August Muni Tarpan Mantra | अगस्त्यार्घदान अगस्त्य तर्पण मंत्र | Mithila Tarpan Vidhi | तर्पण विधि मंत्र मैथिली में
देवताक तर्पण सौं देवऋण,ऋषि तर्पण सौं ऋषिऋण आ पितर तर्पण पितृऋण सौं मुक्ति दैत अछि। देव कार्य में सब्य अर्थात बायां कंधा पर जहिना जनेऊ पहिरैत छी।ऋषि काज में मालाकार जहिना माला पहिरै छी आ पितरक काज में अपसब्य अर्थात दायाँ कंधा पर ऊल्टा जनेऊ धारण करी।देव आ ऋषि कार्य पूब मुँहे पितृ कर्म दक्षिण मुँहे किएक त यमलोक दक्षिणे दिशा में छैक आ पितरक बास उम्हरे छनि।
• पितृपक्ष आरम्भ - 8 सितम्बर 2025
• पितृपक्ष समाप्ति - 21 सितम्बर 2025
स्नान ध्यान कय आसन लगा सोना चाँदी ताम्बा या कास्य के वर्तन आगू में राखि कोनो पात्र में कारी तील लय,कुश एकटा आसन तर में दोसरक विरणी बना मध्यमा आ अनामिका में राखि तेसरक दायाँ हाथक अनामिका में पवित्री बना पहिरि,सोनो चानीक पवित्री पहिर सकै छी एकटा कुशक मोडा बना जाहि सौं पितर के तर्पण होई छैक। एकटा कुशक तेकूशा बना वा ओहिना कुश लय शंख में जल श्वेत फूल अक्षत फल द्रव्य लय दक्षिण मुँहे अगस्त्य तर्पण इ मंत्र से करी-
ॐ आगच्छ मुनि शार्दूल तेजोरासे जगतपते।
उदयंते लंका द्वारे अर्घोऽयं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ कुम्भयोनि समुत्पन्न मुनीना मुनिसत्तम्।
उदयन्ते लंका द्वारे अर्घोऽयं प्रतिगृह्यताम्।।
पुनः शंख में सब वस्तु लय-
ॐ शंखं पुष्पं फलन्तोयं रत्नानि विविधानि च।
उदयंते लंका द्वारे अर्घोऽयं प्रतिगृह्यताम्।।
तखन काशक फूल लय-
ॐ काश पुष्प प्रतीकाश बह्निमारूत सम्भव।
उदयन्ते लंका द्वारे अर्घोऽयं प्रतिगृह्यताम्।।
तकर बाद कल जोरी इ मंत्र पढि प्रर्थना करी-
ॐ आतापी भक्षितो येन वातापी च महावल:।
समुद्र: शोषितो येन स मेऽगस्त्य: प्रसीदतु।।
ओकर बाद पुनः शंख में सब किछु लय अगस्ति पत्नी के इ मंत्र पढि तर्पण करी-
ॐ लोपामुद्रे महाभागो राजपुत्रि पतिव्रते।
गृह्यणर्घ्यम्मया दत्तं मित्रवारूणि बल्लभे।।
-: वाजसनेयि तर्पण विधान :-
ओहिना कुश सब रखने रहि आ पूब मुँहे सब अंगूली के अग्रभाग जकरा देवतीर्थ कहल जाई छैक जल आ श्वेत या कोनो तील लय इ मंत्र पढैत तर्पण करी-
-: देव तर्पण :-
ॐतर्पणीया देवा आगच्छन्तु।ॐ ब्रह्मास्तृप्यताम्।
ॐ विष्णुस्तृप्यताम्।ॐ प्रजापतिस्तृप्यताम्।
ॐ देवायक्षास्तथा नागा गन्धर्वाप्सरसोऽसुरा:। क्रूरा: सर्प्पा: सुपर्णास्च तरवो जम्भका: खगा: विद्याधारा जलाधारास्तथैवाकाश गामिन:। निराधाराश्च ये जीवा: पापे धर्मे रताश्चये तेषामाप्यायनायै तद्दीयते सलिलम्मया।।
