परबत पर शिवजी खेलथि होरी।
अपनहि हाथ भांग पिबि भोला,
सबके पियाबथि बरजोरी।
भूत-पिशाचिनि-डाकिनि-शाकिनि,
गाबथि फाग भेल भोरी।
झोंकल शंभु अबीरक बदला,
विभुति उठा झोरी-झोरी।
सबके आँखि कान-मुँह भरि गेल,
आपस उठल कपर फोड़ी।
स्नेहलता शिव रूसि पड़यला,
गौरी मनाबथि करजोरी।
देखि तपस्या घोर अति भेला प्रकट महेश ।
धाय धयल रानी सहित चरण कमल मिथिलेश ।।
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