कोना परिछब गे दाइ।
वर के तरफ हमरा तकलो ने जाइ ।।
बिच्छू के घौड़छा मउरिया सजाय ।
बिढ़नी के घोड़छा लवडी बनाय ।।
अयला पहिरि मुण्डमाला जमाय ।
गर्दनिमे साप रहि रहि फुफुआय ।।
ओढ़ना बघम्बर विभूति रमाय ।
एँडीमे देखियनि फाटल बेमाय ।।
संगमे भूत-प्रेत अनलनि बजाय ।
फरके परान सुखय लगमे के जाय।।
नरद कतः आइ रहला नुकाय ।
बभना के मारितौं चानी तकाय ।।
इहो थिका महादेव त्रिभुवन राय ।
चलू कपिलदेव झट परिछू जमाय ।।
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