सोमवार, 13 अप्रैल 2015

मिथिलाक पावैन - जुड़ीशीतल

पर्यावरण तथा प्रकृति संग प्रेमक अनुपम नमूना! मिथिला धरोहर : भारतवर्षीय परंपरानुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथिकेँ मनाओल जायवला 'हिन्दू नव वर्ष' अलग-अलग संस्कृतिमे अपना तरहें मनायल जाइत अछि। मिथिलामे नव वर्ष वैशाख १ गते यानि संक्रान्ति दिन 'जुडि शीतल' केर रूपमे मनेबाक परंपरा अछि। 

जुडि शीतलक अन्य महत्त्वपूर्ण महता:
महान गणितज्ञ भास्कराचार्य सेहो औझके दिवससँ सूर्योदय एवं सूर्यास्त तक दिन, महीना आ वर्षक गणना करैत 'पंचांग' केर रचना केलैन। 

औझके दिन मर्यादा पुरुषोत्तम राम द्वारा दक्षिणक प्रजाकेँ बालीक अत्याचारी शासनसँ मुक्ति देबाक कथ्य अछि। त्राससँ मुक्त दक्षिणक प्रजा आजुक दिन घरे-घरे पावैन मनबैत गुड्डीरूपी विजय-ध्वजा फहराबैत छथि। महाराष्ट्रमे आइयो आजुक दिन आंगनमे गुडी ठाड्ह करबाक परंपरा अछि।

सदा निरोगी बनबाक लेल आजुक दिन कतहु पच्चडी/प्रसादम केर सेवन तऽ कतहु पूरन पोली तऽ कतहु मीठी रोटी केर पान कैल जाइछ। आजुक दिन गुड, निमक, नीमक फूल, तेतैर आ काँच आम केर सेवनक विशेष महत्त्व कहल जाइछ। गुडसँ मिठास पेबाक ध्येय, नीमक फूलकेर सेवनसँ तीतापन दूर करबाक ध्येय आ तेतैर तथा आमसँ जीवनक खट्टा-मीठा स्वादकेँ अनुभूति करबाक ध्येय रहैछ। कतेको ठाम लगातार ९ दिन - अर्थात् राम नवमी धरि एहि पर्व - नव-वर्ष मनेबाक परंपरा अछि। राम-नवमी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम रामकेर विवाह जनकदुलारी मैथिली यानि सीता संग करबैत पर्वक समापन होइछ।

मिथिला मे जुडि शीतल:
चैती नवरात्राक प्रारंभ आ राम नवमी मनेबा सँ लैत मिथिलामे सेहो पर्यावरण ओ प्रकृतिक पूजन लेल विशेषरूपसँ मनाबयवला जुडि शीतल पाबैनक अपन अलगे विशेष महत्त्व स्पष्ट अछि। चैती प्रतिपदाकेँ कलशस्थापना आ नौ दिनक देवी-पूजन, नौमी दिन रामनवमी आ तेकर उपरान्त दशमी आ फेर संक्राति दिन जुडि शीतल पाबैनकेँ मिथिलामे दुइ दिने मनायल जाइत अछि। एक दिन टटका आ दोसर दिन बसिया - यानि शुरुआत सतुआ आ गुडक सेवनसँ शरीरकेँ समुचित औषधीय पौष्टिक प्रदान करबाक ध्येय रहैछ। तदोपरान्त घरे-घर आइ विभिन्न व्यंजन यथा दालि भरल पूडी यानि दैलपुडी, मुनिगाक विशेष तरकारी, छनुआ बरी, सतुआ भरल पूडी, दही आदि केर सेवन कैल जाइछ। आमक टिकुला आ तेकर चटनीक आइ विशेष महत्त्व होइछ। 

