कहल महादेव हे जनक करु पुत्रेष्ठी यज्ञ
आदि शक्ति सर्वेश्वरी आदि पुरुष सर्वज्ञ
अब जाय करू हे जनक यज्ञ, ओहिसँ सर्वेश्वरि अवतरती।
अपनेकें कन्या बनि रहती, असली माता हुनकर धरती ।।
ई धुनष हमर कारण बनते, मिथिलामे दुहुक मिलैबामे ।
थिक निकट भव्य ई समय नृपति, करती बिलम्ब नहि अयबामे ।।
एतबा कहि औढरढरन भेला अन्तर्धान एम्हर,
यज्ञ के जनकजी लगला करय विधान
पाबि शिवक वरदान मगन मन, सकल प्रबन्ध करय लगला ।
विप्र-सचिव-गुरु-बन्धु बजाओल, घटना सलक कहय लगला ।।
शतानन्दजी कहल जनक सौं, राजन् एतबा काम करू।
ऋषि-मुनिगण अबिलम्ब बजाबू, यज्ञ भूमि के नाम धरू ।।
सभटा सभ सल्तनत करायब, यज्ञ और अभ्यागत के ।
भाइ कहल हम भार गर्छ छी, सभक सुपास सुस्वागत के ।।
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