शनिवार, 28 मार्च 2015

सत्य नारायण व्रत कथा : Satyanarayan Puja

मिथिला धरोहर: मिथिला सहित देश आ विदेश पर्यन्त मे 'सत्य नारायण भगवान्' ( Satyanarayan Vrat, Katha ) केर पूजाक विशेष आस्था-आधार हिन्दू मानव-संसार लेल अछि। एहि पूजा मे व्रतक धारण, भगवानक पूजा आ कथा-श्रवण उपरान्त धूप-दीप-आरती, चरणामृत आ प्रसाद-ग्रहणक विशेष विधान अछि। मिथिलाक घर-घर मे ई पूजा कैल जाइछ। कतेको सुशिक्षित, सुसंस्कृत आ सुसंगठित समुदाय मे एहि पूजाक आयोजन नियमित रूप सँ आपस मे पार लगाकय कैल जाइछ। बेसी बेर पुर्णिमा दिन या फेर संक्रान्तिक अवसर पर सत्य नारायण भगवानक पूजा-अर्चना कैल जाइछ। मिथिला मे तऽ एहि पूजा सँ लगभग हरेक शुभ-अशुभ कर्मकाण्ड केँ पूर्णाहूति जेकाँ सेहो देल जाइछ। जेना, कोनो श्राद्ध-कर्म उपरान्त सत्य नारायण
भगवानक पूजा केलाक बाद यज्ञक पूर्णाहूति मानल जाइछ। तहिना उपनयन, मुंडन, घरवास, आदि अवसर पर सेहो सत्य नारायण भगवानक पूजा कैल जाइछ। लोक भले प्रवास पर कियैक नहि बसैत हो, मुदा सत्य नारायण भगवानक पूजा नियमित करिते टा अछि। एहि पूजाक विधान, नियम आ व्रत आदिक विधान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अछि। लेकिन एकटा बातक कमी सब दिन देखलहुँ जे कथा-श्रवण समय बहुतो बेर लोक-आस्था संस्कृत नहि बुझि पेबाक कारणे निरसताक अनुभूति करैत अछि, या फेर ओहेन गहिंर भक्ति-भावनाक जागृति नहि होइत छैक जे यथार्थ मे आवश्यक छैक। कोनो पूजाक महत्त्व भक्ति-भाव संपन्नता सँ आत्मिक प्रसन्नताक उपलब्धि होइत छैक। यैह निमित्त एतय एक बेर कथा वृत्तान्त अपन मैथिली भाषा मे राखि रहल छी। 

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एहि पूजाक मूल उद्देश्य समस्त दु:खसँ मुक्ति होइत अछि। कलिकाल मे सत्य केर पूजा विशेष फलदायी होइत अछि। मनोवांछित फल हेतु कबुला कैला पर या फेर नियमित रूप सँ एहि कथाक आयोजन कैल जाइछ। एहि मे व्रत-पूजा आ कथा दुइ भाग होइत अछि। स्कंधपुराणक रेवाखंड सँ संकलित अछि ई व्रत-कथा। 

