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शुक्रवार, 5 सितंबर 2025

मिथिला में पितृपक्ष तर्पण विधान, मंत्र सहित | अगस्त्य तर्पण मंत्र

August Muni Tarpan Mantra | अगस्त्यार्घदान अगस्त्य तर्पण मंत्र | Mithila Tarpan Vidhi | तर्पण विधि मंत्र मैथिली में

देवताक तर्पण सौं देवऋण,ऋषि तर्पण सौं ऋषिऋण आ पितर तर्पण पितृऋण सौं मुक्ति दैत अछि। देव कार्य में सब्य अर्थात बायां कंधा पर जहिना जनेऊ पहिरैत छी।ऋषि काज में मालाकार जहिना माला पहिरै छी आ पितरक काज में अपसब्य अर्थात दायाँ कंधा पर ऊल्टा जनेऊ धारण करी।देव आ ऋषि कार्य पूब मुँहे पितृ कर्म दक्षिण मुँहे किएक त यमलोक  दक्षिणे दिशा में छैक आ पितरक बास उम्हरे छनि।  

• अगस्त्या अर्घ्य दान - 7 सितम्बर 2025
• पितृपक्ष आरम्भ - 8 सितम्बर 2025
• पितृपक्ष समाप्ति - 21 सितम्बर 2025


स्नान ध्यान कय आसन लगा सोना चाँदी ताम्बा या कास्य के वर्तन आगू में राखि कोनो पात्र में कारी तील लय,कुश एकटा आसन तर में दोसरक विरणी बना मध्यमा आ अनामिका में राखि तेसरक दायाँ हाथक अनामिका में पवित्री बना पहिरि,सोनो चानीक पवित्री पहिर सकै छी एकटा कुशक मोडा बना जाहि सौं पितर के तर्पण होई छैक। एकटा कुशक तेकूशा बना वा ओहिना कुश लय  शंख में जल श्वेत फूल अक्षत फल द्रव्य लय दक्षिण मुँहे अगस्त्य तर्पण इ मंत्र से करी-

ॐ आगच्छ मुनि शार्दूल तेजोरासे जगतपते।
उदयंते लंका द्वारे अर्घोऽयं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ कुम्भयोनि समुत्पन्न मुनीना मुनिसत्तम्।
उदयन्ते लंका द्वारे अर्घोऽयं प्रतिगृह्यताम्।।

पुनः शंख में सब वस्तु लय-
ॐ शंखं पुष्पं फलन्तोयं रत्नानि विविधानि च।
उदयंते लंका द्वारे अर्घोऽयं प्रतिगृह्यताम्।।

तखन काशक फूल लय-
ॐ काश पुष्प प्रतीकाश बह्निमारूत सम्भव।
उदयन्ते लंका द्वारे अर्घोऽयं प्रतिगृह्यताम्।।

तकर बाद कल जोरी इ मंत्र पढि प्रर्थना करी-
ॐ आतापी भक्षितो येन वातापी च महावल:।
समुद्र: शोषितो येन स मेऽगस्त्य: प्रसीदतु।।

ओकर बाद पुनः शंख में सब किछु लय अगस्ति पत्नी के इ मंत्र पढि तर्पण करी-
ॐ लोपामुद्रे महाभागो राजपुत्रि पतिव्रते।
गृह्यणर्घ्यम्मया दत्तं मित्रवारूणि बल्लभे।।


-: वाजसनेयि तर्पण विधान :-
ओहिना कुश सब रखने रहि आ पूब मुँहे सब अंगूली के अग्रभाग जकरा देवतीर्थ कहल जाई छैक जल आ श्वेत या कोनो तील लय इ मंत्र पढैत तर्पण करी-

-: देव तर्पण :-
ॐतर्पणीया देवा आगच्छन्तु।ॐ ब्रह्मास्तृप्यताम्।
ॐ विष्णुस्तृप्यताम्।ॐ प्रजापतिस्तृप्यताम्।
ॐ देवायक्षास्तथा नागा गन्धर्वाप्सरसोऽसुरा:। क्रूरा: सर्प्पा: सुपर्णास्च तरवो जम्भका: खगा: विद्याधारा जलाधारास्तथैवाकाश गामिन:। निराधाराश्च ये जीवा: पापे धर्मे रताश्चये तेषामाप्यायनायै तद्दीयते सलिलम्मया।।
आब उत्तर मुँहे जनेऊ के मालाकार कय इ मंत्र पढि तर्पण करी -
ॐ सनकादय आगच्छन्तु।ॐ सनकश्चसनन्दश्च सनातन:।कपिलश्चासुरिश्चैव वोढु:पञ्चशिखस्तथा सर्वे ते तृप्तिमायान्तु मद्दत्तेनाम्बुना सदा।

-: ऋषि तर्पण :-
पूब मुँहे जनेऊ मालाकार राखि कूशक मध्य भाग देवतीर्थ से इ मंत्र सं तर्पण-
ॐ मरकच्यादाय आगच्छन्तु।। ॐमरीचिस्तृप्यताम्। ॐ अत्रिस्तृप्यताम्। 
ॐ  अंगिरास्तृप्यताम्। ॐ पुलस्त्यस्तृप्यताम्। ॐ पुलहस्तृप्यताम्। ॐ क्रतुस्तृप्यतेम्। ॐ प्रचेतास्तृप्यताम्। ॐ बशिष्ठस्तृप्यताम्। ॐ भृगुस्तृप्यताम्। ॐ नारदस्तृप्यताम्।

-: दिव्य पितृ तर्पण मंत्र :-
जनेऊ अपशव्य अर्थात दाहिना कंधा पर लय दक्षिण मुँहे इ मंत्र पढि तर्पण करी-
ॐ अग्निष्वात्तास्तृप्यन्तामिदं जलन्तेभ्य: स्वधानम: 3 बेर
ॐ सौम्यास्तृप्यन्तामिदं जलन्तेभ्य: स्वधानम:। 
ॐ हविष्मन्तस्तृप्यन्तामिदं जलन्तेभ्य: स्वधानम:। 
ॐ उष्मास्तृप्यन्तामिदं जलन्तेभ्य: स्वधानम :। 
ॐ वर्हिषदस्तृप्यन्तमिदं जलन्तेभ्य: स्वधानम :। 
ॐ आज्यापास्तृप्यन्तामिदं जलन्तेभ्य: स्वधानम :।

 -: यम तर्पण मंत्र :-
ॐ यमाय नम:।
ॐ धर्माराजाय नम:।
ॐ मृतवे नम:।
ॐ कालाय नम:। 
ॐ अन्तकाय नम:।
ॐ वैवस्वताय नम:।
ॐ सर्वभूतक्षयाय नम:।
ॐऔदुम्वराय नम:।
ॐ दध्नाय नम:।
ॐ नीलाय नम:।
ॐ परमेष्ठने नम:।
ॐ वृकोदराय नम:।
ॐ चित्राय नम:।
ॐ चित्रगुप्ताय नम:।
ॐ चतुर्दशैते यमा: स्वस्ति कुर्वन्तु तर्पिता।

