जय दुर्गे दुर्गति नाशिनि माँ आबहु नयन उघारू।
जँ कतबो अपराधी तैयो निज जन जानि उबारू।
जगक प्रपंच विषय-इर्ष्यादिक बनल हमर अछि साथि।
मद ममता जढता सबसँ अछि घेरल बेढल छाति।
लोभ घृणा केर घोर उधि सँ जल्दी पार उतारू॥
जय दुर्गे दुर्गति नाशिनि माँ आबहु नयन उघारू।...
क्षुद्रासा तृष्णा केर बस मे फँसि रहलहुँ दिन-राति।
अहाँक सिनेह-नेह बिनु अम्बे जड़त न दीपक बाती।
जननी ज्योति दए आईहृदय केर तम कुहेस केँ फारू।
जय दुर्गे दुर्गति नाशिनि माँ आबहु नयन उघारू।...
जग कहइत अछि काली-कारी, जदपि सिनेहक लाली।
सज्जन जन हित ममता राखी दुर्जन हेतु भुजाली।
'प्रदीप' महाविद्यादस अम्बे जगक विपतिसबटारू।
जय दुर्गे दुर्गति नाशिनि माँ आबहु नयन उघारू॥
गीतकार: मैथिली पुत्र प्रदीप (प्रभुनारायण झा)
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