भोरक समय छल। गोनू झा ने नित्य-क्रिया सं निवृत्त होयबाक लेल लोटा ताकलथी। तत्काल नै भेटलनि, तऽ नदी काते चैल गेलाह।
नदी नमहर छल। एक दिसन ओ शौच-क्रिया सं निवृत भऽ रहल छलैथ तऽ दोसर दिसन एकटा जाहिल सेहो ओहि काज मे लागल छल। एक-दोसर पर नजैर पड़ल। गोनू झा उठय लगलैथ तऽ देखलखिन जे ओ नदी काते बैसल छल। मोन मे एलैन जे ओकरा सं पहिले उठला पर ओ बुझत जे केहन पंडित छैक? हमरा सं पहिले उइठ गेलय। इ बात सोइच बैसले रहला।
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ओमहर ओ सोचलक जे पहिले उइठ गेला पर गोनू झा सब कऽ कहैत फिरथिन जे आखिर जाहिले छियै न?
दुनु एक-दोसर कऽ पहिले उठबाक प्रतीक्षा करैत रहल। मध्याहन भ गेल। फेरो कियो उठबाक नामो नै लऽ रहल छल। अंततः ओहि मूर्ख सं नै रहल गेल।पत्नी कऽ अबाज लगेलक, बिरछी माय, आय खेनाइ एतय लेने आयब आ खुआओ देब। आय पंडित जी के हरेनाय छै।
गोनू झा ताबे धरि अकच्छ भ चुकल छलाह आ इ सुइन हताश भऽ गेला। हुनका पछतावा होमय लगलैन जे कोन मूर्ख सं बाजी लगेलौं?
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अंत मे गोनू झा इ कहैत पहिले उइठ गेला, 'जो रे जाहिल, तुहैं जीतलें या हमहि हारलौं।
किंवदंती ऐछ जे यैह हाइर गोनू झा के प्राणांत के कारण बनलनी।
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