-: पितृ तर्पण मंत्र :-
इ मंत्र सौं सब पितर के मोडा कुश सौं तीन तीन अंजुली जल तील संगे अपशव्य जनेऊ कय अर्थात दायाँ कंधा पर ऊल्टा जनेऊ धारण कय दी-

ॐ आगच्छन्तुमे पितरं इमं गृहं तपोञ्जलिम्।।
ॐ अद्य अमुक गोत्र: पिता अमुक शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा -3 बेर। 
ॐ अद्य अमुक गोत्र: पितामहो अमुक शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा -3 बेर। 
ॐ  अद्य अमुक गोत्र: प्रपितामहो अमुक शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा -3 बेर। 
ॐ तृप्यध्वम्-3 बेर।
ॐ अद्य अमुक गोत्रो मातामहो अमुक शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा -3 बेर।  
ॐ अद्य अमुक गोत्र: प्रमातामहो अमुक शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा -3 बेर। 
ॐ अद्य अमुक गोत्रो वृद्धप्रमातामहो अमुक शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा -3 बेर। 
ॐ तृप्यध्वम् -3 बेर।

ई मंत्र से एक एक अंजली जल स्त्री पितरैनक दी-

ॐ  अद्य अमुक गोत्रा माता अमुकी देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा -1बेर। 
ॐ अद्य अमुक गोत्रा पितामही अमुकी देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा -1 बेर। 
ॐ अद्य अमुक गोत्रा प्रपितामही अमुकी देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा -1 बेर। 
ॐ तृप्यध्वम् -1बेर।
ॐ अद्य अमुक गोत्रा मातामही अमुकी देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा -1 बेर। 
ॐ अद्य अमुक गोत्रा प्रमातामही अमुकी देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा -1 बेर। 
ॐ अद्य अमुक गोत्रा वृद्धप्रमातामही अमुकी देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा -1बेर। 
ॐ तृप्यध्वम्।

आब पत्नी भाई संबन्धी आचार्य आ गुरू के इ मंत्र से तर्पण-
ॐ येऽबान्धवा वा येऽन्यजन्मनि बान्धवा:।
ते सर्वे तृप्तिमायान्तु यश्चास्मत्तोऽभिवाञ्छति।।
ये मे कुले लुप्तिपिण्डा पुत्रदारा विवर्जिता:।
तेषांहि दत्तमक्षय्यमिंदमस्तु तिलोदकम्।।
आब्रह्मस्तम्ब पर्यन्तं देवर्षि पितृ मानवा:।
तृप्यन्तु पितर: सर्वे मातृ मातामहोदय:।।
अतीत कुल कोटीना सप्तद्विपनिवासिनाम्।
आब्रह्म भुवनाल्लोकादिदमस्तु तिलोदकम्।।

आब इ मंत्र से स्नान केलहा भिजलाहा वस्त्र अंगपोछा के गारी जल खसा दी-
ॐ ये चाऽस्माकं कुले जाता अपुत्रा गोत्रिणो मृता:।
ते तृप्यन्तु मया दत्तैर्वस्वनिष्पीडिनोदकम्।।

आब सव्य अर्थात बायां कंधा पर जहिना जनेऊ पहिरल जाई छैक तीन बेर सूर्यदेव के तीन बेर जलक इ मंत्र से अर्घ दी-
ॐ नमोविवस्वते ब्रह्मण भास्वते विष्णु तेजसे। 
जगत्सवित्रे शुचये सवित्रे कर्मदायिने।। 
एखऽअर्घ: ॐ भगवते श्रीसुर्याय नम:। 
ॐ विष्णविष्णुर्हरिर्हरि:। इति।

-: छन्दोग तर्पण विधान मंत्र :-
छान्दोगी सब देव आ ऋषि तर्पण अहि प्रकार अहि मंत्रे दी-
ॐ देवास्तृप्यन्ताम् -3 बेर। 
ॐ ऋषियस्तृप्यन्ताम् -3 बेर।
ॐ प्रजापतिस्तृप्यताम् -3 बेर।

● पितरक तर्पण वाजसनेयि जकां सबटा हेतै तथा जनेऊ सब जहिना बाजसनेयि में जहिना जहिना राखै केर क्रम छै ओहिना रहतै। 

अगस्ति वला तर्पण जौं संभव नै हुए त देव ऋषि आ पितर के तर्पण अवश्य करी। अमुक के जगह पर अपन अपन पितरक गोत्र आ नाम लेल जेतै  जाहि पितरक जे गोत्र आ जे नाम होईन। नदी वा पोखैर में सेहो तर्पण कय सकै छी।

जौं नै हुए एतेक केल कुशक अभावो हुए त स्नाने काल तीन तीन आँजुर जल  पुरूष पितरक लेल आ एक एक आँजुर जल स्त्री पितरैनक लेल सबहक बेरा बेरी गोत्र आ नाम हृदयस्थ भय लय हुनका नाम सौं अवश्य अर्घ चढादी आ 15 हम दिन अमावस्या तिथि के 11, 5,3, या एकोटा ब्राह्मण भोजन अवश्य करा विसर्जन करी जौ पितरक क्षय तिथि मन हुए त ओहू दिन ब्राह्मण भोजन करा दी।

पितृजीवी के तर्पण नहिं करए चाही।

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2025

भरदुतिया (भ्रातृ द्वितीया) मंत्र - Bhardutiya Mantra Maithili

भाई-बहिनक प्रेमकऽ प्रतीक भरदुतिया (भ्रातृ द्वितीया) कऽ पर्व दीवाली कऽ दू दिनक बाद, कार्तिक मासक शुक्ल पक्ष केर द्वितीया तिथि केँ मनाओल जाईत अछि। एही पर्व में बहिन भाई केँ निमंत्रण दऽ केँ अप्पन घर बजावैत छथि। अरिपन बना कऽ पिड़ही पर भाई केँ बैसायल जाईत अछि। ललाठ पर पिठार आ सिंदुरक ठोप कऽ, पान सुपारी भाई केँ हाथ में दकेँ बहिन एही पन्ती केँ उचारण करैत छथि - 

मिथिला के भरदुतिया मंत्र :-

"गंगा नोतय छैथ यमुना के,  हम नोतय छी भाई केँ 
जहिना जहिना गंगा-यमुना केँ धार बहय, हमर भाय सबहक औरदा बढ़य" 

शनिवार, 1 फ़रवरी 2025

मिथिला पद्धतिक अनुसार सरस्वती पूजा विधि मंत्र सहित - Mithila Saraswati Puja Vidhi Mantra

-: सरस्वती पूजा-विधि :-

पूर्व दिन निरामिष एकभुक्त कए प्रतिमा आदि पूजा - सामग्रीक संकलन करी ।

पूजाक दिन अपन नित्यकर्म कए (सूर्यादिपंचदेवताक आ विष्णुक पूजाकए) कुश, तिल आ जल लए- 

