कतय छी हे अम्बे, श्रवण चखु मुनने, 
दशा की ने देखी सुनइ छी न अपने ?
हमर दुर्दशा की अहाँ नै देखै छी, 
हमर ई व्यथा की अहाँ नै बुझै छी 
जगत व्यापनी की जनइ छी न,
दशा की ने देखी सुनइ छी न अपने
सुनल अछि कतेको कथा माँ दया के 
सुनल अछि अनेको अमर कीर्ति माँ के 
शरण मे एलौ तँ सम्हारु ने अपने। 
दशा की ने देखी सुनइ छी न अपने
धरणि सँ गगन धरि अहिकेर माया, 
अहिकेर सुधा सँ बनल शुभ्र काया, 
तखन मंजुषा कोन छी नेह रखने। 
दशा की ने देखी सुनइ छी न अपने।
रचनाकार: मैथिली पुत्र प्रदीप (प्रभुनारायण झा)
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