चन्दन लकड़िया के बनल पलंगिया,
फूलन सेज बिछाय हे।
सोवन आयो छैल रामजी पहुनमा,
सिया लिये अंग लगाय हे॥1॥
फूलन सेज बिछाय हे।
सोवन आयो छैल रामजी पहुनमा,
सिया लिये अंग लगाय हे॥1॥
नवल दुलहि सिया चम्पक-कलिया,
नील कमल पहु मोर हे।
छवि माधुरी निरखत सखी लाजत,
रति रति पतिहू करोर हे॥2॥
निंदिया से मातलि बड़ि बड़ि अँखिया,
बरिसय प्रेम सिंगार हे।
एकहु बेरि नजरि जापर गई,
सोई हो जात बेकार हे॥3॥
धन्य धन्य मोरि बहिनी किसोरी,
जेही लगि पाहुन पाय हे।
चिर आनन्द रहै एही कोहवर,
मन ‘करील’ हुलसाय हे॥4॥
• रचना: बांके बिहारी झा 'करीम'
लोक धुन - ताल-जत
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