श्री विद्यापति केर पूरा नाम विद्यापति ठाकुर छनि ( Mahakavi Kokil Vidyapati Thakur ) आ दोसर नाम महाकवि कोकिल। जन्म सन् 1370 सँ 1380 के मध्य। जन्म भूमि बिसपी गाँव, मधुबनी । मृत्यु सन् 1450 सँ 1460 के मध्य। अविभावक श्री गणपति ठाकुर आउर श्रीमती हाँसिनी देवी।
श्री विद्यापति भारतीय साहित्यक भक्ति परंमपराक प्रमुख स्तंभ मे सँ एक आ मैथिली के सर्वोपरि कवि केर रूप मे जानल जाइत छथि। हिनक काव्य मे मध्यकालीन मैथिली भाषाक स्वरुपक दर्शन कैल जा सकैत अछि। हिनका वैष्णव और शिव (उगना) भक्तिक सेतु के रुप मे स्वीकार कैल गेल छनि। मिथिलाके लोग के 'देसिल बयना सब जन मिट्ठा' के सूत्र दऽ उत्तरी-बिहार मे लोकभाषाक जनचेतनाक जीवित करैय के महती प्रयास केलथी।
विद्यापति जी संस्कृत, मैथिली आ अवहट्ट, प्राकृत और देशी भाषा मे चरित काव्य और गीति पद केने छथि। श्री विद्यापति जी के काव्य मे वीर, श्रृंगार, भक्ति के संगे-संग गीति प्रधानता भेटय अछि। विद्यापति केर यैह गीतात्मकता हुनका आन कवि सँ भिन्न करैत छनि। जनश्रुति के अनुसार जेखन चैतन्य महाप्रभू हिनकर पद के गाबय छलैथ, तऽ महाप्रभु गाबैत गाबैत बेहोश भऽ जाइत छलथि। भारतीय काव्य आ सांस्कृतिक परिवेश मे गीतिकाव्य के बड़ महत्व अछि, विद्यापति जी के काव्यात्मक विविधता हुनकर विशेषता अछि।
मिथिलाक लोकव्यवहार मे गावै वला गीत मे एखनो श्री विद्यापति केर श्रृंगार और भक्ति रस मे पगी रचना जीवित अछि। पदावली आ कीर्तिलता हिनक अमर रचना अछि।
जय जय भैरवी … शायद ही किओ मैथिली भाषा क्षेत्र के एहन व्यक्ति हैत जिनका जिह्वा पर इ गीत नै होय।
किछ प्रमुख रचना :-पुरुष परीक्षा, भूपरिक्रमा, कीर्तिलता, कीर्ति पताका, गोरक्ष विजय, मणिमंजरा नाटिका, गंगावाक्यावली, दानवाक्यावली, वर्षकृत्य, दुर्गाभक्तितरंगिणी, शैवसर्वस्वसार, गयापत्तालक, विभागसार आदि।
विद्यापति के किछ रचना आ नचारी
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