बुधवार, 8 मार्च 2017

मैथिली कविता : 'नारी' आब त्याग अपन लाचारी !

तौइर् दे चुप्पी मुंह खोल अपन
आसमान मे उर तौइर् सब बन्धन
केकरो मुठ्ठी मे कैद नय रह
कीयो क'ले चाहे कतेबो जतन
अहाँक वस्त्र पर टिप्पणी नय होय केतौ
चाहे पहिरे चिन्स या साड़ी
'नारी' आब त्याग अपन लाचारी।

उठ ठाड़ होउ आब चैलते रहु
आंगिक धधरा सन जैरते रहु,
लोग समाजक परवाह नय करु
निश्चल पथ पर आगू बैढ़ते रहु
अंहिसँ जीवनक होय आरम्भ
अंहि सगरो श्रिष्टि के अधिकारी
आब त्याग अपन लाचारी।

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दहेजक लेल किया अहाँ मरम
राह चलैत किया अहाँ डरब
मोनक भीतर सँ डर हटा लिअ
केकरो गुलामी किया अहाँ करब
दुष्टक संघार करवा के लेल
आब क'लिअ सिंह सवारी,
आब त्याग अपन लाचारी।

अहाँक नाम एक मुदा रूप अनेक
घर-घर पहुँचाय इ एक संदेश
होइत नारी के सम्मान जतय
करय छथि ओतय लक्ष्मी प्रवेश
अंहिक देवी रूप मे पूजैत ऐछ
कतउ बेचय ऐछ बैन व्यपारी
आब त्याग अपन लाचारी।
© साभार - प्रभाकर मिश्रा 'ढुन्नी

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