Aarti Janak Nandani Site Lyrics
आरती जनक नन्दिनी सीते, आरती जनक नन्दिनी सीते।
कोटि यज्ञ तप भूमि सुता, मिथिलाक माटि बनि गेल पुनीते।
आरती ..............
महालक्ष्मी श्री जगदम्बा, जन - जनहित अवतरलहुँ अम्बा,
धन्य कयल कण - कण अवनी के।
आरती ............
राम वाम दिस कयल निवास, जीव सदा अपने घर आसे,
साधु संतजन हृदय समीपे।
आरती ............
दया अहँक जकरा अछि भेटल, से सभ दुर्गुण अपन समेटल,
सिद्धि सकल मिथिलाक महीके।
आरती .............
अहिंक दया पाओल बजरंगी, राम भक्तिमय, भक्तक संगी,
से सभ सद्गुण देल अहीं जे।
आरती ............
सिया राममय सभ जग जानी, करी प्रणाम जोरि युग पाणी,
पंक्ति पुनीत थिकनि तुलसी के।
आरती .. ........
वाल्मीकि कवि कहल मैथिली, अवधवधू, मिथिलाक थिकहुँ घी,
पुत्र प्रदीपो चरण समीपे।
आरती जनक नन्दिनी सीते! आरती जनक नन्दिनी सीते!
गीतकार: मैथिली पुत्र प्रदीप (प्रभुनारायण झा)
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