गौरी कोना कऽ रहबइ हे, पर्वत ऊपर बाघ साँप लग कोना,
डाकिन सापिन भूत भयंकर प्रेत पिशाच पड़ोसी,
सब मिलि जग संहार करै छथि तैओ सब निर्दोषी,
खसत जखन चट्टान बरफ के अंगना बीच अनेको,
माथ-कपार कोना कड बाँचत अस्पताल नहि एको,
एको चुटकी अन्न न घर में कोना जियब की खायब,
नहि खेती नहि सर्विस करता कहति कहति मरि जायब,
तेसर आँखिमे आगिक ज्वाला कंठमे भरल हलाहल,
स्नेहलता एक हरियर रहता सिचथि सदा गंगाजल,
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