ॐ तत्सत् ॐ विष्णुः विष्णुः ।

संकल्प - ॐ अद्य माघे मकरार्के शुक्लपक्षे पञ्चम्यां
तिथावमुकगोत्रास्यामुकशर्मणः सदारापत्यस्य अतुलविभूतिपुत्रपौत्रादिसद्विद्या- लाभपूर्वकसरस्वतीप्रीतिकामो लक्ष्म्याद्यङ्गदेवतापूजनपूर्वकसरस्वतीपूजन महङ्करिष्ये।। 
प्रतिमा में, घटक जल में, शालग्राम मे, फोटो मे अथवा ऐनामे सरस्वती कें स्नान कराए।

सां एहि मन्त्र सँ मूर्ति में आँखिक स्पर्श कए, आँखि दए तीन बेरि प्राणायाम करी।

मूर्तिक हृदय पर दहिना हाथ दए वामा हाथ सँ कच्छप- मुद्रा बनाए एहि मन्त्र सँ ध्यान करी ।

ॐ तरुण- शकलमिन्दोर्बिभ्रती शुभ्रक्रान्तिः । 
कुचभर - नमिताङ्गी सन्निषण्णा सिताब्जे ।
निजकर-कमलोद्यल्लेखनीपुस्तकश्रीः । सकलविभवसिद्ध्यै पातु वाग्देवता नः ।।

ध्यान कए प्राणप्रतिष्ठा करी । तेकुशा हाथ मे लए नीचाँ लिखल मन्त्र पढी ।

ॐ आँ ह्रीं क्रीं यं रं लं वं शं षं सं हौं हं सः श्रीसरस्वतीदेव्या इह प्राणाः । 
ॐ आँ ह्रीं क्रीं यं रं लं वं शं षं सं हौं हं सः श्रीसरस्वतीदेव्या इह प्राणाः ।
ॐ आँ ह्रीं क्रीं यं रं लं वं शं षं सं हौं हं सः श्रीसरस्वतीदेव्या इह स्थितिः । 
ॐ आँ ह्रीं क्रीं यं रं लं वं शं षं सं हौं हं सः इह श्री सरस्वतीदेव्याः सर्वेन्द्रियाणि ।

ॐ आँ ह्रीं क्रीं यं रं लं वं शं षं सं हौं हं सः श्रीसरस्वतीदेव्या वाङ्मनः चक्षुः श्रोत्रघाणप्राणा इहागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा । 

ॐ मनोजूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमन्तनोत्वरिष्टं यज्ञं समिमन्दधातु विश्वेदेवास इह मादयन्तामोम् प्रतिष्ठ ॥ ॐ सरस्वतीदेवि ! इहागच्छ इह सुप्रतिष्ठिता भव ॥

ॐ अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च । अस्यै देवत्वसंख्यायै स्वाहा ॥

देवीक हृदय पर हाथ धेने सां ई मूलमन्त्र तीन बेरि जप कए, देवीक शरीरक अङ्गन्यास आ करन्यास कए, ऐँ एहि बीज सँ संनिरोधनी मुद्रा देखाबी आ सां एहि मूलमन्त्रसँ पुष्पाञ्जलि दी।

-: कलश स्थापना :-

तखनि आसन पर बैसि कलश स्थापित करी। जल छीटि, बीचमे पूजा करी।

आवाहन - अक्षत लए, ॐ कलशाधारशक्ते इहागच्छ इह तिष्ठ ।

जल - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीयपुनराचमनीयानि ॐ कलशाधारशक्तये नमः ।

श्रीखण्ड चानन - इदमनुलेपनं कलशाधारशक्तये नमः। 
रक्तचानन - इदं रक्तचन्दनम् कलशाधारशक्तये नमः।
रोली - इदं कुङ्कुमं कलशाधारशक्तये नमः। 
सिन्दूर - इदं सिन्दूरं कलशाधारशक्तये नमः। 
अक्षत- इदमक्षतं कलशाधारशक्तये नमः। 
फूल - एतानि पुष्पाणि कलशाधारशक्तये नमः।
नैवेद्य - एतानि नानाविधनैवेद्यानि कलशाधारशक्तये नमः । 
आचमन - इदमाचमनीयं कलशाधारशक्तये नमः । पुष्पाञ्जलि - एष पुष्पाञ्जलिः कलशाधारशक्तये नमः । 
भूमिक स्पर्श कए, ॐ भूरसि भूमिरसि अदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धर्त्री । पृथिवीं यच्छ पृथिवीं ह पृथ्वीं मा हिंसीः । 

गायक गोबरसँ निपबाक मन्त्र- ॐ मानस्तोके तनये मान आयुषि मानो गोषु मानोऽअश्वेषुरीरिषः । मानोव्वीरान् रुद्रभामिनोव्वधीर्हविष्मन्तः सदभित्त्वा हवामहे ।

गंगाजल छिटबाक मन्त्र - वेद्या वेदिः समाप्यते बर्हिषा बर्हि इन्द्रियम् । यूपेन यूपआप्यते प्रणीतोऽअग्निरग्निना ।।

एकर बाद एहि पर पिठारसँ अष्टदल कमल बनाबी। कमलक बीच में धान अथवा जौ राखी, तकर मन्त्र- धान्यमसि घिनुहि देवान् प्राणय त्वोदानाय त्वा व्यानाय त्वा । दीर्घामनु प्रसितिमायुषे धां देवो वः सविता हिरण्यपाणि: प्रतिगृभ्णात्वच्छिद्रेण पाणिना चक्षुषे त्वा महीनां पयोऽसि ।

खाली कलश रखबाक मन्त्र - ॐ आ जिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्त्वन्दवः

पुनुरूर्जा नि वर्तस्व सा नः सहस्त्रं धुवोरुधारा पयस्वती पुनर्मा विशाद्रयिः । कलश पर दही आ अक्षतक लेप करी । तकर मन्त्र- ॐ दधिक्राव्णोऽअकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिनः । सुरभि नो मुखाकरत्प्रण आयूंषि तारिषत् ।

लोटासँ कलश में जल भरबाक मन्त्र- ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य स्कम्भ सर्ज्जनीस्थो वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि वरुणस्य ऋतसदनमासीद ।

पंचरत्न - ॐ सरलानि दाशुषे अरातिसहिता भगो भाग्यन्य तत्र मीमहे ।

सप्तमृत्तिका - ॐ उद्धृतासि वराहेण कृष्णेन शतबाहुना । नमस्ते सर्वदेवानां प्रभुवारिणि सुव्रते । 

सर्वौषधी- ॐ या ओषधीः पूर्व्वा जाता देवेभ्यस्त्रियुगं पुरा । मनैनु बभ्रूणामहं शतं धामानि सप्त च ।

श्रीखण्ड चानन- ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षा नित्यपुष्टां करीषिणीम ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपहये श्रियम् ।

सुपारी- ॐ याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणीः । बृहस्पति प्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्वं हसः ॥

