शुक्रवार, 21 अगस्त 2020

कान्ह हेरल छल मन बड़ साध - लिरिक्स

Kanha Heral Chhal Man Bad Saadh
रचनाकार - श्री विद्यापति

कान्ह हेरल छल मन बड़ साध।
कान्ह हेरइत भेलएत परमाद।।

तबधरि अबुधि सुगुधि हो नारि।
कि कहि कि सुनि किछु बुझय न पारि।।

साओन घन सभ झर दु नयान।
अविरल धक-धक करय परान।।

की लागि सजनी दरसन भेल।
रभसें अपन जिब पर हाथ देल।।

न जानिअ किए करु मोहन चारे।
हेरइत जिब हरि लय गेल मारे।।

एत सब आदर गेल दरसाय।
जत बिसरिअ तत बिसरि न जाय।।

विद्यापति कह सुनु बर नारि।
धैरज धरु चित मिलब मुरारि।।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अपन रचनात्मक सुझाव निक या बेजाय जरुर लिखू !