कृष्ण ओ कृष्ण कहि ककरा पुकारब,
करब आंगन बिच सोर
मधुर वचन मोरा केये सुनाओत,
दही माखन घृत घोर
सूतल छलहुँ एकहि पलंग पर,
निन्दिया मे गेलहुँ सपनाइ
निन्दिया मे देखै छलहुँ कृष्ण के,
मुरली बसुरिया चलि जाय
मुरली सबद सुनि हिया मोर सालय,
नयना सँ झहरय नोर
भनहि विद्यापति सुनू हे राधिका,
घर घुरि आओत पिय तोर
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