सोमवार, 20 दिसंबर 2021

गोनू झा के किस्सा : जाहिल के फेरा

जनश्रुति अछि जे गोनू झा के प्रत्युत्पन्न बुद्धि सं प्रसन्न भऽ के भगवती वरदान देने छलखिन जे ओना तऽ हिनका तर्क मे कियो नै हरा सकत आ हाइर गेला पर हिनकर प्राणांत (मृत्यु) भऽ जायत।

भोरक समय छल। गोनू झा ने नित्य-क्रिया सं निवृत्त होयबाक लेल लोटा ताकलथी। तत्काल नै भेटलनि, तऽ नदी काते चैल गेलाह।

नदी नमहर छल। एक दिसन ओ शौच-क्रिया सं निवृत भऽ रहल छलैथ तऽ दोसर दिसन एकटा जाहिल सेहो ओहि काज मे लागल छल। एक-दोसर पर नजैर पड़ल। गोनू झा उठय लगलैथ तऽ देखलखिन जे ओ नदी काते बैसल छल। मोन मे एलैन जे ओकरा सं पहिले उठला पर ओ बुझत जे केहन पंडित छैक? हमरा सं पहिले उइठ गेलय। इ बात सोइच बैसले रहला। 

इहो पढ़ब:-

ओमहर ओ सोचलक जे पहिले उइठ गेला पर गोनू झा सब कऽ कहैत फिरथिन जे आखिर जाहिले छियै न?

दुनु एक-दोसर कऽ पहिले उठबाक प्रतीक्षा करैत रहल। मध्याहन भ गेल। फेरो कियो उठबाक नामो नै   लऽ रहल छल। अंततः ओहि मूर्ख सं नै रहल गेल।पत्नी कऽ अबाज लगेलक, बिरछी माय, आय खेनाइ एतय लेने आयब आ खुआओ देब। आय पंडित जी के हरेनाय छै। 

गोनू झा ताबे धरि अकच्छ भ चुकल छलाह आ इ सुइन हताश भऽ गेला। हुनका पछतावा होमय लगलैन जे कोन मूर्ख सं बाजी लगेलौं?

इहो पढ़ब:-

अंत मे गोनू झा इ कहैत पहिले उइठ गेला, 'जो रे जाहिल, तुहैं जीतलें या हमहि हारलौं।

किंवदंती ऐछ जे यैह हाइर गोनू झा के प्राणांत के कारण बनलनी।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अपन रचनात्मक सुझाव निक या बेजाय जरुर लिखू !