या देवी सर्वभूतेषु माँ शक्ति रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
मिथिला धरोहर, प्रभाकर मिश्रा : नवरात्र के अर्थ नौ राइत सँ होइत अछि। एहि नौ राइत मे तीनटा देवी पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ रुप के पूजा होइत अछि जिनका नवदुर्गा कहल जाईत अछि।
शैलपुत्री - Shailputri
नवरात्र के पहिल दिन माँ के रूप शैलपुत्री के पूजा कैल जाइत छनि। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्रीे रूप मे जन्म लेवाक कारणे हिनक नाम 'शैलपुत्री' पड़लनी। माता शैलपुत्री के स्वरुप अति दिव्य छनि। माँ के दाहिना हाथ मे त्रिशूल छनि और बामा हाथ मे कमल'क फूल सुशोभित छनि। माँ शैलपुत्री बैल पर सवारी करैत छथि। माँ के समस्त वन्य जीव-जंतु के रक्षक मानल जाइत छनि। हिनक आराधना सँ आपदा सँ मुक्ति भेटय अछि।
ब्रह्मचारिणी - Brahmacharya
दोसर दिन : माँ भगवती दुर्गा के नौ शक्ति के दोसर स्वरूप छनि माता ब्रह्मचारिणी, ब्रह्म के अर्थ होइत अछि तपस्या, यानी तप के आचरण करै वाली भगवती, जाहि कारणे हिनका माँ ब्रह्मचारिणी कहल गेल छनि। ब्रह्मचारिणी देवी के स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय आ अत्यन्त भव्य अछि। मां के दाहिना हाथ मे जप के माला अछि माँ के बामा हाथ मे कमण्डल अछि। माँ ब्रह्मचारिणी के उपासना सँ भक्त के जीवन सफल भ जाइत अछि।
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चंद्रघंटा - Chandrakanta
तेसर दिन : माँ चंद्रघंटा के स्वरुप अति भव्य छनि। माँ सिंह यानी शेर पर प्रसन्न मुद्रा मे विराजमान छथि। दिव्य रुपधारी माता चंद्रघंटा के दस भुजा छनि। माँ के एहि दसटा हाथ मे ढाल, तलवार, खड्ग, त्रिशूल, धनुष, चक्र, पाश, गदा और बाण सँ भरल तरकश अछि। माँ चन्द्रघण्टा के मुखमण्डल शांत, सात्विक, सौम्य मुदा सूर्यक समान तेज वाला छनि। हिनकर मस्तक पर घण्टे क आकारक आधा चन्द्रमा सुशोभित अछि।
कुष्मांडा - Kushmanda
चारिम दिन : मानल जाइत अछि जे जेखन सृष्टि के अस्तित्व नै छल, तेखन कुष्माण्डा देवी ब्रह्मांड के रचना केने छलथि। अपन मंद-मंद मुस्कान भर सँ ब्रम्हांड के उत्पत्ति करवा के कारणे हिनक कुष्माण्डा के नाम सँ जानल जाइत अछि, ताहि लेल सृष्टि के आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति छथि। माँ के आठ भुजा अछि। ताहि लेल माँ कुष्मांडा के अष्टभुजा देवी के नाम सँ सेहो जानल जाइत अछि। हिनक सातटा हाथ मे क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र आ गदा अछि। आठम हाथ मे सब सिद्धि और निधि के दअ बला जपमाला अछि। माँ सिंह के वाहन पर सवार रहै छथि।
स्कंदमाता - Skandmata
नवरात्र के पांचम दिन : आदिशक्ति के इ ममतामयी रूप अछि। गोद मे स्कन्द यानी कार्तिकेय स्वामी के ल के विराजित माता के इ स्वरुप जीवन मे प्रेम, स्नेह, संवेदना के बनैल रखवा के प्रेरणा दअ अछि। भगवान स्कंद 'कुमार कार्तिकेय' नाम सँ सेहो जानल जाइत अछि। स्कंदमाता प्रसिद्ध देवासुर संग्राम मे देवता के सेनापति बन छलथि। हिनका भगवान स्कंद के माता हेबा के कारणे माँ दुर्गा के एहि स्वरूप के स्कंदमाता के नाम सँ जानल जाइत अछि।
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कात्यायनी - Katyayani
