दुलहा ओते नहि लजाउ - Maithili Lokgeet
दुलहा ओते नहि लजाउ, कनी आर खाउ यौहमर कका कुमार, अहाँ काकी दियौन यौ
दुलहा ओते नहि लजाउ, कनी आर खाउ यौ
हमर भइया कुमार, अपन बहीनि दियौन यौ
दुलहा ओते नहि लजाउ, कनी आर खाउ यौ
हमर मामा कुमार, अपन पीसी दियौन यौ
दुलहा ओते नहि लजाउ, कनी आर खाउ यौ
एक बेर अपनहि सऽ - Maithili Lokgeet
एक बेर अपनहि सऽ मांगि किछु लीअ हे ललनमनसँ किए नहि जेमइ छी, से हमहूँ जनै छी
व्यंजन एको टा ने बनल बुझाइ हे ललन
एक बेर अपनहि सँ मांगि किछु खाउ हे ललन
अयोध्या थिक राजधानी से तऽ सभ जानी
मिथिला पटुआक झोर हम की दीअ हे ललन
बनल अनोन सनोन सभटा बुझब अपन
हिय किछु नहि राखब ह ललन
निरधन घर ससुरारि, किये लए करब पुछारि
सारि सरहोजिक स्नेह हियमे राखब हे ललन
एक बेर अपनहि सऽ मांगि किछु लीअ हे ललन
गारि गाबथि राजदुलारि - Maithili Lokgeet
गारि गाबथि राजदुलारि, जेमथु रामजी ललासोना के आसन रतन सिंहासन
बैसथु अवधकुमार, जेमथु रामजी लला
जेमय बैसला राम चारू भइया
होयत परस्पर गारि, जेमथ रामजी लला
खाजा हलुआ होयत जिलेबी
ताहि पर सऽ पूआ-पकमान, जेमथु रामजी लला
गारि गाबथि राज दुलारि, जेमथु रामजी लला
रूसथि रघुबर मानथि नाही
राखि लीअ नेह हमार, जेमथु रामजी लला
हीरा मोती लाल जवाहर
सम्पति सकल तोहार, जेमथु रामजी लला
गारि गाबथु राजदुलारि, जेमथु रामजी लला
शोर भयो चहुँओर जनकपुर
साजि चलल नर-नारि, जेमथु रामजी लला
गारि गाबथु राजदुलारि, जेमथु रामजी लला
आजु हमर बड़ भाग रे - Maithili Lokgeet
आजु हमर बड़ भाग रे पाहुन एला भगवान रेपाहुन एला भगवान रे थार भरल पकवान रे
सागहि भोजन आधारे मधुमिसरिक संचार रे
मधुमिसरीक संचार रे धृतहि करू परचार रे
हम कते विचारब, गूने बूझल ऊँच-नीच रे
भनहि विद्यापति भान रे, सुपुरूष बसथि सुठाम रे
इहो पढ़ब:-
जीमथु आजु जनक जी - Maithili Lokgeet
जीमथु आजु जनक जी के आँगन दशरथ अवधबिहारी जीसगर जेमन सुर-नर किन्नर होय मधुर सुर गारी जी
छप्पन भोग छत्तीसो व्यंजन विविध भांति तरकारी जी
सुख सरसत सबरस जेमथु आनन्द चहुदिस भारी जी
कत गुण गाउ सखी समधिन केर अवधक नारि छिनारी जी
कनेक खीर पर राजी होइ छथि कामविवश महतारी जी
पाहुन भोला भंगिया - Maithili Lokgeet
पाहुन भोला भंगिया के जुनि केओ पढ़ियनु गारी हेशिव तन पर सँ सांप ससरि खसि खसत देत जीव मारी हे
ताकि केहन लएला मुनि नारद बूढ़ बरद असवारी हे
भूत पिशाच नगन-गण संगमे केहन बघम्बर धारी हे
कान कुण्डल गले रूद्रमाला भाल चन्द्र छवि न्यारी हे
डामरु धारी सभ भिखारी धथुर भांग अहारी हे
काशी ओ कैलाश बिहारी नाम हुनक त्रिपुरारी हे
पाहुन शिव त्रिभुवनपति जुनि गाउ अनट अचारी हे
इहो पढ़ब:-
आसन पर बैसू गिरधारी - Maithili Lokgeet
आसन पर बैसू गिरधारी सुनू विनती हमारी जीथारी मे भात सांठल अछि बाटी मे दालि राखल
ताहि ऊपर धृत ढ़ारी, सुनू विनती हमारी जी
ओल - परोर बड़ी - बड़ भटबड़
तरह-तरह तरकारी, सुनू विनती हमारी जी
तरल रहू मांगुर झोराओल
छागर मारि कयलनि, ससुर तइयारी जी
कहथि विद्यापति विनती रुचिसँ जेम लालन
भेटली राधा सन प्यारी, विनती हमारी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
अपन रचनात्मक सुझाव निक या बेजाय जरुर लिखू !