मंगलवार, 23 मई 2023

गोनू झाक कहानी : गुलाबक सुगन्ध

मिथिला के हर घर के आँगन में बेला, चमेली, कचनार, जूही, कनक, कटेली चंपा, रातरानी सन फूल के पौधा भेटे जायत।

एक दिन मिथिलाक राजा अपन पुष्पवाटिका मे टहैल रहल छलाह। हुनकर मंत्री लोकनि सेहो हुनका संग छल। कोनो कारणवश जखन गोनू झा महाराज सँ भेंट करय आयल छलाह तऽ महाराज हुनका पुष्पवाटिका मे ओतहि बजौलनि।

महाराज अपन मंत्री सं गप्प करैत रहलाह, किछु निर्देश दैत रहलाह। गोनू झा दुनू गोटेक संग टहलैत रहलाह। मंत्री मोने-मोन खुश भऽ रहल छलाह जे महाराज गोनू झा के महत्व नहि दऽ रहल छथिन्ह।

मंत्री के निर्देश देला के बाद महाराज अचानक मंत्री के कहलखिन - "मंत्री जी, हम जखन कखनो एहि फुलवाड़ी में अबैत छी तऽ हम मंत्रमुग्ध भऽ जाइत छी।" जे पौधा लग जाउ, ओहि पौधा सँ कोनो विशेष सुगन्धक अनुभूति मोन मे भरि जाइत अछि। 

मुदा एहि सभ फूल मे हमरा गुलाब बेसी नीक लगैत अछि। देखबा मे सेहो सुन्दर आ सुगंध एहन जे म्लीन मोन के सेहो प्रसन्न कऽ दैत अछि। की एहन कोनो उपाय अछि जे हम कोनो पौधा लग जाऊ, ओतय सं गुलाबक सुगंध टा भेटय?"

महाराजक बात सुनि मंत्री अवाक भऽ गेला। हुनका बुझा नै रहल छलनी जे महाराज केँ कोन जवाब देबाक चाही। भला कचनारसँ गुलाबक सुगन्ध कोना आबि सकैत अछि। कोनो फूल अपने सुगंध देत। महाराज के ई कि सूझेलनी? 

अचानक मंत्री जी के एहि विपत्ति के टालबाक एकटा विचार आबि गेलनि। ओ तुरन्त महाराज सँ बजल-" महाराज! गोनू झा के रहिते एहि प्रश्नक उत्तर हम दी, इ उचित नहि बुझाइत अछि !"

महाराज बुझि गेलाह जे मंत्री जी हुनका कोनो उपाय बतेबाक स्थिति मे नहि अछि, ताहि लेल ओ बात टाईल रहल अछि। ओ मोने-मोन मे मुस्कुरेलनि आ फेर गोनू झा दिस तकलनि ।

गोनू झा बिना एक क्षण गमेने बजलाह- "महाराज! साँझ अस्त भऽ रहल अछि।" अहाँकेँ ठंढा लागि सकैत अछि। हम तुरन्ते अहाँक दुशाला लऽके आबय छी," आ महाराजकऽ सहमति बिना घुमि कऽ महल दिस विदा भेलाह। महाराज मंत्रीक संग फूलबारी मे टहलैत रहलाह, जेना पहिने टहलैत छलाह।

थोड़ेक काल मे गोनू झा मंद-मंद मुस्कुराइत ओतय आबि गेलाह। महाराज लग रुकि कऽ आदरपूर्वक दुशाला हुनका कान्ह पर पसाईर के राखि देलनि ।

महाराज दुशालाके एक छोर के स्वयम छाती सं लपेटिते दोसर छोर के अपन कान्ह पर राखि लेलनि। ओहि समय महाराज गुलाबक बीचे छलाह। गुलाबक सुगंध मे सराबोर! महाराज किछु काल ओतय चलैत रहलाह आ फेर आन फूल दिस बढ़ैत गोनू झा सँ पुछलखिन - "पंडित जी! की कोनो उपाय अछि जे हम जाहि फूल लग जांऊ ओहिसं गुलाबक सुगंध टा आबय ?"

गोनू झा मुस्कुराइत बजलाह - "अहाँ केँ जवाब भेटत महाराज!" थोड़ेबे काल मे ओ सभ फुलवारीक एहन छोर पर पहुँचि गेलाह, जतय बेला-जूही-चमेली सन उज्जर फूलक छटा बिखरल छल, मुदा महाराज केँ ओतहु गुलाबक सुगंध भेटि रहल छलनि। मधुर-मधुर सुगंध !  महाराज मंत्री सँ पुछलखिन - "एहि फूल सँ केहन सुगन्ध आबि रहल अछि?"

मंत्री बजलाह -" बेला-जुहीक मिश्रित सुगंध!"

महाराज गोनू झा केँ सेहो इएह प्रश्न दोहरौलनि।

गोनू झा महाराजक प्रश्नक अर्थ बुझी गेलैथ। 

ओ बजलाह - "महाराज, फूल मे तऽ वैह सुगंध होइत छैक जे स्वाभाविक रूप सँ ओहि मे रहैत छैक, मुदा अहाँ जतय कतौ भी जायब ओतय अहाँके गुलाब मधुर सुगंध भेटत।"

अहाँ आदेश देने रही जे हम किछु एहन उपाय बताबी जे अहाँ एहि फुलवाड़ी मे जतय कतौ भी जाउ, अहाँके गुलाबक सुगंध भेटैय।

हम ओ उपाय कऽ देने छी ।"

एखन धरि मंत्री जी के उम्मीद छल जे एहि उपाय के मामला मे गोनू झा के मुँह लटकबैत देखब, मुदा गोनू झा के बात सुनला के बाद हुनकर चेहराक रंग उतैर गेलैन।

महाराज पुछलखिन - " की सत्ते अहाँ एहन किछु केलौ हन ? हम एखनो गुलाबक सुगन्धक अनुभव कऽ रहल छी।

गोनू झा मुस्कुराइत बजलाह - "हम किछु नहि केलहुँ।" बस, थोड़बे रास गुलाबक इत्र अहाँक दुशाला पर लगा देने छी।"

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