आब उत्तर मुँहे जनेऊ के मालाकार कय इ मंत्र पढि तर्पण करी -
ॐ सनकादय आगच्छन्तु।ॐ सनकश्चसनन्दश्च सनातन:।कपिलश्चासुरिश्चैव वोढु:पञ्चशिखस्तथा सर्वे ते तृप्तिमायान्तु मद्दत्तेनाम्बुना सदा।
-: ऋषि तर्पण :-
पूब मुँहे जनेऊ मालाकार राखि कूशक मध्य भाग देवतीर्थ से इ मंत्र सं तर्पण-
ॐ मरकच्यादाय आगच्छन्तु।। ॐमरीचिस्तृप्यताम्। ॐ अत्रिस्तृप्यताम्।
ॐ अंगिरास्तृप्यताम्। ॐ पुलस्त्यस्तृप्यताम्। ॐ पुलहस्तृप्यताम्। ॐ क्रतुस्तृप्यतेम्। ॐ प्रचेतास्तृप्यताम्। ॐ बशिष्ठस्तृप्यताम्। ॐ भृगुस्तृप्यताम्। ॐ नारदस्तृप्यताम्।
-: दिव्य पितृ तर्पण मंत्र :-
जनेऊ अपशव्य अर्थात दाहिना कंधा पर लय दक्षिण मुँहे इ मंत्र पढि तर्पण करी-
ॐ अग्निष्वात्तास्तृप्यन्तामिदं जलन्तेभ्य: स्वधानम: 3 बेर
ॐ सौम्यास्तृप्यन्तामिदं जलन्तेभ्य: स्वधानम:।
ॐ हविष्मन्तस्तृप्यन्तामिदं जलन्तेभ्य: स्वधानम:।
ॐ उष्मास्तृप्यन्तामिदं जलन्तेभ्य: स्वधानम :।
ॐ वर्हिषदस्तृप्यन्तमिदं जलन्तेभ्य: स्वधानम :।
ॐ आज्यापास्तृप्यन्तामिदं जलन्तेभ्य: स्वधानम :।
-: यम तर्पण मंत्र :-
ॐ यमाय नम:।
ॐ धर्माराजाय नम:।
ॐ मृतवे नम:।
ॐ कालाय नम:।
ॐ अन्तकाय नम:।
ॐ वैवस्वताय नम:।
ॐ सर्वभूतक्षयाय नम:।
ॐऔदुम्वराय नम:।
ॐ दध्नाय नम:।
ॐ नीलाय नम:।
ॐ परमेष्ठने नम:।
ॐ वृकोदराय नम:।
ॐ चित्राय नम:।
ॐ चित्रगुप्ताय नम:।
ॐ चतुर्दशैते यमा: स्वस्ति कुर्वन्तु तर्पिता।
-: पितृ तर्पण मंत्र :-
इ मंत्र सौं सब पितर के मोडा कुश सौं तीन तीन अंजुली जल तील संगे अपशव्य जनेऊ कय अर्थात दायाँ कंधा पर ऊल्टा जनेऊ धारण कय दी-
ॐ आगच्छन्तुमे पितरं इमं गृहं तपोञ्जलिम्।।
ॐ अद्य अमुक गोत्र: पिता अमुक शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा -3 बेर।
ॐ अद्य अमुक गोत्र: पितामहो अमुक शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा -3 बेर।
ॐ अद्य अमुक गोत्र: प्रपितामहो अमुक शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा -3 बेर।
ॐ तृप्यध्वम्-3 बेर।
ॐ अद्य अमुक गोत्रो मातामहो अमुक शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा -3 बेर।
ॐ अद्य अमुक गोत्र: प्रमातामहो अमुक शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा -3 बेर।
ॐ अद्य अमुक गोत्रो वृद्धप्रमातामहो अमुक शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा -3 बेर।
ॐ तृप्यध्वम् -3 बेर।
ई मंत्र से एक एक अंजली जल स्त्री पितरैनक दी-
ॐ अद्य अमुक गोत्रा माता अमुकी देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा -1बेर।
