मिथिला धरोहर, प्रभाकर मिश्रा : 'पाग' मिथिलाक परंपरा के एकटा प्रतीक अछि। 'पाग' मिथिला मे सम्मानक प्रतीक अछि। 'पाग' मिथिला के पहचानक सेहो प्रतीक अछि। 'पाग, जेकरा पहिर के लोग स्वयं केर गौरवान्वित अनुभव करैत छथि। मिथिलांचल मे अपन अतिथि के सम्मान देबाक लेल हुनका 'पाग' पहिराबय छथि। कवि कोकील श्री विद्यापति सँ ल के आजुक महानुभाव केर बीच सम्मानक रूप मे प्रचलित 'पाग' के अपन विशिष्ट महत्ता अछि।
ओना त शास्त्र मे एहन कुनो विशेष समय के उल्लेख नय भेटय अछि जे कहल जाय जे फलां समय मे फलां व्यक्ति एकर शुरूआत केलैथ। मुदा अतेक जरूर कहल जा सकैत अछि जे समय के बदलैत चक्र के संगे पागक वर्तमान स्वरूप हमरा सबक सोंझा आयल।
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आजुक पाग बीसवीं सदी के उत्तरार्ध केर देन अछि, जेकरा कुलाचार और लोकाचारक संगे फैशनक रूप मे सेहो अंगीकार क लेल गेल।भले ही चित्रकार अपन कल्पना केर आधार पर कवि कोकिल विद्यापति केर माथ पर एही पाग के देखेने हेथिन।
मिथिला संस्कृति मे गर्भाधान सँ ल के श्राद्घकर्म धरि सोलह संस्कार के समायोजित कैल गेल अछि। एही संस्कार मे सर्वप्रथम उपनयन संस्कार और ओकर बाद विवाह संस्कार मे पाग केर प्रचलन अछि। पाहिले साठा पाग'क चलन छल, जेकरा अमूमन साइठ हाथक कपड़ा सँ बनायल जाइत छल और एकरा पहिरय वाला स्वयं एकरा अपन माथ पर बांधय छलैथ। मुदा समय बदलल और लोगक सोच सेहो, से पाग अपन प्रारंभिक अवस्था सँ आधुनिक अवस्था मे पहुंच चुकल अछि। मुदा अतेक त जरूर कहल जा सकैत अछि जे पाग आयो भी हमरा सबक संस्कृति के पहचान अछि।
पहिले कोढि़ला सँ पाग बनय छल, मुदा आब ओ उपलब्ध नय भ पेबाक कारण बत्तीस औंसक कूट सँ पाग'क ढ़ांचा तैयार कैल जाइत अछि, फेर मलमल या सूती कपड़ा सँ ओकरा छाड़ल सजायल जाइत अछि। पाग के उपरी भाग के चनवा कहल जाइत अछि जाहि पर तिकोना कूट लगायल जाइत अछि, जेकरा त्रिफला कहल जाइत अछि। पाग के आगु भाग के आगूक चूनन ओकर नीच्चा मुड़ल भाग के पेशानी आ पाछु के हिस्सा के पिछुआ कहल जाइत अछि।
मिथिला मे मांगलिक, संस्कृति आ धार्मिक परियोजनक अनुसार अलग - अलग रंगक पाग पहिरबाक परम्परा सेहो अछि, जेना उपनयन संस्कारक अवसर पर पियर पाग, शादी बियाहक शुभ अवसर पर ललका पाग, कुनो तरहक धार्मिक परियोजनक अवसर पर उज्जर रंगक पाग पहिरल जाइत अछि।
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