलनि। लक्ष्मीनाथ कहलनि 'हम उपाध्याय के वंशज छी। झा उपाध्याय सँ बनल अछि। कालान्तर मे उपाध्याय सं 'ओझा, फेर 'झा' बनल। गुरु लंबनाथ बाल लक्ष्मीनाथ के एहि अतुलनीय प्रतिभा आ धैर्य सं प्रभावित भऽ हुनका शिष्य बना कऽ दीक्षा देबय लगलाह। छह मास धरि ओ गुरु सँ योगक सब मुख्य विषयक ज्ञान सीखलनि।
संत शिरोमणि लक्ष्मीनाथ गोसाईं के आइ हुनक भक्त बाबा, बाबाजी, परमहन, गोसाईंजी के रूप में स्मरण करैत छथि। हिनका आठ सिद्धि छलनि - अनिमा, महिमा, गरिमा, लघुमा, प्राकाम्य, वशिष्ठ, स्थायित्व। अपन भजन मंडली ल' क' देशक कोन-कोन मे घुमैत छलाह। शाकरपुरा, लखनौर, महिनाथपुर, मधेपुर, फाटकी, पछी एस्टेट आदि स्थान पर बीच-बीच मे घुमैत छलाह। किछु ठाम तऽ हुनकर कुटी सेहो अछि। मुदा योग सिद्धीक बाद ओ स्थायी रूपसँ बनगाँव मे रहय लगलाह। आइयो ओहि इलाकाक सभ स्त्री-पुरुष नित्य ओतय आबि स्वतः श्रद्धापूर्वक प्रणाम करैत छथि। सहरसा जंक्शन सं मंडनधाम महिषमती नगरी जेबाक बाट मे बनगांव अछि।
देवत्वयुक्त लक्ष्मीनाथ गोसाईं 5 दिसम्बर 1873 कए फटकी कुटी जा कए अपन देह त्याग देलथि। फाटकी कुटी दरभंगा जिला मे अछि। हुनकऽ वास्तविक जन्म तिथि उद्घाटित नै अछि। तैं हुनकऽ जन्म दिवस के बजाए सब साल 5 दिसंबर के एगो बड़ऽ काव्य गोष्ठी के आयोजन करी के बनगाँव कुटी में हुनकऽ पुण्यतिथि मनाओल जाइत अछि। अपन योग शक्ति सँ भगवान आ धर्म केँ लोकक जीवन सँ जोड़लनि।
Jai Laxminath Baba Ki, Bahut asundar
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