ॐ अद्य अमुक गोत्रा पितामही अमुकी देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा -1 बेर।
ॐ अद्य अमुक गोत्रा प्रपितामही अमुकी देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा -1 बेर।
ॐ तृप्यध्वम् -1बेर।
ॐ अद्य अमुक गोत्रा मातामही अमुकी देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा -1 बेर।
ॐ अद्य अमुक गोत्रा प्रमातामही अमुकी देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा -1 बेर।
ॐ अद्य अमुक गोत्रा वृद्धप्रमातामही अमुकी देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा -1बेर।
ॐ तृप्यध्वम्।
आब पत्नी भाई संबन्धी आचार्य आ गुरू के इ मंत्र से तर्पण-
ॐ येऽबान्धवा वा येऽन्यजन्मनि बान्धवा:।
ते सर्वे तृप्तिमायान्तु यश्चास्मत्तोऽभिवाञ्छति।।
ये मे कुले लुप्तिपिण्डा पुत्रदारा विवर्जिता:।
तेषांहि दत्तमक्षय्यमिंदमस्तु तिलोदकम्।।
आब्रह्मस्तम्ब पर्यन्तं देवर्षि पितृ मानवा:।
तृप्यन्तु पितर: सर्वे मातृ मातामहोदय:।।
अतीत कुल कोटीना सप्तद्विपनिवासिनाम्।
आब्रह्म भुवनाल्लोकादिदमस्तु तिलोदकम्।।
आब इ मंत्र से स्नान केलहा भिजलाहा वस्त्र अंगपोछा के गारी जल खसा दी-
ॐ ये चाऽस्माकं कुले जाता अपुत्रा गोत्रिणो मृता:।
ते तृप्यन्तु मया दत्तैर्वस्वनिष्पीडिनोदकम्।।
आब सव्य अर्थात बायां कंधा पर जहिना जनेऊ पहिरल जाई छैक तीन बेर सूर्यदेव के तीन बेर जलक इ मंत्र से अर्घ दी-
ॐ नमोविवस्वते ब्रह्मण भास्वते विष्णु तेजसे।
जगत्सवित्रे शुचये सवित्रे कर्मदायिने।।
एखऽअर्घ: ॐ भगवते श्रीसुर्याय नम:।
ॐ विष्णविष्णुर्हरिर्हरि:। इति।
-: छन्दोग तर्पण विधान मंत्र :-
छान्दोगी सब देव आ ऋषि तर्पण अहि प्रकार अहि मंत्रे दी-
ॐ देवास्तृप्यन्ताम् -3 बेर।
ॐ ऋषियस्तृप्यन्ताम् -3 बेर।
ॐ प्रजापतिस्तृप्यताम् -3 बेर।
● पितरक तर्पण वाजसनेयि जकां सबटा हेतै तथा जनेऊ सब जहिना बाजसनेयि में जहिना जहिना राखै केर क्रम छै ओहिना रहतै।
अगस्ति वला तर्पण जौं संभव नै हुए त देव ऋषि आ पितर के तर्पण अवश्य करी। अमुक के जगह पर अपन अपन पितरक गोत्र आ नाम लेल जेतै जाहि पितरक जे गोत्र आ जे नाम होईन। नदी वा पोखैर में सेहो तर्पण कय सकै छी।
जौं नै हुए एतेक केल कुशक अभावो हुए त स्नाने काल तीन तीन आँजुर जल पुरूष पितरक लेल आ एक एक आँजुर जल स्त्री पितरैनक लेल सबहक बेरा बेरी गोत्र आ नाम हृदयस्थ भय लय हुनका नाम सौं अवश्य अर्घ चढादी आ 15 हम दिन अमावस्या तिथि के 11, 5,3, या एकोटा ब्राह्मण भोजन अवश्य करा विसर्जन करी जौ पितरक क्षय तिथि मन हुए त ओहू दिन ब्राह्मण भोजन करा दी।
● पितृजीवी के तर्पण नहिं करए चाही।