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वैशाख मासकेँ पूर्णिमास मानल जाइछ। वर्षकृत्यमे एहि दिनक ओहिना महत्त्व होइछ जेना माघ मास, ओहि समय जाडक अनुसार लोकक भोज्य पदार्थ गरम प्रकृतिक (जेना तिल आ गुड - खिचडी, घी, दही, पापड, तरुआ आदि) आ पितरक निमित्ते जाडहि अनुरूप दान-दक्षिणा देबाक प्रचलन छैक, ठीक तहिना वैशाख मासक सेहो ओतबे महत्त्व छैक आ भोज्य पदार्थ ठंढा प्रकृतिक (सतुआ, गुर, बरी, दही, सर्वत आदि) खेबाक आ पितरक नामपर गर्मी लायक दान जेना पंखा, छाता, जुत्ता आदि दान कैल जाइछ आ लोककेँ शीतल पेय केर भेंट कैल जयबाक विधान छैक।

आजुक दिन जलसँ विशेष कलश आदि भरि कय खुलल आकाशमे चन्द्रमाक सोमरस प्राप्तिक उद्देश्यसँ राखल जाइछ। दोसर दिन भने चुल्हा नहि जरेबाक विधान अछि। मात्र बसिया भोजन यानि काल्हि बनायल गेल बरी आ भात केर भोग देवता-पितर, घर-दुआरि, चौखैट-मोख आदि केँ सेहो देल जाइछ। तहिना पितर आदिकेँ सेहो बसिया जलसँ सींचन करैत, समाधि (सारा) पर बाँसक छिपिंगी के दू बगली गारि बीचमे माटिक डाबाकेँ अपनेसँ बाँटल साबेक डोरीसँ बान्हि - डाबाक जैडमे कनेक भूर कय ओहिसँ कूशक छीप नीचाँ मुँहें राखि डाबामे जल भरि पितरकेँ सेहो तृप्त होयबाक लेल सखा-संतान द्वारा समर्पण कैल जाइछ, खेत, खरिहान, कलम, गाछी, बारी, झारी, माल, जाल, धिया, पुता, घर, अंगना सबठाम घरक बुजुर्ग द्वारा बासि शीतल पाइनिक छींटा देल जाइछ। 

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हरेक पारिवारिक सदस्य द्वारा अपन माय-बाप व श्रेष्ठादिसँ जलक छींटा माथपर गोर लगैत ग्रहण कैल जाइछ। 'जुडाइत रहू - जुडाइत रहू' कहि आशीर्वादित होइत सब कियो अपन-अपन ईष्ट मित्र संग आजुक दिन विशेष रूपसँ जल आ माटि-कादो संग होलिये जेकाँ खूब धूरखेल खेलाइत छथि। दुपहरियामे स्नान-ध्यान सँ निवृत्ति पाबि युवा तुरिया सब कलम-गाछी दिशि जाइत छथि। सब गाछकेँ जुडेला उपरान्त क्रीडाक धुनमे शिकार सेहो खेलाइत छथि। मान्यता छैक जे आजुक दिन फसलकेँ नष्ट करऽवला जीब जँ सामने अभैर जाय तऽ ओकरा जरुर बद्ध करबाक चाही। नर्हिया, खिखिर, खर्हिया आदि विशेष रूपसँ युवा सबहक शिकार बनैत अछि। खूब हू-हा आ मनोरंजनात्मक दृश्य बनैत अछि। अलग-अलग टोली विभिन्न दिशामे छिडकल रहैत छथि, जहाँ कतहु कोनो शिकार नजैर पडैत छन्हि आ कि होहकारा शुरु होइछ आ लोक सब शिकारक पाछाँ दौडि पडैछ। शिकारमे मारल गेल जीवक माँस एक-दोसरकेँ कनेक-कनेक प्रसाद जेकाँ बाँटल जाइछ। 

