सखि हे हमर दुखक नहि ओर,
इ भर बादर माह भादर सून मंदिर मोर।
झम्पि घन गर्जन्ति संतत भुवन भर बरसंतिया,
कंत पाहुन काम दारुण सघन खर सर हंतिया।
कुलिस कत सत पात मुदित मयूर नाचत मतिया,
मत्त दादुर डाक डाहुक फाटी जायत छातिया।
तिमिर दिग भरि घोर जामिनि अथिर बिजुरिक पांतिया,
विद्यापति कह कइसे गमओब हरि बिना दिन -रातिया।
रचनाकार : विद्यापति
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