झीलमिल झीलमिल करे तरेगन, मिथिला स्वर्ग समान छै।
सिया धिया छै जहि धरती पर, दुल्हा जी श्रीराम छै।
रंग-बिरंगक पोखैर-झाखैर, बगिया बड़ अनमोल छै।
सामा-चकेबा, भरदुतिया-खड़दजितिया केर बड़ मोल छै।
हरियर -हरियर पियर-पियर, जामुन आम लताम छै।
सिया धिया छै जहि धरती पर, दुल्हा जी श्रीराम छै।
'अटकण-मटकण, दहियाँ-चटकण' फकरा मे अनुराग छै।
सब तीमन-तरकारी सँ बढ़ि, बाँड़िक पटुआ साग छै।
कल-कल कमला, कह-कह कोसी, गंगा सन गतिमान छै।
सिया धिया छै जहि धरती पर, दुल्हा जी श्रीराम छै।
नीरज, भाणि, जनक विदेहक, विद्यापति केर धाम छै।
मिथिला केर जन-जन में औखन, मधुपक रचना गान छै।
नील गगन में दीप 'प्रदीपक', शरद इजोरिया चान छै।
सिया धिया छै जहि धरती पर, दुल्हा जी श्रीराम छै।
गीतकार: मैथिली पुत्र प्रदीप (प्रभुनारायण झा)
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