Ram Hamare Thik Thiki Hamare Siya
राम हमरे थिका, थिकी हमरे सिया,
तखन चिंता कथु के कियै हम करी ?
सबसँ पावन धरा मे हमर मिथिला,
आन तीर्थक भरोसा कियै हम करी ?
जेहिठा गंगा बहथि कोशिको नित हँसथि,
संग कमला बलानो मगन मे रहथि ?
हम लखनदेड़ गंडक के बिसराय कऽ,
आन सरिताक भनिता कियै हम करी ?
योग जप मे सदा अग्रणी नाम अछि,
माटि हमरे छबो दर्शनक धाम अछि।
छथि भगिनमान हनुमान लव-कुश जत,
आन शौर्यक भरोसा कियै हम करी ?
स्वच्छ स्वर्गहुँ सँ बेसी सुकोमल सुगम,
पुण्य बासक बेगरते एही ठाँ रहू।
राम सीता 'प्रदीपित' रहइ छथि मगन,
छोड़ि मदमोह हिनके अपन दुःख कहू।
रचनाकार: मैथिली पुत्र प्रदीप (प्रभुनारायण झा)
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