गुरुवार, 11 मई 2023

मैथिली कहानी : गोनू झा और उजालाक गाछ

एक बेर ईरान सँ एकटा व्यापारी मिथिलाक दरबार मे आयल छल। ओ बहुत धनिक छल आ एखनो बहुत मुनाफा कमा कए अपन देश वापस लौट रहल छल। रस्ता मे कतहु सुनने छल जे मिथिला मे विद्वानक कोनो कमी नै अछि। व्यवसायी सेहो विद्वान लोकनिक बहुत सम्मान करैत छल। ओ विचार केलक जे मिथिला दरबारक कोनो विद्वान जँ ओकर पहेलीक उत्तर दऽ सकैत छथि तऽ हुनकर  सम्मान करैत, बहुत रास पुरस्कार दऽ के जायत।

ओ दरबार पहुँचल तऽ ओकरा लग एकटा लकड़ीक बक्सा छल। महाराज के प्रणाम कऽ अपन परिचय देलक।

"जहाँपनाह, हम ईरान'कऽ बनिया हबीबुल्लाह छी। जखन हम भारत सँ कारोबार कऽ के घुरैत रही तखन अहाँक दरबारक प्रशंसा सुनलहुँ। हमरा सुनबा मे आयल जे एतय एक सँ बैढ कऽ एक विद्वान आ बुद्धिमान व्यक्ति अछि, तेँ हम सोचलहुँ" कि हमहूँ एहि मामला के परखब। कतेक सच्चाई अछि।" बनिया बाजल।

'अहाँ हमर सभक पाहुन छी महोदय।' महाराज बजलाह - "अहाँक इच्छाक सम्मान करब हमर सभक कर्तव्य अछि।"

"धन्यवाद! जहाँपनाह, हमरा लग अहाँ जे लकड़ीक बक्सा देखैत छी ताहि मे एकटा विचित्र चीज अछि। जँ अहाँक दरबार मे कियो बुद्धिमान ई बात कहि सकैत अछि जे ओ चीज की अछि तऽ हम ओकरा बहुत रास हीरा आ गहना पुरस्कृत में देब।" बनिया दरबार दिस तकलक।

"महोदय, ओहि बात मे की विचित्रता छैक?"

"ओ एकटा अद्भुत छथि। ओकरा सँ हम बिना बीया, बिना पानि आ बिना माटि के गाछ उगा सकैत छी।"

सभ दरबारी आश्चर्यचकित भऽ गेलाह। महाराज स्वयं सेहो आश्चर्यचकित छलाह।

आश्चर्य! नै देखल आ नाइ सुनल। बिना बीया के गाछ कोना संभव अछि? आ ओहो जमीन आ पानि के बिना एहन बात के कल्पना नहि कयल जा सकैत अछि।

"मुदा महाराज, हमर दावा ओतबे सत्य अछि जतेक सत्य जे हम अहाँक सोझाँ ठाढ़ छी। बनिया बाजल - "आब हम देखए चाहैत छी जे अहाँक दरबार मे एहन इल्मगिर के अछि जे एहि बक्सा के खोलने बिना ओहिमें बंद ओहि चीज के पहचान कऽ सकै"।सभ दरबारी एक-दोसराक मुंह ताकय लागल।बनिया एकटा अजीब आ कठिन पहेली पुछने छल।  

गोनू झा सेहो दरबार मे छलाह आ बुझि गेलाह जे बनियाक पहेलीक अर्थ सरल नहि अछि। दरबारक सभ विद्वान सेहो असमंजस मे पड़ि गेलाह। तखन गोनू झा ओहि स्थिति केँ सम्हारलनि।

"महोदय, जेना महाराज कहने छथि जे अहाँ हमर सभक पाहुन छी।"  गोनू झा विनम्रतापूर्वक बजलाह- "तऽ आइ अहाँ हमरा सभ केँ सत्कार करबाक अवसर दिअ आ काल्हि अहाँक प्रश्नक उत्तर भेटत।"

"नीक बात अछि। मुदा हम ई बक्सा अपने संग राखब जाहि सँ कियो एकरा खोलय कऽ बुईझ नै लै जे एहि मे की अछि।"

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"महोदय, हम तऽ इहो चाहय छी जे आइ राति एहि बक्सा पर  अहाँक ताला'क अतिरिक्त एहि शाही ताला सेहो रहबाक चाही जाहि सँ अहाँ एकरा बदैल नै दि।"

