कमलक फूल सन हमर धीया छथि - Maithili Lokgeet
कमलक फूल सन हमर धीया छथिजोहि लेली धीया के खबास यो
चलहु के बेर अहाँ घर नहि देखलौं
धीया आगू दीया केर नहि काज यो
आनि दीअ जहर माहुर खाय हम मरबई
हति लेब अपन प्राण यौ
आगे माइ छल मनोरथ - Maithili Lokgeet
आगे माइ छल मनोरथ होयत प्रथम बर, पण्डित करब जमायआगे माइ हमर मनोरथ दैवो ने बुझलनि, जोहि लेला तपसी भिखारि
आगे माइ बेकल मनाइनि घर-घर फीरथि, आब किए करब उपाय
आगे माइ नहि ओहि बर के माय ने बाप छनि, ने छनि कुल परिवार
आगे माइ हमरो गौरी कोना सासुर बसती, के कहत निज बात
आगे माइ भनहि विद्यापति सुनू हे मनाइनि, इहो थिका त्रिभुवन नाथ
आगे माइ गौरी दाइ के यैह बर लीखल छल, लीखल मेटल नहि जाय
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