शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021

जखन लेल हरि कंचुअ अचोडि | विद्यापति

जखन लेल हरि कंचुअ अचोडि,
कत परि जुगुति कयलि अंग मोहि।

तखनुक कहिनी कहल न जाय,
लाजे सुमुखि धनि रसलि लजाय।

कर न मिझाय दूर दीप,
लाजे न मरय नारि कठजीव।

अंकम कठिन सहय के पार,
कोमल हृदय उखडि गेल हार।

भनह विद्यापति तखनुक झन,
कओन कहय सखि होयत बिहान।

रचनाकार - विद्यापति

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