पंचपल्लव अथवा केवल आमक पल्लव- ॐ अम्बे अम्बिके अम्बालिके न मानयति कश्चनः । ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकाम् काम्पीलवासिनीम् । दूबि - ॐ काण्डात् काण्डात् प्ररोहन्ती परुषः परुषस्परि । एवानो दूर्वे प्रतनु सहस्रेण शतेन च ।

गंगाजल - ॐ इमम्मे वरुण श्रुधीहवमदद्या च मृडय त्वामवस्युराचके । गंगाद्याः सरितः सर्वाः समुद्राश्च सरांसि च । 
सर्वे समुद्राः सरितः सरांसि दलदायकाः ।
आयान्तु यजमानस्य दुरितक्षयकारकाः 

ॐ आपो हि ष्ठा मयोभुवः, ता नऽऊर्जे दधातन । महे रणाय चक्षसे । ॐ यो वः शिवतमो रसः, तस्य भाजयतेह नः । उशतीरिव मातरः । ॐ तस्माऽअरंगमामवो, यस्य क्षयाय जिन्वथ । आपो जन यथा च नः । 

पानक पात - ॐ प्राणाय स्वाहा । ॐ अपानाय स्वाहा । ॐ व्यानाय स्वाहा । 
पाइ - ॐ हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेकासीत । स दाधार पृथ्वीं ध्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम । 
नारिकेर - ॐ याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणीः । बृहस्पति प्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्वं हसः ।

वस्त्र - ॐ युवा सुवासाः परिवीत आगात् स उ श्रेयान् भवति जायमानः । तं धीरासः कवय उन्नयन्ति स्वाध्यो मनसा देवयन्तः । 
कलशक कात अरवा चाउर भरल ढकना राखी- ॐ धान्यमसि धिनुहि देवान् प्राणयत्वोदानाय त्वा व्यानाय त्वा । दीर्घामनु प्रसितिमायुषे धां देवो वरू सविता हिरण्यपाणिरू प्रतिगृभ्णात्वच्छिद्रेण पाणिना चक्षुषे त्वा महीनां पयोऽसि ।

ओहि धान पर दीप राखी- ॐ अग्निर्ज्योतिः ज्योतिरग्निः स्वाहा। सूर्यो ज्योतिर्ज्योतिः सूर्यः स्वाहा। अग्निर्वर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा। सूर्यो वर्चो ज्योतिः वर्चः स्वाहा । ज्योतिः सूर्यः सूर्यो ज्योतिः स्वाहा । 

दही आ अक्षत लए कलशक स्पर्श करैत- ॐ मनोजूतिर्जुषता माज्यस्य बृहस्पति र्यज्ञमिमं तन्नोत्वरिष्टं यज्ञं समिमं दधातु । विश्वे देवास इह मादयन्तामों

प्रतिष्ठ। कलशस्थितगणेशादिदेवता इह सुप्रतिष्ठिता भवन्तु । ॐ कलशस्थितगणेशादिदेवताभ्यो नमः एहि मन्त्रसँ कलश पर पूजा करी ।
।। इति कलशस्थापन विधि ।।

कलश स्थापित कए विघ्नापसारण करी । पयरक एंडी पर तीन बेरि थपकी दए, तीन बेरि ताली बजाए, आँखि कड़ा कए चारूकात देखि, ॐ फट् एहि मन्त्रसँ तीन बेरि ताली बजा कए दसो दिशा मे चुटकी बजाबी । चानन आ फूलसँ हाथ के शोधित कए नाराच मुद्रासँ ओकरा ईशानकोण में फेंकि आसन पर बैसी -
ॐ पृथ्वीति मन्त्रस्य मेरुपृष्ठ ऋषिः, सुतलं छन्दः, कूर्मो देवता आसनोपवेशने विनियोगः ॥

ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका: देवि त्वं विष्णुना धृता । त्वं च धारय मां नित्यं पवित्रं कुरु चासनम् । ॐ आधारशक्तिकमलासनाय नमः ।

एहि तरहें आसनक पूजा कए - 
ॐ अस्त्राय फट् ई मन्त्र पढ़ेत पूर्व अथवा उत्तरमुख बैसि
वाम भागमे ॐ गुरुभ्यो नमः। 
दहिन भागमे ॐ गणेशाय नमः । 
सोझाँमे - ॐ सरस्वत्यै नमः । एहि मन्त्रसँ एक एक फूल राखी । तकर बाद ऋष्यादिन्यास करी - 
बिचला तीन आँगुरसँ माथक स्पर्श करी- ॐ ब्रह्मणे ऋषये नमः । 
बिचला तीन आँगुरसँ मुखक स्पर्श करी ॐ गायत्रीच्छन्दसे नमः । 
बिचला तीन आँगुरसँ हृदयक स्पर्श करी- ॐ ऐं सरस्वतीदेवतायै नमः । तकर बाद ऐं एहि बीजमन्त्रसँ तीन बेरि प्राणायाम कए कराङ्गन्यास करी । यथा -
आं हृदयाय नमः || बिचला तीन आँगुरसँ हृदयक स्पर्श करी ई शिरसे स्वाहा । बिचला तीन आँगुरसँ माथक स्पर्श करी ॐ शिखायै वषट् । बिचला तीन आँगुरसँ टीकक स्पर्श करी ऐं कवचाय हुम्। दूनू हाथक बिचला तीन आँगुरसँ उलटा कए दूनू कान्हक स्पर्श करी । (दहिना हाथसँ वामा कान्ह आ वामा हाथसँ दहिना कान्ह । )

ॐ नेत्रत्रयाय वौषट् । अनामिका सँ वामा आँखि, मध्यमासँ भोंह आ तर्जनीसँ दहिना आँखिक स्पर्श करी ।

घुमाए वामा तरहत्थी पर अः अस्त्राय फट् ।। दहिना हाथ के पाँछा दिस सँ बिचला तीन आँगुरसँ थपडी बजाबी ।

एहि प्रकारें करन्यास कए यथाशक्ति प्राणायाम कए सामान्यार्घ स्थापित करी। अपन वामा कात में रक्त चाननसँ त्रिकोण लीखि, फूल, अक्षत चाननसँ पूजा करी।

ॐ आधारशक्तये नमः । ॐ अनन्ताय नमः । ॐ कूर्माय नमः, ॐ पृथिव्यै नमः । एहि प्रकारें पूजा कए, ओतए शंखक बैसना राखि, फट् एहि मन्त्रसँ शंख कें ओहि बैसना पर स्थापित कए शंखक तीन भाग जलसँ भरि,

अंकुश मुद्रासँ - 
ॐ गङ्गे च यमुने चौव गोदावरी सरस्वती ।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेस्मिन् संनिधिं कुरु ।

तीर्थक आवाहन कए

सां एहि मन्त्रसँ ओहि में चानन, पूल, अक्षत दए, धेनुमुद्रा देखा कए आठ बेरि सां जपि, ओहि जलसँ अपना कें आ आनो सामग्री कें सिक्त कए दी।