विधि:-
सत्य नारायण व्रत कथा पुस्तिकाक प्रथम अध्याय मे यैह कहल गेल अछि जे सत्य नारायण भगवानक पूजा कोना कैल जाय। जे व्यक्ति सत्य नारायण केर पूजाक संकल्प लैत अछि ओ दिन भरि व्रत रखैत अछि। पूजन स्थल केँ गायक गोबर सँ पवित्र कय, चिकैन माटि सँ ठाउँ पारि ओहि पर पिठार-सिनूर सँ अहिपन बनाय ओतहि पूजाक पिढिया (चौकी) रखैत अछि। ओहि पिढियाकेँ सेहो पवित्र कय पीठार-सिनुर सँ अहिपन पारल जाइछ। पुन: चारू कोण पर दिवारी मे दीप जराओल जाइछ। कतेको ठाम पिढियाक चारूकात केराक गाछ सेहो लगाओल जाइछ। पुन: एहि पिढिया पर भगवान श्री सत्य नारायण केर प्रतिमा स्थापित कैल जाइछ। मिथिला मे शालीग्राम रूपी नारायणक पूजा घरे-घर होइत रहल अछि, अत: शालीग्राम भगवान केँ ओतय विराजमान कय देल जाइछ। पूजा करैत काल सबसँ पहिने गणपति केर पूजा कैल जाइछ, पुन: इन्द्रादि दशदिक्पालक आ क्रमश: पंच लोकपाल, सीता सहित राम आर लक्ष्मणक, राधा-कृष्णक। हिनका सबहक पूजाक पश्चात सत्यनारायण भगवानक पूजा कैल जाइछ। तेकर बाद लक्ष्मी माताक आर अंत मे महादेव तथा ब्रह्माजीक पूजा कैल जाइछ। मिथिला मे एहि अवसर कलश केर पूजा सेहो कैल जाइछ। सत्यनारायण भगवानक अतिरिक्त सब भगवान् केर पूजा केराक पात पर भोग दैत कैल जाइछ। ब्रह्माजीकेँ मिथिलाक माटिये पर पूजा देल जाइछ। ई विशिष्टता मात्र जगज्जननी एतुका माटि सँ अवतरित होयबाक कारणे मान्य भेल अछि। एहन विधान अन्यत्र कतहु नहि। ई मिथिलाक विशिष्टता थीक। पूजाक बाद श्री सत्यनारायण भगवानक व्रतकथा पुरोहित जी सँ सुनल जाइछ। कथा-वृत्तान्त आगाँ उल्लेख कैल गेल अछि। तदोपरान्त सब देवताक आरती कैल जाइछ और चरणामृत लैत प्रसाद वितरण कैल जाइछ। पुरोहित जी केँ दक्षिणा आ वस्त्रादि देलाक बाद भोजन करायल जाइछ। पुराहित जी केँ भोजन करेला पश्चात हुनका सँ आशीर्वाद लैत व्रती अपनो स्वयं भोजन करैत अछि। कतेको लोक एहि अवसर स्वजन्य-स्वरुचिभोज सेहो करैत अछि। 
कथा:-
सत्यनारायण व्रतकथाक पूरा संदर्भ यैह अछि जे पुराकालमे शौनकादि ऋषि नैमिषारण्य स्थित महर्षि सूत केर आश्रम पर पहुंचला आ ऋषिगण महर्षि सूत सँ प्रश्न करैत छथि जे लौकिक कष्टमुक्ति, सांसारिक सुख समृद्धि एवं पारलौकिक लक्ष्य केर सिद्धिक लेल सरल उपाय कि अछि? महर्षि सूत शौनकादि ऋषिगण सँ बतेला जे एहने प्रश्न नारद जी सेहो भगवान् विष्णु सँ केने छलाह। भगवान् विष्णु नारद जी केँ बतेलनि जे लौकिक क्लेशमुक्ति, सांसारिक सुखसमृद्धि एवं पारलौकिक लक्ष्य सिद्धिक लेल एक्कहि टा राजमार्ग अछि, ओ छी सत्यनारायण व्रत। सत्यनारायण केर अर्थ होइछ सत्याचरण, सत्याग्रह, सत्यनिष्ठा। संसार मे सुखसमृद्धिक प्राप्ति सत्याचरणद्वारा मात्र संभव होइछ। सत्यहि ईश्वर छथि। सत्याचरणक अर्थ होइछ ईश्वराराधन, भगवत्पूजा।