नवरात्र के छठम दिन : कात्यायन ऋषि एतय जन्म लेबाके कारण माता के एहि स्वरुप के नाम कात्यायनी पड़ल। भगवान कृष्ण के पति रूप मे पेबाक लेल ब्रज के गोपि कालिन्दी यानि यमुना के तट पर माँ के आराधना केने छला। ताहिलेल माँ कात्यायनी ब्रजमंडल के अधिष्ठात्री देवी के रूप मे जानल जाइत अछि। माँ कात्यायनी के स्वरूप अत्यंत चमकीला और भव्य अछि। हिनक चाइरटा भुजा अछि। माँ कात्यायनी के दाहिना दिस के ऊपरबला हाथ अभयमुद्रा मे आ नीचला बला वरमुद्रा मे अछि। बामा दिसक ऊपरबला हाथ मे तलवार और नीचला बला हाथ मे कमल-पुष्प सुशोभित अछि। हिनक वाहन सिंह अछि। माँ कात्यायनी शंभु आ निशंभु नाम के राक्षसक संहार क संसार के रक्षा केने छलथि।
कालरात्रि - Kalratri
नवरात्र के सातम दिन : देवी कालरात्रि के वर्ण काजलक समान कारी रंग के अछि जे कारी अमावसक रात्रि के सेहो मात दैअ अछि। माँ कालरात्रि के तीनटा बड़का-बड़का उभरल नेत अछि। जाहिसे माँ अपन भक्त पर अनुकम्पा के दृष्टि राखअ छथि। देवी के चाईर भुजा अछि। दाहिना दिसक उपरका भुजा सँ महामाया भक्त के वरदान द रहल छथि। और नीचलका भुजा सँ अभय के आशीर्वाद प्रदान क रहल अछि। बामा भुजा मे तलवार और खड्ग के माँ धारण केने छथि। देवी कालरात्रि के केश खुलल अछि और हावा मे लहरा रहल अछि। देवी कालरात्रि गर्दभ पर सवार छथि।
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महागौरी - Mahagauri
नवरात्र के आठम दिन : भगवान शिव के वरण के लेल कठोर संकल्प लेने छलथि। एहि कठोर तपस्या के कारणे हिनक शरीर एकदम कारी पड़ी गेल। हिनक तपस्या सँ प्रसन्न और संतुष्ट भ के जेखन भगवान शिव हुनक शरीर के गंगाजी के पवित्र जल सँ मैलकर धोलथी त ओ विद्युत प्रभाक समान अत्यंत कांतिमान-गौर भ उठलि। तहिये सँ हिनक नाम महागौरी पड़लनि। माँ महागौरी के वर्ण पूर्णतः गौर अछि। एहि गौरता के उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल सँ देल गेल अछि। हिनक आयु आठ वर्ष के मानल गेल छनि। हिनक समस्त वस्त्र आ आभूषण आदि सेहो श्वेत होइत अछि। महागौरी के चाईरटा भुजा अछि। हिनक वाहन वृषभ यानी बैल अछि। माँ गौरी के ऊपरक दाहिना हाथ मे अभय मुद्रा और नीचला बला दाहिना हाथ मे त्रिशूल अछि। ऊपरबला बामा हाथ मे डमरू और नीचलका बामा हाथ मे वर-मुद्रा अछि। हिनक मुद्रा अत्यंत शांत अछि।
सिद्धिदात्री - Siddhidatri
नवरात्र के आखिर दिन : देवी पुराणक अनुसार भगवान शिव हिनके कृपा सँ सिद्धि के प्राप्त केने छलथि। हिनके अनुकम्पा सँ भगवान शिव के आधहा शरीर देवी के भ गेल छल। एहि कारणे भगवान शिव संसार मे अर्धनारीश्वर नाम सँ प्रसिद्ध भेला। माता सिद्धीदात्री चाईर टा भुजा वाली छथि। हिनक वाहन सिंह अछि। माता सिद्धीदात्री कमल पुष्प पर आसीन होइत छथि।हिनक दाहिना नीचलका भुजा मे चक्र , ऊपर वला भुजा मे गदा और बामा दिस नीचला वला हाथ मे शंख और ऊपरका वला हाथ मे कमलपुष्प अछि। देवी सिद्धिदात्री के माँ सरस्वती के स्वरुप मानल जाइत अछि। जे श्वेत वस्त्र मे महाज्ञान और मधुर स्वर सँ भक्त के सम्मोहित करय छथि। मधु कैटभ के मारय के लेल माता सिद्धिदात्री महामाया फैलेने छलथि, जे देवी के अलग-अलग रूप राक्षस के वध केलथि।
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