तखनि पंचोपचारसँ निम्नलिखित देवताक पूजा करी 
सूर्य - भगवन् सूर्य इहागच्छ इह तिष्ठ । एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीयपुनराचमनीयानि ॐ भगवते श्री सूर्याय नमः। इदमनुलेपनं भगवते श्री सूर्याय नमः। इदं रक्तचन्दनम् भगवते श्री सूर्याय नमः। इदं कुङ्कुमं भगवते श्री सूर्याय नमः। इदमक्षतं भगवते श्री सूर्याय नमः। एतानि पुष्पाणि भगवते श्री सूर्याय नमः। एतानि नानाविधनैवेद्यानि भगवते श्री सूर्याय नमः। इदमाचमनीयं भगवते श्री सूर्याय नमः। एष पुष्पाञ्जलिः भगवते श्री सूर्याय नमः ।

विष्णु - भगवन् विष्णो इहागच्छ इह तिष्ठ । एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीयपुनराचमनीयानि ॐ भगवते श्री विष्णवे नमः । इदमनुलेपनं भगवते श्री विष्णवे नमः । एते यवतिलाः भघवते श्रीविष्णवे नमः । एतानि पुष्पाणि भगवते श्री विष्णवे नमः । एतानि नानाविधनैवेद्यानि भगवते श्री विष्णवे नमः । इदमाचमनीयं भगवते श्री विष्णवे नमः । एष पुष्पाञ्जलिः भगवते श्री विष्णवे नमः ।

शिव - भगवन् शिव इहागच्छ इह तिष्ठ । एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीयपुनराचमनीयानि ॐ भगवते शिवाय नमः । इदमनुलेपनं भगवते शिवाय नमः । इदं रक्तचन्दनम् भगवते शिवाय नमः । इदं कुङ्कुमं भगवते शिवाय नमः । इदमक्षतं भगवते शिवाय नमः । एतानि पुष्पाणि भगवते शिवाय नमः । एतानि नानाविधनैवेद्यानि भगवते श्री शिवाय। इदमाचमनीयं भगवते शिवाय नमः । एष पुष्पाञ्जलिः भगवते शिवाय नमः ।

दुर्गा - भगवति दुर्गे देवि इहागच्छ इह तिष्ठ । एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीयपुनराचमनीयानि ॐ भगवत्यै दुर्गादेव्यै नमः । इदमनुलेपनं भगवत्यै दुर्गादेव्यै नमः । इदं रक्तचन्दनम् भगवत्यै दुर्गादेव्यै नमः । इदं कुङ्कुमं भगवत्यै दुर्गादेव्यै नमः। एदं सिन्दूरं भगवत्यै दुर्गादेव्यै नमः । इदमक्षतं भगवत्यै दुर्गादेव्यै नमः । एतानि पुष्पाणि भगवत्यै दुर्गादेव्यै नमः । एतानि नानाविधनैवेद्यानि भगवत्यै दुर्गादेव्यै नमः । इदमाचमनीयं भगवत्यै दुर्गादेव्यै नमः । एष पुष्पाञ्जलिः भगवत्यै दुर्गादेव्यै नमः।

अग्नि - भगवन् अग्निदेव इहागच्छ इह तिष्ठ । एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीयपुनराचमनीयानि ॐ भगवते अग्निदेवाय नमः । इदमनुलेपनं भगवते अग्निदेवाय नमः । इदं रक्तचन्दनम् भगवते भगवते अग्निदेवाय नमः । इदं कुङ्कुमं भगवते भगवते अग्निदेवाय नमः । इदमक्षतं भगवते भगवते अग्निदेवाय नमः । एतानि पुष्पाणि भगवते भगवते अग्निदेवाय नमः । एतानि नानाविधनैवेद्यानि भगवते भगवते अग्निदेवाय नमः । इदमाचमनीयं भगवते भगवते अग्निदेवाय नमः । एष पुष्पाञ्जलिः भगवते भगवते अग्निदेवाय नमः ।

केशव - भगवन् श्रीकेशव इहागच्छ इह तिष्ठ । एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीयपुनराचमनीयानि ॐ भगवते श्रीकेशवाय नमः । इदमनुलेपनं भगवते श्रीकेशवाय नमः। एते यव-तिलाः भगवते श्रीकेशवाय नमः । एतानि पुष्पाणि भगवते श्रीकेशवाय नमः । एतानि नानाविधनैवेद्यानि भगवते श्रीकेशवाय नमः । इदमाचमनीयं भगवते श्री केशवाय नमः । एष पुष्पाञ्जलिः भगवते श्रीकेशवाय नमः ।

कौशिकी - भगवति कौशिकि देवि इहागच्छ इह तिष्ठ । एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीयपुनराचमनीयानि ॐ भगवत्यै कौशिक्यै नमः । इदमनुलेपनं भगवत्यै कौशिक्यै नमः । इदं रक्तचन्दनम् भगवत्यै कौशिक्यै नमः । इदं कुङ्कुमं भगवत्यै कौशिक्यै नमः । इदं सिन्दूरं भगवत्यै कौशिक्यै नमः । इदमक्षतं भगवत्यै कौशिक्यै नमः । एतानि पुष्पाणि भगवत्यै कौशिक्यै नमः । एतानि नानाविधनैवेद्यानि भगवत्यै कौशिक्यै नमः। इदमाचमनीयं भगवत्यै कौशिक्यै नमः । एष पुष्पाञ्जलिः भगवत्यै कौशिक्यै नमः ।

आदित्यादिनवग्रह - आदित्यादिनवग्रहाः इहागच्छत इह तिष्ठत। एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीयपुनराचमनीयानि ॐ आदित्यादिनवग्रहेभ्यो नमः । इदमनुलेपनं आदित्यादिनवग्रहेभ्यो नमः । इदं रक्तचन्दनम् आदित्यादिनवग्रहेभ्यो नमः । इदं कुङ्कुमं आदित्यादिनवग्रहेभ्यो नमः । इदमक्षतं आदित्यादिनवग्रहेभ्यो नमः । एतानि पुष्पाणि आदित्यादिनवग्रहेभ्यो नमः । एतानि नानाविधनैवेद्यानि आदित्यादिनवग्रहेभ्यो नमः । इदमाचमनीयं आदित्यादिनवग्रहेभ्यो नमः । एष पुष्पाजलि: आदित्यादिनवग्रहेभ्यो नमः ।

इन्द्रादिशदिक्पाल - इन्द्रादिदशदिक्पालाः इहागच्छत इह तिष्ठत । एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीयपुनराचमनीयानि ॐ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः । इदमनुलेपनं ॐ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः । इदं रक्तचन्दनम् ॐ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः । इदं कुङ्कुमं ॐ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः । इदमक्षतं ॐ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः । एतानि पुष्पाणि ॐ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः । एतानि नानाविधनैवेद्यानि ॐ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः । इदमाचमनीयं ॐ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः । एष पुष्पाञ्जलिः ॐ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।