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सत्यनारायण व्रत कथाक पात्र दुइ कोटि मे अबैत छथि, निष्ठावान सत्यव्रती एवं स्वार्थबद्ध सत्यव्रती। शतानन्द, काष्ठ-विक्रेता भील एवं राजा उल्कामुख निष्ठावान सत्यव्रती छलाह। ई पात्र लोकनि सत्याचरण एवं सत्यनारायण भगवानक पूजार्चा करैत लौकिक एवं पारलौकिक सुखक प्राप्ति केलनि। शतानन्द अति दीन ब्राह्मण छलाह। भिक्षावृत्ति अपनाबैत ओ अपना संग अपन परिवारक भरण-पोषण करैत छलाह। अपन तीव्र सत्यनिष्ठाक कारणे ओ सत्याचरणक व्रत लेलनि। भगवान् सत्यनारायणक विधिवत् पूजार्चा केलनि। ओ इहलोकेसुखंभुक्त्वाचान्तंसत्यपुरंययौ (एहि लोक मे सुखभोग एवं अन्त मे सत्यपुरमे प्रवेश) केर स्थिति मे अयलाह। काष्ठ-विक्रेता भील सेहो अत्यन्त निर्धन छल। कोनो तरहें लकडी बेचिकय अपना संग अपन परिवारक पेट पोसैत छल। ओहो सम्पूर्ण निष्ठाक संग सत्याचरण केलक; सत्यनारायण भगवान् केर पूजार्चा केलक। राजा उल्कामुख सेहो निष्ठावान सत्यव्रती छला। ओ नियमित रूप सँ भद्रशीला नदीक कंछैर सपत्नीक सत्यनारायण भगवानक पूजार्चा करैत छल। सत्याचरण टा हुनकर जीवनक मूलमन्त्र छल।
दोसर दिशि साधु वणिक एवं राजा तुंगध्वज स्वार्थबद्धकोटि केर सत्यव्रती छल। स्वार्थ साधन हेतु बाध्य होइत ई दुनु पात्र सत्याचरण केलक; सत्यनारायण भगवानक पूजार्चा केलक। साधु वणिकक सत्यनारायण भगवान् मे निष्ठा नहि छल। सत्यनारायण पूजार्चाक संकल्प लेला बाद ओकर परिवार मे कलावती नामक कन्या-रत्नक जन्म भेलैक। कन्याजन्मक पश्चात ओ अपन संकल्प केँ बिसरा देलज आर सत्यनारायण भगवानक पूजार्चा नहुि केलक। ओ पूजा-कर्म कन्याक विवाहक समय धरि तक लेल टारि देलक। कन्याक विवाह-अवसर पर सेहो ओ सत्याचरण एवं पूजार्चा सँ मुह मोड़ि लेलक आ जमायक संग व्यापार-यात्रा पर निकैल गेल। दैवयोग सँ रत्नसारपुरमे श्वसुर-जमायक ऊपर चोरीक आरोप लागि गेल। ओतय हुनका लोकनि केँ राजा चंद्रकेतुक कारागार मे रहय पड़ल। श्वसुर आर जमाय कारागार सँ मुक्त भेल तऽ श्वसुर (साधु वाणिक) एक दण्डीस्वामी सँ झूठ बाजि देलक जे ओकर नाव मे रत्नादि नहि, मात्र लता-पत्र (फूल-पत्ती) टा अछि। एहि मिथ्यावादनक चलते ओकरा संपत्ति-विनाशक कष्ट भोगय पड़ि गेल। अन्तत: बाध्य भऽ कऽ ओ फेर सँ सत्यनारायण भगवानक व्रत केलक। साधु वाणिक केर मिथ्याचारक कारण ओकर घरो पर भयंकर चोरी भऽ गेलैक। पत्नी-पुत्र दाना-दानाक मोहताज बनि गेलैक। तही बीच ओकरा सबकेँ साधु वाणिकक सकुशल घर आपस अयबाक सूचना भेटलैक। ओहि समय कलावती अपन माता लीलावतीक संग सत्यनारायण भगवानक पूजार्चा कय रहल छल। समाचार सुनिते देरी कलावती अपन पिता आ पति सँ भेट करबाक लेल दौड़ि गेल। एहि हड़बड़ी मे ओ भगवानक प्रसाद ग्रहण करनाय बिसैर गेल। प्रसाद नहि ग्रहण करबाक कारण साधु वाणिक और ओकर जमाय नाव सहित समुद्र मे डूबि गेल। फेर अचानक कलावतीकेँ अपन गलतीक ध्यान पड़ल। ओ दौड़ल-दौड़ल घर आयल और भगवानका प्रसाद लेलक। तेकर बाद सब किछु ठीक भऽ गेलेक।

