मंगलवार, 23 नवंबर 2021

गोनू झा के चार सौ बीस ठोप

गोनू झाक राज्य मे भयंकर सुखाड़ पड़ल छल। प्रजा पानी के लेल त्राहि-त्राहि करय लागल। राजा बहुते यज्ञ-जाप केलक, मुदा वर्षा हेबाक नाउ नै लऽ रहल छल। अंततः राजा पुरा इलाका मे ढोल पिटवा देलक जे एकर समाधान निकालत, ओकरा राजकीय सम्मान प्रदान कैल जायत आ ओहन व्यक्ति के अननिहार सेहो पुरस्कृत हैत। पुरस्कारक लालस मे लोग सब ओमहर-आमहर ताकय लागल। तीन-चाइर दिनक अंदरे दरबार मे एकटा खूब मोटगर साधु बाबा पहुँचल।


हुनकर ललाट पर बीस टा ठोप सुशोभित छलैन।   अपने कहलैथ, 'महाराज, हमर नाम 'बीस ठोप बाबा' छी। हम हिमालय के कंदरा मे तीन सौ बीस वर्ष सं तपस्यारत छलहुँ आ अहाँक राज्य मे भीषण सुखाड़ सुनी ओतय सं एलहुँ हन। हमरामे यज्ञ द्वारा वर्षा करेबाक अदभुत क्षमता ऐछ।

राजा खुश भऽ गेलाह आ बाबा के कहल स्थान पर दोसरे दिन यज्ञ करेबाक आदेश निर्गत केलैथ। सांझ होइते सबटा सामग्रि बाबा के दऽ देल गेल, धन-धान्य कऽ ढेर लागि गेल ताकि यज्ञ मे कुनो चूक नै होय। इ बात संपूर्ण राज्य मे जंगलक आइग जँका पसैर गेल। प्रजा के खुशीक ठिकाना नै रहल। गाँव-गाँव सं लोग 'बीस ठोप बाबा' के दर्शन, सेवा के लेल पहुँचय लागल। 


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वैह सांझ गोनू झा कतौ सं पहुनाई कऽ लौटल छलैथ। हुनकर कनियाँ बाबा कऽ बखान अत्यंत बैढ-चैढ कऽ केलकैंनी। चर्चा-प्रशंसा सुइन गोनू झा के घर मे चैन कहाँ! ओ बाबा के दर्शनार्थ लेल आतुर भऽ रहल छलैथ। कनियाँ मना करैत कहलकनी, 'अहाँ तऽ अपने बहुते दूर सं आयल छी; थाकलो हैब आ सांझ सेहो भऽ गेल ऐछ, तैं भोरे दर्शन कऽ आयब।' मुदा गोनू झा के तऽ जेना बीड़नी काइट लेने होइन, नहा-धोय कऽ झोरा मे एमहर-ओमहरकऽ सामान लऽ विदा भऽ गेलाह। 

तहने हल्ला भऽ गेल जे पूरा तामझाम सं एकटा बाबा पधारलैथ हन, ओहो राजा के अनावृष्टि सं उबारबा के लेल हिमालये सं पधारलैथ हन। ओहो पूरा मुंह पर 'चार सौ बीस ठोप' चकमका रहल ऐछ।


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गामवासी हुनका बीस ठोप बाबा सं भेंट कराबय लऽ गेल। अपना सं बहुते बेसी ठोप लागल देख ओ ईष्या सं कहलैथ, 'हमर नाम श्री श्री 108 बीस ठोप बाबा छी। हम जतए चाहब, यज्ञ सं वर्षा करवा दै छी।' फेर ओ क्रोध सं डपटैत कहलैथ, 'तु के छं ?'

चाइर सौ बीस ठोप बाबा सहज भाव सं कहलैथ, 'हमरा लोग 'चाइर सौ बीस ठोप बाबा, कहैत ऐछ। छी तऽ हम वज्रमूर्ख, मुदा पूज्यवाद पिताजी हमरा एकटा एहन बाँस दऽ गेलाह ऐछ, जाहिसँ इच्छित स्थान मे वर्षा करा लए छी। बीस ठोप बाबा चकित भऽ पूछला, 'एतेक नमहर बांस राखैत कहाँ छियै?

चाइर सौ बीस ठोप बाबा हुनका आँइख मे आँइख दैत आ पोल खोलबाक लहजा मे कहलैथ, 'अहाँ एहन साधु के मुँह मे।' अतेक सुनैते बीस ठोप बाबा सहम गेल आ झटपट शौच जेबाक लेल उठल। चाइर सौ बीस ठोप बाबा सेहो ओकरा पाछु-पाछु विदा भऽ गेला।


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आगू गेला पर चाइर सौ बीस ठोप बाबा के लोग घेर लेलक आ बीस ठोप बाबा शौच के लेल आगू बैढ गेल। चाइर सौ बीस ठोप बाबा भीड़ कऽ समझाबैत-बुझाबैत बीस ठोप बाबा के पाछु दौड़ला आ ललकारा दइत कहला, 'अपन कमंडल आ खड़ाऊँ त लइत जाऊ।'

बीस ठोप बाबा अनसुना करैत और नकली जटाजूट नोंइच फेंकैत भागय लागल। ग्रामवासि 'ढोंगी' 'ढोंगी' कैह कऽ पाछु केलक, मुदा ओ अँधेरा कऽ लाभ उठाबैत नौ दु ग्यारह भऽ गेल। ग्रामीण तहन चाइर सौ बीस ठोप बाबा कऽ घेर लेलक। भीड़ बढैत देख ओ चोंगा बदललैथ। कृतिम दाढी-मोछ हटिते ग्रामवासि गोनू झा के चिन्ह लेलक।

गोनू झा संबोधित करैत कहलैथ, हम जतए गेल छलहुं, ओतहुओ एहने प्रकारक घटना भऽ चुकल ऐछ, तैं आबिते एकरा बारे मे सुइन कान ठाड़ भऽ गेल; माथा ठनकल जे कतौ हमरो राजा सेहो नै झाँसा मे आबि जाथिन, ताहिलेल बिना एको क्षण गवने असलियत जानय लेल आबि गेलहुँ। नतीजा अहाँ लोगक सोंझा ऐछ। 

राजा ढोंगी साधु सं राज्यक रक्षा हेतु गोनू झा के तहेदिल सं सम्मान-पुरस्कार देलथि।

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