पारम्परिक मैथिली सोहर गीत
पातरि धनि सुकुमारी कि
पिया के दुलारी रे
ललना रे, अंग लगाए पिया पूछथि
कौने रंग बेदन रे
देह मोरा कांपए गहन जंका
केश भुइययां लोटू हे
आहे, धरती लागए असमान
नयन नहीं सूझत हे
कथि लये बाबा बियाहलनि
पिया घर देलनि रे
ललना रे, रहितौं मैं बारि कुमारी
बेदन नहीं जनितहुँ रे
जीरक बोरसी बनाइब
लौंगक पाइस रे
ललना रे, सब अभरन हम देब,
बेदन नहि बाँटब रे
जौं जनमल जदुनन्दन
खुजि गेल बंधन रे
ललना रे, खुजि गेल ब्रज केबार
कि नगर आंनद भेल रे
भल केलनि बाबा बियाहलनि
पिया घर देलनि रे
ललना रे, रहितौं मैं बारि कुमारी
होरिला कहाँ पाबितहूँ रे
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