मिथिला नरेश बुझि गेल जे गोनू झा कोनो युक्ति सोचने छथि। महाराजो सेहो ओकर बातक समर्थन केलनि। बनिया मानि गेल। राजसी ताला लगा कऽ ओकर चाभी स्वयं महाराज लग रखी देल गेल।।

"पंडित जी।'  महाराज अगिला आदेश देलनि - 'हम चाहैत छी जे अहाँ राजपाहुनक देखभाल करी, मोन राखू जे हुनका सभ केँ कोनो तरहेँ कष्ट नै होइन।

"आज्ञा शिरोधार्य अछि महाराज।"

फेर गोनू झा बनियाक संग अपन आवास पर आबि गेलाह। मिथिला में हुनका राज्य दिसन सं भवन भेटल छलनि। ओतय हर सुविधा छल आ आन सुविधा लेल बस सेवक के आदेश देबाक देरी होइत छल। गोनू झा व्यवसायी लेल भव्य भोजनक व्यवस्था केलनि। हुनकासँ गप्प करैत रहलाह।   व्यवसायी कियाकि देश-विदेश यात्रा करैत रहैत छल तऽ ओकरा सेहो गप्प करबाक बहुते सऽख छल, हुनका सेहो चीज-वस्तुक बहुत शौक छलनि।भोजनक बाद सुतबाक लेल गद्देदार बिछाओन छल।  सुतबासँ पहिने सेहो दुनू गोटे एक दोसरासँ बतियाइते छलाह ।

"महोदय, ईरान मे तेल के बेसी कारोबार अछि।"  गोनू झा पुछलखिन - "तऽ की अहाँ सेहो देश-विदेश मे तेल बेचैत छी."

"नै महोदय। हम तऽ मात्र ओहि गाछ केँ बेचैत छी जकर बीया नहि होइत छैक, जकरा रोपबाक लेल जमीन मे खोदबाक आवश्यकता नहि छैक।"

"तऽ की अहाँक ई गाछ राति मे सेहो उगैत अछि?"

"सच पूछू तऽ ई गाछ रातिये में ऊइग के सुन्दर लगैत अछि।"

"अच्छा! एकर आयु तऽ कमे होइत हैत। 

"हँ यौ। खैर, अहाँ हमरा कनि बेसी बुद्धिमान बुझाइत छी। अहाँक विचारे हमर प्रश्नक उत्तर के द' सकैत अछि?"

"महोदय, संसार मे कोनो प्रश्न नहि होइत छैक जकर जवाब नहि छैक। हम अहाँक प्रश्नक उत्तर बुझबाक प्रयास कऽ रहल छी।"

"कठिन अछि साथी। अच्छा, आब आराम करी।"

 "ठीक छै महोदय।"

ओहि राति गोनू झा शान्तिपूर्वक सुति गेलाह, कारण हुनका बुझल छलनि जे ओहि बक्सा मे की अछि।  ओ ओहि गाछ केँ चिन्ह गेलनि जे बिना बीया, जमीनक ऊपर आ बिना पानि के जन्म लैत अछि।

भोर भेला पर व्यवसायी आ गोनू झा अपन दिनचर्या सं निवृत्त भऽ जलखई कऽ दरबार चलि गेलाह।  बनिया अपन बक्सा अपने संग लऽ गेल।

"त पंडित जी, अहाँ केँ कोनो अंदाजा अछि की?"  बनिया मुस्कुराइत पुछलकै।

"आब हम दरबार मे जेबाक बादे कहब। भऽ सकैत अछि जे हमर जवाब गलत हो। पहिने इ तऽ देख ली जे शायद कोनो आन विद्वान अहाँक प्रश्नक समाधान कऽ देने होथि।"

 "ओना, हम अहाँ केँ एकटा सुझाव दऽ सकैत छी। एहिमे हमरा दुनू गोटे'कऽ फायदा अछि।"

"अहाँ व्यापारी छी। मुनाफाक सोचब अहाँक काज अछि।"

"सैह तऽ। एना करय छी जे हम अहाँक अपन प्रश्नक उत्तर बता दैत छी। अहाँ दरबार मे बता देबय तऽ अहाँक धाक जमि जायत।"

"अहिसे अहाँ केँ कोना फायदा होयत?"

