शनिवार, 24 जून 2017

Raja Salhesh Ki Kahani | लोक देवता राजा सलहेस के इतिहास, किया पूजल जाइत छनि हिनका?

मिथिला धरोहर : महाराज सल्हेश केर जन्म मधुबनी जिला सँ सटल नेपाल के महिसौथा मे भेल छलनी। हिनक पिता के नाम सोमदेव और माँ के नाम शुभ गौरी छलनी। विराट नगर के राजा श्री हलेश्वर केर बेटी सत्यवती सँ हिनकर बियाह भेल छलनी। श्री सल्हेश पूर्व मे जयवर्द्धन केर नाम सँ जानल जाइत छलथि मुदा बाद मे सर्वसम्मति सँ राजतिलक केर समय हिनकर नाम श्री जयवर्द्धन सँ शैलेश पड़ि गेलनि। कालान्तर मे शैलेश सल्हेश भऽ भेलथि। श्री भंडारी तरेगनागढ़ के राजा छलथि, जिनका चाइर गो बेटि छल। बेटि सब मालिन सम्प्रदाय के स्वीकार कऽ छली और आजीवन अविवाहित रहबाक के व्रत लऽ रखने छली।कुसमा, जे सबसँ छोट छली, शिव उपासक आ सिद्ध योगिनी हेबाक संगे-संग राष्ट्र्हित्कारिणी सहो छली। एक पथ के पथिक हेबाक कारणे सल्हेश केर चारु बहिन सँ प्रेम भऽ गेलनि। सल्हेश दु भाई छलथि और हुनक एकटा बहिन बनसपती छली। ओ चीन और भूटान के आक्रमण सँ मिथिला के बेर-बेर रक्षा करैत रहली। हिनक प्रतिद्वंद्वी वीर चौहरमल छल, जे बहुते बड़का महर्षि योद्धा छल।
अलौकिक और दिव्य शक्ति प्राप्त कऽ बनलैथ पूजनीय
प्रो० राधाकृष्ण चौधरी लिखित “Mithila in The Age Of Vidyapati” मे राजा सल्हेश केर पूजा के और हुनकर गीत आ गाथा पर आधारित नृत्य के उल्लेख भेटय अछि स्पस्ट अछि जे राजा सल्हेश केर पूजा के परम्परा बहुते प्राचीन अछि ओहि समय मिथिला के मूलवासि मे सेहो शुद्र राजा भेल करैत छलथि और अपन अलौकिक कृति आ पौरुष केर कारण दिव्य व्यक्तित्व के प्राप्त कऽ पूजनीय भऽ जाइत छलथि। राजा सल्हेश ओहि कोटि केर मिथिलावासी छलथि जे अपन पराक्रम, शौर्य और विशिष्ट व्यक्तित्व के कारण तत्कालीन मिथिला के राजा बनलैथ आ अपन कार्यकाल मे अनेको कल्याणकार्य केलनि।  अपन कर्म के बल पर देवत्व प्राप्त कऽ देवता केर श्रेणी मे आबि गेलाह और आयधरी श्रद्धा, निष्ठां सँ घर-घर जन-जन मे हुनक पूजा होइत अछि।

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कोना होइत अछि हुनकर पूजा ?
मिथिलांचलक गाँव मे सल्हेश पूजा केर समय हुनक भगत अथवा भगता अर्द्धनग्न शरीर पर लाल रंगक जंघिया गर्दन मे माला, एक हाथ मे अक्षत और दोसर हाथ मे बेंत राखैत भाव-विभोर भऽ जाइत अछि। झाल-मृदंग पर भाव -गीत गाबैत लोग सल्हेश केर अध्यात्म मे पारलौकिकता के अनुभव करैत छथि। गह्वर के सोंझा माटिक E टाइप कऽ पिंड बनायल जाइत  अछि। अहिक बगल मे बेदी बनायल जाइत अछि। ओतहि अड़हुल, कनैल के फुल सरर , अगरवत्ती, चीनी कऽ लड्डू खीर, पान, सुपारी, गांजा, खैनी, पीनी, जनेऊ,अरवा चाउर, झांप, फल, प्रसाद आदि सामग्री राखल जाइत अछि।

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सब ग्रामीण साफ़-सुथरा वस्त्र मे निष्ठां सँ डाली लगाबै छथि। भगता के ऊपर बारी-बारी सँ सल्हेश आ हुनक पार्षद के भाव आबय अछि। गोहारि होइत अछि। प्रसाद अक्षत लऽ के मंगल कामनाक संगे लोग अपन-अपन घर जाइत अछि। भगत के खीर कऽ भोजन कराओल जाइत अछि। पूजा आरम्भ करबा सँ पहिले भगत सब लोकदेवता के आवाहन भगत गाबि कऽ और पूजा ढ़ार कऽ करैत अछि। व्यक्तिगत पूजाक संग-संग साल मे एक बेरा सामूहिक पूजा सेहो उत्सब कऽ रूप मे कैल जाइत अछि।

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