तखनि लक्ष्मीक ध्यान करी-
ॐ पाशाक्षमालिकाम्भोज शृणिभिर्याम्यसौम्ययोः  ।प्रसनास्थां ध्यायेच्च श्रियं त्रैलोक्यमातरम् । गौरवर्णा सुरूपाञ्च सर्वालङ्कारभूषिताम् । रौक्मपद्मव्यग्रकरां वरदां दक्षिणेन तु । 
ध्यान कए पाद्य आदि उपलब्ध वस्तुसँ ॐ लक्ष्मीदेव्यै नमः एहिसँ पूजा कए,

ॐ लक्ष्मीदेव्यै नमः ई दस बेरि जप करी ।
ॐ नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये ।
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात्त्वदर्चनात् । 
एहिसँ पुष्पाञ्जलि दए स्तोत्र आदि पाठ कए लक्ष्मीकें प्रणाम करी ।


-: सरस्वतीक पूजा :-

ध्यान - ॐ तरुणशकलमिन्दोर्बिभ्रती शुभकान्तिः ।
कुचभर - नमिताङ्गी सन्निषण्णा सिताब्जे ।
निजकर - कमलोद्यल्लेखनीपुस्तकश्रीः । सकलविभवसिद्धयै पातु वाग्देवता नः ।। 
ध्यान कए अपन माथ पर एकटा फूल राखि मनहिं मन सरस्वतीक पूजा करी । तकर बाद, ॐ ऐं भगवति सरस्वति स्वकीयगणसहिते इहागच्छ इहागच्छ, इह तिष्ठ, इह सन्निधेहि इह सन्निरुद्धा भव, अत्राधिष्ठानं कुरु, मम पूजां गृहाण स्थां स्थों स्थिरा भव ॥

एहिसँ आवाहन कए - 
जल - इदं पाद्यम् ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः ।

अर्घ्य - एषोर्घ्यः ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः । ( अरघा में जल, चानन, अक्षत, दूबि, दूध, दही, कुशक अगिला भाग, पीरा सरिसब, तिल दए ) 
जल - इदमाचमनीयम् ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः ।

जल - इदं स्नानीयम् ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः

जल - इदं पुनराचमनीयम् ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः । वस्त्र - इदं शुक्लवस्त्रं वृहस्पतिदैवतम् ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः ।

श्रीखण्ड चानन - इदमनुलेपनम् ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः ।

सिन्दूर - इदं सिन्दूरम् ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः ।

अबीर- इदम् अबीरकं ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः । अक्षत इदमक्षतम् ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः ।
फूल - एतानि पुष्पाणि ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः । 
आमक मज्जर - इदम् आम्रमञ्जरीकं ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः ।
माला - इदं माल्यम् ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः । 
आभूषण - इदं भूषणम् ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः ।
सौन्दर्य-प्रसाधन - एतानि नानाविधसौन्दर्यप्रसाधनानि ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः ।
धूप - एष धूपः ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः ।

दीप - एष दीपः ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः । 
नैवेद्य - एतानि नानाविधनैवेद्यानि ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः । फल - एतानि नानाविधफलानि ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः । पकमान- एतानि नानाविधपक्वान्नानि ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः । 
जल - इदमाचमनीयम् ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः ।
फूल - ॐ पुष्पं मनोहरं दिव्य सुगन्धं देवनिर्मितम् । हृद्यमभुतमायं देवि! तत् प्रतिगृह्यताम् ॥ एष पुष्पाञ्जलिः ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः एहि प्रकारें षोडशोपचारसँ सरस्वतीक पूजा करी ।
तकर बाद पुस्तक पर ॐ पुस्तकाय नमः एहि मंत्रसँ पञ्चोपचारसँ पूजा करी ।

मोसिदानी पर ॐ मस्याधाराय नमः । एहि मंत्रसँ पञ्चोपचारसँ पूजा करी ।

कलम पर ॐ लेखन्यै नमः । एहि मंत्रसँ पञ्चोपचारसँ पूजा करी । 
चक्कू पर ॐ सर्वशस्त्रेभ्यो नमः । एहि मन्त्रसँ पञ्चोपचारसँ पूजा करी । 
ॐ अस्त्रेभ्यो नमः । एहि मंत्रसँ पञ्चोपचारसँ पूजा करी । आरती कए पुष्पाञ्जलि दी

ॐ यथा न देवो भगवान् ब्रह्मा लोकपितामहः । त्वां परित्यज्यं सन्तिष्ठेत्तथा भव वरप्रदा ।। वेदा: पुराणशास्त्राणि नृत्यगीतादिकं च यत् । न विहीनं त्वया देवि तथा मे सन्तु सिद्धयः ।। विशदकुसुमतुष्टा पुण्डरीकोपविष्टा धवलवसनवेशा मालतीबद्धकेशा । शशधरकरवर्णा सुभ्रताटङ्ककर्णा जयति जितसमस्ता, भारती वेणुहस्ता । 
पुष्पाञ्जलिक बाद प्रणाम करी 
ॐ सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमोनमः । वेदवेदान्तवेदाङ्गविद्यास्थानेभ्य एव च ( स्वाहा ) । । 
एहिसँ प्रणाम कए प्रार्थना करी । 
ॐ लक्ष्मीर्मेधा धरापुष्टिगौरी तुष्टिः प्रभा धृतिः । एताभिः पाहि तनुभिरष्टाभिर्मा सरस्वति ।। रूपं देहि यशो देहि भाग्यं भवगति ! देहि मे । धर्मान् देहि धनं देहि सर्वाविद्याः प्रदेहि मे ॥ सा मे वसतु जिह्वायां वीणां पुस्तकधारिणी । मुरारिवल्लभा देवि ! सर्वशुक्ला सरस्वती ।। भद्रकाल्यै नमो नित्यं सरस्वत्यै नमो नमः । वेदवेदान्त- वेदाङ्ग विद्यां देहि नमोस्तु ते ।। 
एहिसँ प्रार्थना कए प्रणाम करी ।

नाच-गान करैत दिन-राति बिताए, भोरे विसर्जन करी । तखनि कुश, तिल आ जल लए -
ॐ कृतैतत्साङ्गसपरिवार सरस्वती पूजनकर्म-प्रतिष्ठार्थमेतावद्दव्यमूल्यक - हिरण्यमग्निदैवतं यथानामगोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणामहं ददे । ब्राह्मणकें दय दी।

।। इति सरस्वतीपूजाविधिः॥

गुरुवार, 5 सितंबर 2024

चौठचन्द्र पूजा मंत्र, चौरचन पूजा मंत्र | Chaurchan Mantra | Dadhi Shankh Tusharabham Mantra

Chauth Chandra Puja Mantra
Chaurchan Puja Mantra in Sanskrit

चन्द्रमा प्रणाम मंत्र :-
‘दधि-शंख-तुषाराभं,   क्षीरोदार्णव-संभवम्।
नमामि शशिनं भक्त्या, शंभोर्मुकुट भूषणम्।।’

