शिवक संग होरी खेलथि पारवती।
लाल गुलाल गाल मलि गौरी,
रूसल जानि करत विनती।
शिव रिसिआय शिवा तन तोपथि,
अबिर बनाय अपन विभुती।
पिचकारी हँसि गौरि चलाबथि,
रंगसँ भीजल बुढ़बा जती।
शिव छोड़ल गंगाधार पिचकारी,
शिव सनकाह न ठीक मती।
शिवगण भागि चढ़ल गिरि ऊपर,
हँसी खेल भय गेल विपती।
दौड़ी शिवा, शिव गर लपटायलि,
चतरि गेल झट स्नेहलती।
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