गुरू चरणमे अभिनन्दन। 
गुरूदेव चरणमे अभिनन्दन। 
अपने मे मातृ ममत्व सदा, 
माताक हृदय मे गुरूक रूप। 
जेहि ठाम न भाव अहाँक गुरू,
 से हृदय सदा थिक अन्धकूप। 
जे गुरूक कृपा नहि पाबि सकय, 
तकरे होइत अछि दुर्गजन॥
गुरूदेव चरण...
 छी स्वयं अहाँ श्री ब्रह्म रूप, 
छथि ब्रह्म अहीं मे व्याप्त सदा। 
ब्रह्मण्य देव छी अहीं सदा, 
अपने श्रृष्टिक सभ मर्यादा। 
तें अहिंक भावसँ प्रमुदित अछि, 
सभ शिष्य समूहक स्पन्दन। 
गुरूदेव ...
अपने छी गंगाजल समान, 
शिव शंभु जटा कैलाशधाम।
 गुरूदेव महेश्वर स्वयं अहाँ, 
अपनेक तुल्य नहि अछि प्रमाण। 
गंगासागर सन छी विशाल, 
कल कल निनादिनी अभिगुंजन। 
गुरूदेव ....
अपने श्री विष्णु समान गुरू, 
दर्शन मे महासुदर्शन छी। 
सर्वश्व शक्ति- सम्पन्न अहाँ, 
श्रृष्टिक अनुपम आकर्षक छी। 
कमलाशन हे श्री कमलनेत्र, 
पालन कर्ता संहार सृजन। 
गुरूदेव...
आरती हेतु सत् - सत् प्रदीप, 
राखल अछि अपने केर समीप। 
महिमा अपार के गिाबि सकत, 
कवि कोविद हो वा स्वर महीप। 
कण कण मे महिमा आछि व्यापित, 
भगवान भक्त मे अनुबंधन। 
गुरूदेव चरणमे अभिनन्दन॥
गुरूदेव चरणमे अभिनन्दन॥
गीतकार: मैथिली पुत्र प्रदीप (प्रभुनारायण झा)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
अपन रचनात्मक सुझाव निक या बेजाय जरुर लिखू !