 चौरचन पूजा मंत्र :-
सिंह: प्रसेनवमवधीत सिंहो जाम्बवताहत: । सुकुमारक मारो दीपस्तेह्राषव स्यमन्तक: ।

अर्थात् दही, शंख ओ बर्फक समान स्वच्छ, क्षीर सागरसँ उत्पन्न चन्द्रमा (शशि) केँ भक्तिसँ प्रमाण करैत छी जे महादेवक मुकुटक भूषण थिका।



सोमवार, 5 अगस्त 2024

महा शिवरात्रि 2025 के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महाशिवरात्रि व्रत कथा

सब साल फाल्गुन कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी तिथि के भगवान शिव के अत्यंत प्रिय महाशिवरात्रि के व्रत कैल जाइत अछि। ओना त पूरे सालक प्रत्येक मासके कृष्ण पक्ष आ शुक्ल पक्ष के चतुर्दशी के भगवान शंकर के समर्पित मास शिवरात्रि के व्रत कैल जाइत अछि। मुदा सालभैर मे कैल जाइ बला सबटा शिवरात्रि मे सं फाल्गुन कृष्ण पक्ष के शिवरात्रि के बहुते बेसी महत्व अछि। अहि दिन विधि-विधान सं भगवान भोले शंकर केर पूजा क के हुनकर कृपा पा सकैत छि। 

महाशिवरात्रि के शुभ मुहूर्त 
महाशिवरात्रि तिथि - 26 फरवरी 2025
Maha Shivratri Kab Hai 2025 Me
Maha Shivratri Date - Wed, 26 February 2025

इहो पढ़ब:-

महाशिवरात्रि के पूजा विधि
शिवरात्रि के दिन सबसं पहिले चन्दन के लेप सं आरम्भ क सबटा उपचार के संग शिव पूजा कैल जाइछ। तांबा के लोटा मे पाइन या दूध भैर के ऊपर सं बेलपत्र, आक-धतूरे के फूल, दुइभ, चावल आदि शिवलिंग पर चढ़ाबल जाइछ, आ संगेह पंचामृत सं शिवलिंग के स्नान करै के चाहि। अहिके उपरांत ‘ऊँ नमः शिवाय’ मंत्र के जाप कैल जाइछ। 

शिवरात्रि के पूजा विधि के विषय मे सेहो अलग-अलग मत अछि -
सनातन धर्म के अनुसार शिवलिंग स्नान के लेल रात्रि के प्रथम प्रहर मे दूध, दोसर मे दही, देसर मे घृत आ चारम प्रहर मे मधु सं स्नान कैल जाइछ। चारु प्रहर मे शिवलिंग स्नान के लेल मंत्र सेहो अछि -
प्रथम प्रहर मे - ‘ह्रीं ईशानाय नमः’
दोसर प्रहर मे - ‘ह्रीं अघोराय नमः’
तेसर प्रहर मे - ‘ह्रीं वामदेवाय नमः’
चारम प्रहर मे - ‘ह्रीं सद्योजाताय नमः’।। मंत्र के जाप कैल जाइछ।

महाशिवरात्रि व्रत के पारण
धर्मसिन्धु के पृष्ठ 126 के अनुसार - यदि चतुर्दशी तिथि रात्रि के तीनो प्रहर के पूर्व समाप्त भ जाइछ तऽ पारण तिथि के अंत मे करबाक चाहि आ यदि ओ तीनो प्रहर सं आगु चैल जाइछ तऽ ओहिके बीचे सूर्योदय के समय पारण करबाक चाहि, जहनकि निर्णयसिन्धु के अनुसार यदि चतुर्दशी तिथि रात्रि के तीन प्रहर के पूर्व समाप्त भऽ जाइछ तऽ पारण चतुर्दशी के बीचे मे हेबाक चाहि, नै कि ओहिके अंत मे।

मानल जाइछ जे आजुके दिन सृष्टि के प्रारंभ भेल छल। ओतय ईशान संहिता मे बतायल गेल अछि जे - फाल्गुन कृष्ण चतुर्दश्याम आदिदेवो महानिशि। शिवलिंग तयोद्भूत: कोटि सूर्य समप्रभ:॥ फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी के महानिशीथकाल मे आदिदेव भगवान शिव करोड़ों सूर्य के समान प्रभाव बला लिंग रूप मे प्रकट भेल छलथि।

जहनकि कतेको मान्यता मे मानल जाइछ जे अहि दिन भगवान शिव आ माता पार्वती के बियाह भेल छलनी। गरुड़ पुराण, स्कन्द पुराण, पद्मपुराण आ अग्निपुराण आदि मे शिवरात्रि के वर्णन भेटैत ऐछ। कहल जाइछ जे शिवरात्रि के दिन जे व्यक्ति बेल पत्र सं शिव जी केर पूजा करैत अछि आ राइत के समय जागी क भगवान के मंत्र जाप करैत अछि, हुनका भगवान शिव आनन्द आ मोक्ष प्रदान करैत छथिन।

महाशिवरात्रि व्रत कथा
पौराणिक मान्‍यता के अनुसार प्राचीन काल मऽ चित्रभानु नामक एक शिकारी छल। जानवर के हत्या कऽ के ओ अपन परिवार के पालय-पोसय छल। ओ एकटा साहूकार के कर्जदार छल, मुदा ओकर ऋण समय पर नै दऽ सकल। क्रोधित साहूकार शिकारी के शिवमठ मऽ बंदी बना लेलक।। संयोग सं ओहि दिन शिवरात्रि छलै। शिकारी ध्यानमग्न भऽ के शिव-संबंधी धार्मिक गप्प सुनैत रहल। चतुर्दशी के ओ शिवरात्रि व्रत के कथा सेहो सुनलक। सांझ होइते साहूकार ओकरा अपना लग बजेलक आ ऋण चुकाबय के विषय में बात केलक। शिकारी अगिला दिन साबटा ऋण लौटा देबाक वचन दऽ के बंधन सं छूइट गेल। अपन दिनचर्या के भांति ओ जंगल मे शिकार के लेल निकलल, मुदा दिनभैर बंदी गृह मे रहबाके कारण भूख-प्यास सं व्याकुल छल। शिकार खोजइते ओ बहुते दूर निकैल गेल। जहन अन्हार भऽ गेल तऽ विचार केलक जे राइत जंगले मे बिताबय पड़त। ओ एकटा पोखरिक कात एकटा बेल कऽ गाछ पर चैढ़ कऽ राइत बीतेबाक इंतजार करय लागल।

बेल गाछक नीच्चा शिवलिंग छल जे बेलपत्र सं झँपै गेल छल। शिकारी कऽ ओय के पता नै चलल। पड़ाब बनाबैत समय ओ जे ठैड़ तोइर, संयोग सं शिवलिंग पर गिराबैत चैल गेल। अहि प्रकार दिनभैर भूखे-प्यासे शिकारी कऽ व्रत सेहो भऽ गेल आ शिवलिंग पर बेलपत्र सेहो चैढ़ गेल। एक पहर रात्रि बीतला पर एकटा गर्भिणी हिरणी पोखैर पर पाइन पीबय पहुंचल।

