मिथिला मे प्रकाश पर्व दीयाबाती के विशेष महत्व छैक। एतय अहि दिन घरे-घर लक्ष्मी जी आ गणेश जी के संगे राम सीता जी के सेहो पूजा कैल जाइत अछि। सीता जी मिथिला के बेटी छलखिन आ राम रावण के माइर कऽ सीता जी के सकुशल अयोध्या अनलखिन। ताहिलेल एतय सब साल दिबाली के दिन घर घर दीप जरा खुशि मनायल जाइत अछि।
मिथिला मे दिवाली के सांझ दीप जरेबाक संग उल्का भ्रमण के परंपरा अछि। इ वास्तव मे महालय यानी पितृपक्ष मे स्वर्ग लोक के त्याग कऽ मर्त्यलोक पहुंचल पितर के परम गति के कामनाक संग आपस लौटबाक राह देखाबैत अछि। शास्त्र मे कहल गेल अछि - ‘शस्त्रशस्त्रहतानं च भूतानां भूतदर्शयो. उज्जवलज्योतिषा देहं निर्दहे व्योमवहिृनना. अगिदग्धाध ये जीवा योडज्यदग्धा कुले मम. उज्जवलज्योतिशा दग्धास्ते यांतु परमां गतिम।
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उल्का भृमण मंत्र के संग खर आ संठी सं निर्मित ऊक के पूजा घर के मुख्य दीप सं जड़ा कऽ घर-आंगना अहि मंत्र के संग ऊक देखाबैत घर सं दूर चौराहा या अंगनाक एकटा कात मे एकरा त्याग देल जाइत अछि जतय सं दु टा संठी आपस अनबाक बिध अछि। अहि संठी के उपयोग आधा राइत रात के बाद सूप पीटैत कहै छथि ''अनधन लक्ष्मी घर आऊ, दरिद्र बहार जाऊ" अहि पन्ति संगे दरिद्रता के घर सं बाहर कऽ राह दिखेबाक बिध-विधान स्त्रीगण पूर्ण करैत छथि। अहि प्रसंग पर गौर करि तऽ इ अज्ञानता रूपी अंधकार सं ज्ञान प्रकाश के दिस बढ़बाक आ सजग रहबाक प्रेरणा दैत अछि।
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हुक्का लोली, उक्का पाती :-
दिवाली सं एक-दु दिन पहिले घरक नमहर बच्चा फाटल-पुरान कपड़ा कऽ गोल गेंद बना कऽ राइत भरी मटिया तेल (केरोसिन) मे डूबा कऽ राखैत अछि। दीबाली दिन ओकरा नमहर तार मे बांइध आ आइग लगा कऽ गोल-गोल घूमावल जाइत अछि, "हुक्का लोली खेलय छी, मच्छर कऽ झरकाबय छी" एकरे हुक्का-लोली या हुक्का पाती कहल जाइत अछि। पटाखा के जगह मिथिलाक गांव मे पहिले यैह होइत छल मुदा आधुनिकता के दौर मे कुछ गाम मे हुक्का-लोली के पुराण परंपरा आयो कायम अछि।
Atek nik lagal je aankhi se nor khasi rahal achhee aa likhi rahal chhi je ehi aan
जवाब देंहटाएंhar ke rasta dekhelahoo tahi hetu jagiya lay ham jiyab ahan sabhak rini rahab