एत जप-तप हम की लागि कयलहु,
कथि लय कयल नित दान।
हमर धिया के इहो वर होयताह,
आब नहिं रहत परान।
नहिं छनि हर कें माय-बाप,
नहिं छनि सोदर भाय।
मोर धिया जओं ससुर जयती,
बइसती ककरा लग जाय।
घास काटि लऔती बसहा च्रौरती,
कुटती भांग–धथूर।
एको पल गौरी बैसहु न पौती,
रहती ठाढि हजूर।
भनहि विद्यापति सुनु हे मनाइनि,
दिढ़ करू अपन गेआन।
तीन लोक केर एहो छथि ठाकुर
गौरा देवी जान।
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