शिकारी धनुष पर तीर चढ़ा ज्हने प्रत्यंचा खींचलक, हिरणी बाजल, "हम गर्भिणी छी। शीघ्रेह प्रसव करब। अहाँ एक संगे दु जीवक हत्या करब, जे ठीक नै छैक। हम बच्चा कऽ जन्म दऽ कऽ शीघ्रे अहाँ समक्ष प्रस्तुत भऽ जायब, तहन माइर दीहें।" शिकारी प्रत्यंचा ढील कऽ देलक आ हिरणी जंगलक झोझर मऽ लुप्त भऽ गेल। प्रत्यंचा चढ़ेबाक आ ढील करय के समय किछ बेल पत्र अनायासे टूइट कऽ शिवलिंग पर खैस पड़ल।अहि प्रकार ओकरा सं अनजाने मऽ प्रथम प्रहर के पूजन सेहो सम्पन्न भऽ गेल।


कुछे देर उपरांत एकटा और हिरणी ओमहर सं  निकलल। शिकारी के प्रसन्नता कऽ ठिकाना नै रहल। लग एला पर ओ धनुष पर बाण चढ़ेलक। तहन ओकरा देख हिरणी नविनम्रतापूर्वक निवेदन केलक, "हे शिकारी! हम कनबी देर पहिले ऋतु सं निवृत्त भेलहुँ हं। कामातुर विरहिणी छी। अपन प्रिय के खोज मे भटैक रहल छी। हम अपन पति सं भेंट कऽ जलदीए अहाँ लग आबि जायब।" शिकारी ओकरो जाए देलक। दु बेरा शिकार कऽ गमै कऽ ओकर माथा ठनकल। ओ चिंता मऽ पैड़ गेल। रात्रि कऽ आखिरी पहर बीत रहल छल। अहियो बेरा धनुष सं लाइग कऽ किछ बेलपत्र शिवलिंग पर जा खसल आ दूसरो प्रहर के पूजन सेहो सम्पन्न भऽ गेल।

तहने एकटा आन हिरणी अपन बच्चा कऽ संग ओमहर सं निकलल। शिकारी के लेल इ स्वर्णिम अवसर छल। ओ धनुष पर तीर चढ़ाबय मे देर नै लगेलक। ओ तीर छोड़इये बला छल कि हिरणी बाजल, "हे शिकारी!' हम अहि बच्चा कऽ एकर पिता के हबाले कऽके घुइर आयब। अहि समय हमरा नै मारू।" शिकारी हैंसल आ बाजल, "सोंझा आयल शिकार क छोइड़ दियै, हम एहन मूर्ख नै। अहि सं पहिले दु बेरा अपन शिकार गमै चुकल छी। हमर बच्चा भूख-प्यास सं व्यग्र भऽ रहल हैत। उत्तर मऽ हिरणी फेर कहलक, "जहिना अहाँ कऽ अपन बच्चा कऽ ममता सता रहल ऐछ, ठीक ओहिना हमरो सेहो हे शिकारी! हमर विश्वास करु, हम एकरा एकर पिता लग छोइड़ तुरंते एबाक प्रतिज्ञा करै छी।"

इहो पढ़ब:-

हिरणी कऽ दीन स्वर सुइन शिकारी के ओकरा पर दया आबि गेल। ओ ओहि मृगी क सेहो जा'य देलक। शिकार कऽ अभाव मऽ आ भूख-प्यास सं व्याकुल शिकारी अनजाने मऽ बेल-गाछ पर बैस बेलपत्र तोड़ी-तोड़ी कऽ नीच्चा फेंकैत जा रहल छल। भोर होय बला छल तऽ एकटा हृष्ट-पुष्ट मृग वैह रस्ता पर आयल। शिकारी सोइच लेलक जे एकर शिकार ओ अवश्य करत। शिकारी कऽ तनल प्रत्यंचा देख कऽ मृग विनीत स्वर मऽ बाजल, "हे शिकारी! यदि अहाँ हमरा सं पहिले आबय बला तीन मृगि आ छोट-छोट बच्चा कऽ माइ देने छी, तऽ हमरा सेहो  मारय मऽ विलंब नै करू, ताकि हमरा ओकर  वियोग मऽ एक क्षण सेहो दुःख नै सहनाय पड़त। हम ओहि हिरणि क पति छी। यदि अहाँ ओकरा जीवनदान देलौं हं तऽ हमर सेहो किछ क्षण कऽ जीवन देबाक कृपा करू। हम ओकरा सं भेंट कऽ अहाँ सोंझा उपस्थित भऽ जायब।"

मृग क गप्प सुनिते शिकारी कऽ सोंझा पूरा रातिक घटनाचक्र घूमि आयल, ओ सबटा कथा मृग कऽ सुना देलक। तहन मृग कहलक, "हमर तीनों पत्नि जाहि प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध भऽ कऽ गेल ऐछ, हमर मृत्यु सं अपन धर्म कऽ पालन नै कऽ पायत। अतः जेना अहाँ ओकरा विश्वासपात्र मैन कऽ छोड़लौं हं, ओहिना हमरा सेहो जाय दि'अ। हम ओकरा सब कऽ संग अहाँ सोंझा शीघ्र उपस्थित होइत छी।"

शिकारी ओकरा सेहो जाय देलक। अहि प्रकार भोर भऽ गेल। उपवास, रात्रि-जागरण आ शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ेबा सं अनजाने मऽ मुदा शिवरात्रि के पूजा पूर्ण भऽ गेल। मुदा अनजाने मऽ कैल गेल पूजन कऽ परिणाम ओकरा तत्काल भेटल। शिकारी कऽ हिंसक हृदय निर्मल भऽ गेल। ओकरा मे भगवद्शक्ति कऽ वास भऽ गेल।

थोड़बे देर बाद ओ मृग सपरिवार शिकारी कऽ समक्ष उपस्थित भऽ गेल, ताकि ओ ओकर शिकार कऽ सकै। किंतु जंगली पशु कऽ एहन सत्यता, सात्विकता आ सामूहिक प्रेमभावना देख कऽ शिकारी कऽ बड़ ग्लानि भेल। ओ मृग परिवार कऽ जीवनदान दऽ देलक।

अनजाने मऽ शिवरात्रि के व्रत कऽ पालन केला पर सेहो शिकारी कऽ मोक्ष के प्राप्ति भेल। जहन मृत्यु काल मे यमदूत ओकर जीवन लऽ जेबाक लेल आयल तऽ शिवगण हुनका आपस भेज देलक आ शिकारी कऽ शिवलोक ले गेलाह। शिव जी के कृपा सं अपन अहि जन्म मे राजा चित्रभानु अपन पिछला जन्म के याद राइख सकलाह आ महाशिवरात्रि के महत्व कऽ बुझी कऽ अगला जन्म मऽ सेहो पालन कऽ पेलाह।