जय जय गिरिश रमणि जगदम्बे
गणपति जननी माई
असुर प्रताड़ित सुर नर सुमिरल
भेलहुँ काली भवदायी
भेलहुँ अवतरित चारि भुजा सं,
खड़कही दुष्ट संघारी
भेलहुँ अवतरित चारि भुजा सं,
खड़कही दुष्ट संघारी
रुद्रीपान करिइयो मन्डही सं,
मुंड माल रचाबी
जय जय गिरिश रमणि जगदम्बे
गणपति जननी माई
साधक जन सेवल तुअह निशि,
तहर दुखक माँ अंत करि
साधक जन सेवल तुअःह निशि,
तहर दुखक माँ अंत करि
उपवासित रहि सेवव अहाँ के,
तकरो कनी ध्यान करि
जय जय गिरिश रमणि जगदम्बे
गणपति जननी माई
परम् उपेक्षित सब सेवक गण,
अहीँक चरण में वास करत
परम् उपेक्षित सब सेवक गण
अहीँक चरण में वास करत,
पूरन करि सब काज साधक के,
शंकर अहिं केर ध्यान धरतही
जय जय गिरिश रमणि जगदम्बे
गणपति जननी माई
असुर प्रताड़ित सुर नर सुमिरल
भेलहुँ काली भवदायी
गीतकार: आचार्य शंकर झा
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