बाबा अधिक भंग जनि पीबू,
जग मे हँसी करैये लोक,
पाँच जनामे मुख तेहतर, घरमे एक न दाना,
अपने मुखिया भीख मँगै छथि, और के कोन ठेकाना,
जग मे हँसी करैये लोक...,
सॉप-मयुर-मुस-बड़द बाघमे अजबे सब संघाती,
राति अन्हरिया हरपट उठलनि, घरमे दिया न बाती,
जग मे हँसी करैये लोक...,
बहुतो दीन कटै अछि कौहर, भरले भवन भरै छी,
जानि रूप अपने शंकर छी, एना किअए बिसरै छी,
जग मे हँसी करैये लोक...,
जतबे नशा पचय से पीबू, आयल आब बुढ़ारी,
स्नेहलता के स्नेह मे राखू स्नेहसिंधु त्रिपुरारी,
जग मे हँसी करैये लोक...,
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