शनिवार, 11 सितंबर 2021

बिहार के लोकगीत के साधिका, स्वर कोकिला : पद्मश्री विंध्यवासिनी देवी

'गरजे-बरसे रे बदरवा, हरि मधुबनवा छाया रे..', 'सात ही घोड़वा सुरूज देव देव रथे अ सवार..', 'हरि मधुबनवा छाये रे..', 'हमसे राजा बिदेसी जन बोल, हम साड़ी न पहिनब बिदेसी हो पिया देसी मंगा द..' आदि कतेको लोक गीतक रचियता आ बिहार के स्वर कोकिला गायिका विंध्यवासिनी देवी ( Padmashri Vindhyavasini Devi ) के जन्म 5 मार्च 1920 के मुजफ्फरपुर मे हुनकर नानी के घर मे भेल छलनी। विंध्यवासिनी देवी के लालन-पालन आ प्रारंभिक शिक्षा हुनकर नानी गामे मे भेलनि। हुनकर पिता के नाम जगत बहादुर छलैन। 


हुनकर नाना चतुर्भुज सहाय भजन के गबैय्या छलखिन। विंध्यवासिनी देवी सेहो हुनका संगे बैस के भजन गाबय छलथि। एतय सं हुनकर मोन संगीत मे लागय लगलनि आ 7 वर्षक उम्र धरि आबैत -आबैत ओ लोक गीतके गायन मे सिद्ध भ चुकल छलथि। 

विंध्यवासिनी देवी के विवाह मात्र 11 वर्षके आयु मे सोनपुर अनुमडल स्थित दिघवारा निवासी सहदेश्वर चंद्र वर्मा सं भ गेलनि। ओहि समय कुनो महिला के गेनाइ-बजेनाइ ठीक नै मानल जाइत छल। बावजूद अहि बातके दरकिनार करैत विंध्यवासिनी के पति आगु बढ़बाक मौका देलखिन। विंध्यवासिनी के पति स्वयं एकटा पारसी थियेटर के जानल-मानल निर्देशक भेल करैत छलथि।


इहो पढ़ब :-

● भारती दयाल मिथिला पेंटिंग के बनेलनी अपन पहचान, देश-विदेश मे क रह छथि मिथिलाक नाम उंच


1945 मे विंध्यवासिनी के पहिल सार्वजनिक कार्यक्रम भेलनि। पटना एबाक उपरांत ओ हिन्दी विद्या पीठ, प्रयाग सं विशारद आ देवघर सं साहित्य भूषण के उपाधि प्राप्त केलथि आ फेर पटना के आर्य कन्या विद्यालय मे संगीत शिक्षिका के रूप मे नौकरी शुरू केलथि। 1949 मे लड़की के संगीत शिक्षा के लेल ओ विंध्य कला मंदिर के स्थापना करेलथि। 

1948 मे विंध्यवासिनी देवी द्वारा निर्मित संगीत रूपक ‘मानव’ के जबर्दस्त ख्याति भेटलनि। तहन आकाशवाणी के तत्कालीन महानिदेशक जगदीश चंद माथुर के धियान विंध्यवासिनी देवी के दिस आकृष्ट भेलैन आ ओ हुनका आकाशवाणी के पटना केंद्र मे लोक संगीत प्रोड्यूसर के पद पर नियुक्त केलथि। पटना आकाशवाणी सं 'भइले पटना में रेडियो के शोर तनी सुनअ सखिया..' गीत के पेश क सुर्खि मे एलथि। अहि पद पर काज करैत देवी वर्ष 1962 मे भारत-चीन युद्धक समय जवान के हौसला बढ़ेबाक लेल कतेको गीत लिखलथि। 1980 धरि ओ अहि पद पर कार्यरत रहलथि।


इहो पढ़ब :- 

● स्व० पद्मश्री महासुंदरी देवी: मिथिला पेटिंगक माय


लोक गीतके ख्याति भेटलैन त देवी के वर्ष 1954 मे भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा सगीत नाटक अकादमी के दिस सं ‌र्स्वण पदक सम्मान भेटलनि। मैथिली, मगही आ भोजपुरी संगीत मे हुनकर योगदान के लेल 1974 मे पद्मश्री सम्मान सं सम्मानित कैल गेल गेलनि, संगे संगीत नाटक अकादमी सम्मान, बिहार रत्‍‌न सम्मान, देवी अहिल्या बाई सम्मान (1997), भिखारी ठाकुर सम्मान, मॉरीशस के दिस सं बृजेंद्र भगत मधुकर सम्मान (1995) आदि पाबि चुकली देवी के कद काफी ऊंच रहलनि।

विंध्यवासिनी देवी फिल्म मे सेहो सफल रहलथि। फिल्म मे हुनकर शुरुआत मगही फिल्म ‘भैया’ सं भेलनि, अहि फिल्मों मे गीतक बोल विंध्यवासिनी देवी के छलनी। विंध्यवासिनी जी मैथिली फिल्म 'कन्यादान' के लेल संगीत निर्देशन आ गीत लेखन के सेहो कार्य केलथि। एकर अलाबा फणीश्वरनाथ रेणू के उपन्यास ‘मैला आंचल’ पर आधारित फिल्म ‘डागडर बाबू’ के लेल आर.डी. बर्मन के निर्देशन मे ओ दु टा गीत लिखने छलथि। विंध्यवासिनी देवी जी भोजपुरी फिल्म 'छठी मइया की महिमा' मे सेहो गीत गेलथि। हिनकर अबाज मे छठी गीतक पहिल एलबम 'छठी मईया के पूजनवा' 1960 के आसपास निकल छल। 


18 अप्रैल 2016 के विंध्यवासिनी देवी कला जगत सं विदा ल अंतिम सास लेलथि।  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अपन रचनात्मक सुझाव निक या बेजाय जरुर लिखू !