रति-सुबिसारद तुहु राख मान।
बाढ़लें जौबन तोहि देब-दान ।
आबे से अलप रस न पुरब आस।
थोर सलिल तुअ न जाब पियास ।
अलप अलप रति एह चाह नीति।
प्रतिपद चांद-कला सम रीति ।
थोर पयोधर न पुरब पानि।
नहि देह नख-रेख रस जानि ।
भनइ विद्यापति कइसनि रीति।
कांच दाड़िम फल ऐसनि पिरीति ।
रचनाकार - विद्यापति
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