दुल्लहि तोर कतय छथि माय,
कहुँन ओ आबथु एखन नहाय।।
वृथा बुझथु संसार-विलास,
पल-पल नाना भौतिक त्रास।
माए-बाप जजों सद्गति पाब,
सन्नति काँ अनुपम सुख आब।
विद्यापतिक आयु अवसान,
कार्तिक धबल त्रयोदसि जान।
रचनाकार - विद्यापति
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