शनिवार, 2 अक्तूबर 2021

सखि हे हमर दुखक नहि ओर - विद्यापति Sakhi he hamar dukhak nhi or

सखि हे हमर दुखक नहि ओर,
इ भर बादर माह भादर सून मंदिर मोर।
झम्पि घन गर्जन्ति संतत भुवन भर बरसंतिया,
कंत पाहुन काम दारुण सघन खर सर हंतिया।
कुलिस कत सत पात मुदित मयूर नाचत मतिया,
मत्त दादुर डाक डाहुक फाटी जायत छातिया।
तिमिर दिग भरि घोर जामिनि अथिर बिजुरिक पांतिया,
विद्यापति कह कइसे गमओब हरि बिना दिन -रातिया।

रचनाकार : विद्यापति

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