"ई होयत जे हम जे मुंहमांगल इनाम देब, ओ अहाँ  अहाँ बेसी नै माँगब। हमर धन सेहो बचि जायत।"

"महोदय, ई भारतक भूमि थिक। एतय बेईमानी नै चलैत अछि। एतय ज्ञानक मोल होइत छैक। अहाँक ई सुझाव हमरा किछु प्रतिष्ठा आ अहाँके किछु धन अवश्य देत, मुदा एहि सँ हम स्वयं अपने नजैर मे खसि पड़ब आ मिथिला अहाँक दृष्टि में ज्ञान हीन भऽ जायत। बेसी नीक यैह जे अहाँक प्रश्नक उत्तर बुद्धिपूर्वक देल जाय।

"वाह, अहाँ नीक लोक छी।" बनिया कहलक - "अहाँ मे बुद्धिक संग-संग अपन माटि सँ प्रेम सेहो अछि। हमरा आशा अछि जे मिथिला सँ घुरला पर हम अहाँ केँ सदिखन मोन पाड़ब।"

एहिना गप्प करैत-करैत दुनू गोटे दरबार पहुँचि गेलाह। दरबार सैज गेल छल। महाराज अपन सिंहासन पर विराजमान छलाह। व्यापारी जइते  प्रणाम कऽ अपन स्थान पर बैसि गेल। गोनू झा सेहो जखन महाराज के मुस्कुराइत अभिवादन केलनि तऽ महाराज के चेहरा खुशी सं खील गेलैन्ह। ओ बुझि गेलाह जे गोनू झा व्यापारीक प्रश्नक उत्तर चतुराई सँ ताकि लेने छथि ।

"जेना कि काल्हि दरबार मे ईरानक व्यापारी एकटा अचरज भरल सवाल पूछने छल। तखन की मिथिलाक कोनो विद्वान एकर जवाब जानि सकल छथि?"  महाराज सब दरबारी सँ पुछलखिन।

सभ दरबारी बामा-दहिना झांकय लगलाह।

"तऽ कियो नहि बता सकैत अछि जे हुनकर बक्सा मे की अछि जे बिना बीया, बिना पानि आ बिना जमीन मे रोपने बिना गाछ उगैत अछि।"

'अवश्य महाराज !' गोनू झा बजलाह- 'अहाँक कृपा सँ हम बुझि गेलहुँ जे हुनकर बक्सा मे की अछि, जँ अहाँ अनुमति हो तऽ उत्तर देल जाय।'

"अवश्य देल जाऊ।"

"ओहि सँ पहिने हम व्यापारी महोदय सँ एकटा प्रश्न पूछय चाहब। महोदय, अहाँ ओ विचित्र गाछ सबेदिन उगाबैत हैब। तऽ' की अहाँ अपन गाछक नाम बुझल छी। आब ई नहि सोचू जे हम अहाँ सँ नाम जान' चाहैत छी। हम तऽ अहाँक गाछक नामकरण स्वयं कऽ रहल छी। अहाँक गाछक नाम अछि 'उजाल'कऽ गाछ'। कहू हमर बात सत्य अछि।'

'मरहबा! आइ धरि हम स्वयं एहि गाछक एतेक नीक नाम नहि सोचि सकलहुँ ।

"महाराज, एकर बक्सा मे आतिशबाजीक समान छैक। जखन ओ ओहि सँ बनल विस्फोट करैत छैक तखन ओकर डारि आकाश मे गाछ जकाँ छिड़िया जाइत छैक आ रोशन भऽ जाइत छैक। आब बक्सा खोलि कऽ देखू जे हमर जवाब सही अछि वा गलत।"

"बिल्कुल ठीक!" बनिया बाजल- "अहाँ सत्ते बुधियार छी। हम मानैत छी जे मिथिलाक दरबार मे ज्ञानक कोनो कमी नहि अछि। अहाँ जे पुरस्कार चाहब से ल' सकैत छी। हमरा बहुते खुशी हैत।"

"हम इनाम मे मात्र एकटा आना मांगैत छी महोदय।"  गोनू झा बजलाह।

व्यापारी आश्चर्यचकित भऽ गेल। गोनू झा हुनका देखा देने छलाह जे मिथिलाक धरती पर लोभक कोनो काज नहि अछि। ओ एक आना तऽ देबे केलक मुदा अपन खुशी सँ गोनू झा केँ एतेक इनाम देलनि जे सब दरबारीक कलेजा पर साँप रेंगय लागल।

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