पाबैन केर सुखद संदेश:
उपरोक्त चर्चामे शालिवाहन द्वारा माटिपर जलक सिंचनसँ नव जीवन प्राप्ति आ नव उर्जासँ शत्रुदमन केर संदेश, संगहि अपन चारूकात रहल पर्यावरण संग मानवीय हित प्रति कृतज्ञता एहि पाबैनिक आध्यात्मिक संदेशरूपमे हमरा सब लेल स्पष्ट अछि आ निरंतर अनुकरणीय अछि। वर्तमान ग्लोबल वार्मिंग मे मानव लेल एहि महत्त्वपूर्ण संदेशकेँ आत्मसात करैत जीवनचर्या परिभाषित करबाक बहुत पैघ आवश्यकता सनातन हिन्दू धर्म ओ हमरा लोकनिक पुरखाक कुशाग्रताकेँ स्पष्ट करैत अछि।

वैज्ञानिक प्रासंगिकता:
एहि पाबैनिक समय दू अलग ऋतुकेर संधिकाल रूप थीक। एहि समय राति छोट आ दिन पैघ होमय लगैछ। प्रकृति नव रूप पकेड लैछ। एना लगैछ जे प्रकृति नवपल्लवरूपमे आबि सगर संसारकेँ नव-उर्जा प्रदान करब शुरु कय दैछ। मानव, पशु-पक्षी, जड-चेतन - समस्त प्रकृति प्रमाद ओ आलस्यकेर त्याग करैत सचेतन अवस्थाकेँ प्राप्त करैछ। एहि समय बर्फ सेहो पिघलनाय शुरु करैत अछि। आम पर टिकुला लागि जाइछ। 

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विक्रम संवत केर माहात्म्य:
एहि प्रतिपदाक दिन आइ सँ २०७१ वर्ष पूर्व उज्जयनी नरेश महाराजा विक्रमादित्य विदेशी आक्रांत शक सँ भारतवर्षीय-भूमि केर रक्षा केलनि आ अही दिन सँ कालकेर गणना प्रारंभ भेल। उपकृत राष्ट्रादि सेहो यैह महाराजाक नामस विक्रमी संवत कहि संबोधन कयलक। महाराज विक्रमादित्य राष्ट्रकेँ सुसंगठित कय शक केर शक्तिकेँ उन्मूलन करैत देशसँ भगौलनि आ शक सबहक मूल स्थान अरब मे विजयश्री प्राप्त केलनि। संगहि यवन, हूण, तुषार, पारसिक तथा कंबोज देशादि पर सेहो अपनी विजय ध्वजा फहरौलनि। हुनकहि  स्मृति स्वरूप एहि प्रतिपदा संवत्सर केर रूप मे मनायल जाइछ और यैह क्रम पृथ्वीराज चौहान केर समय तक चलल। महाराजा विक्रमादित्य नहि केवल भारत केर वरन् समस्त विश्वक सृष्टि कयलन्हि। सबसँ प्राचीन कालगणनाक आधार पर प्रतिपदा केर दिनकेँ विक्रमी संवत केर रूप मे अभिषिक्त केलनि। 

अही दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् रामचंद्र केर राज्याभिषेक अथवा रोहण केर रूप मे मनायल जाइछ। यैह दिन वास्तव मे असत्य पर सत्य केर विजय दियाबयवला छी। यैह दिन महाराजा युधिष्टिर केर सेहो राज्याभिषेक भेल आर महाराजा विक्रमादित्य सेहो शक सबपर विजय केर उत्सवक रूप मे मनौलनि। आइयो यह दिन हमरा सबहक सामाजिक और धार्मिक कार्यकेर अनुष्ठानक धुरी-रूप मे तिथि बनिकय मान्यता प्राप्त कय चुकल अछि। यैह राष्ट्रीय स्वाभिमान आ सांस्कृतिक धरोहरकेँ बचाबयवला पुण्य दिवस थीक। हम सब प्रतिपदा सँ शुरु करैत नौ दिन मे छह मासक लिए शक्ति संचय करैत छी, फेर आसिन मासकेर नवरात्रि सँ शेष छह मासक लेल शक्ति संचय करैत छी।

(सन्दर्भ: विभिन्न स्रोत आ पूर्व-लिखित आलेखादि)

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