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लगभग यैह स्थिति राजा तुंगध्वजक सेहो भेलैक। एक स्थान पर गोपबन्धु भगवान् सत्यनारायणक पूजा कय रहल छल। राजसत्ताक मदांध तुंगध्वज नहि तऽ पूजास्थलपर गेल आ नहिये गोपबंधु द्वारा प्रदत्त भगवानक प्रसाद ग्रहण केलक। अही कारण ओकरो कष्ट भोगय पड़ि गेलैक। अंतत: बाध्य होइत ओहो सत्यनारायण भगवानक पूजार्चा केलक आ सत्याचरणक व्रत लेलक। सत्यनारायण व्रतकथाक उपर्युक्त पांचो पात्र मात्र कथापात्रहि टा नहि, ओ मानव मनक दुइ प्रवृत्तिक प्रतीक थीक, ई प्रवृत्ति अछि, सत्याग्रह आर मिथ्याग्रह। लोक मे सर्वदा एहि दुइ प्रवृत्ति केँ धारक रहैत अछि। एहि पात्रक माध्यम सँ स्कंदपुराण यैह संदेश देबय चाहैत अछि जे निर्धन आ सत्ताहीन व्यक्ति सेहो सत्याग्रही, सत्यव्रती, सत्यनिष्ठ भऽ सकैत अछि आ धन तथा सत्तासंपन्न व्यक्ति मिथ्याग्रही भऽ सकैत अछि। शतानन्द और काष्ठ-विक्रेता भील निर्धन आ सत्ताहीन छल। तथापि ओकरा मे तीव्र सत्याग्रहवृत्ति छलैक। एकर बिपरीत साधु वाणिक आ राजा तुंगध्वज धनसम्पन्न आ सत्तासम्पन्न छल लेकिन ओकर वृत्ति मिथ्याग्रही छलैक। सत्ता आ धनसम्पन्न व्यक्ति मे सत्याग्रह हो, एहेन घटना विरले भेटैत छैक। सत्यनारायण व्रतकथाक पात्र राजा उल्कामुख एहने विरला कोटिक व्यक्ति छल। पूरा सत्यनारायण व्रतकथाक निहितार्थ यैह छैक जे लौकिक आ परलौकिक हितक साधनाक लेल मनुष्य केँ सत्याचरणक व्रत लेबाक चाही। सत्य टा भगवान् छथि। सत्य टा विष्णु छथि। लोक मे सब खराबी, समस्त क्लेश, सब संघर्षक मूल कारण अछि सत्याचरणक अभाव। सत्यनारायण व्रत कथा पुस्तिका मे एहि संबंध मे श्लोक एहि तरहें अछि:

यत्कृत्वासर्वदु:खेभ्योमुक्तोभवतिमानव:।
विशेषत:कलियुगेसत्यपूजाफलप्रदा।
केचित् कालंवदिष्यन्तिसत्यमीशंतमेवच।
सत्यनारायणंकेचित् सत्यदेवंतथाऽपरे।
नाना रूपधरोभूत्वासर्वेषामीप्सितप्रद:।
भविष्यतिकलौविष्णु: सत्यरूपीसनातन:।

अर्थात् सत्यनारायण व्रत केर अनुष्ठान कय मनुष्य सब दु:ख सँ मुक्त भऽ जाइत अछि। कलिकाल मे सत्य केर पूजा विशेष रूप सँ फलदायी होइत अछि। सत्य केर अनेक नाम अछि, यथा - सत्यनारायण, सत्यदेव। सनातन सत्यरूपी विष्णु भगवान् कलियुग मे अनेक रूप धारण करैत लोककेँ मनोवांछित फल देता। (भावानुवाद: प्रवीण नारायण चौधरी )

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