सोमवार, 22 अगस्त 2022

यज्ञोपवीत ब्रह्म सूत्र - मिथिलाक जनेऊ धारण, मंत्र और लाभ

सनातन संस्कृति के तीनटा प्रमुख उदगम स्थल मे मिथिला, काशी, उज्जैन जाहिमे वैदिके काल सं मिथिलाक अनुपम स्थान रहल अछि। शास्त्रीय वैदिक कर्मकांडक अनुसार मिथिलाक सांस्कृतिक व्यवहार के श्रेष्ठता विरासत सं प्राप्त अछि आ इ आदि शक्ति के जन्मभूमि हेबाक कारणो विख्यात अछि। वैदिक पद्धति सं उपनयन संस्कार सम्पन्न करबाक पश्चात् एतय यज्ञोपवीत धारण करबाक अधिकार प्रदान कैल गेल अछि। एहि अधिकार के प्राप्त करबाक उपरांते मनुष्य ब्रह्मत्व प्राप्ति के दिस अग्रसर होइत अछि। एहिके पश्चात् देवकर्म, पितरकर्म, पूजा पाठ, यज्ञकर्म करबाक अधिकारी बनैत अछि। आध्यात्मिक दृष्टिकोण सं यज्ञोपवीत उपनयन संस्कार के अति विशिष्ट महत्व अछि। मिथिला क्षेत्र मे वैदिक काले सं गोसाओनि पूजा, मुण्डन, उपनयन, विवाह, यज्ञ अनुष्ठान एवं पितर कर्म आदि मे जनेऊ के महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त अछि।

जनेऊ बनेबाक कला मे मिथिला के महारथ प्राप्त अछि। एतय के बनायल गेल यज्ञोपवीत के श्रेष्ठ कहल जाइत अछि। यज्ञोपवीत कपास के रुइ सं विशेष विधि सं ग्रन्थित क के बनायल जाइत अछि। एकर संरचना मे नौ सूक्ष्म सूत सं एकटा सूत्र बनायल जाइत अछि आ इ कम सं कम एकैस (21) फुट लंबा हेबाक चाहि। एहि विशिष्ट एक सूत्र के तीनबेरा लपेट क तीन तानी बना क वाजसनेयि ब्राह्मण पाँच गाँठ तथा छन्दोग ब्राह्मण के द्वारा तीन गाँठ देल जाइत अछि जेकरा प्रवर कहल जाइत अछि। मिथिला मे वाजसनेयि ब्राह्मण आ छन्दोग ब्राह्मण के अपना विशेष गौरव गाथा अछि।
शास्त्रानुसार वेद के जाहि ॠचा के निर्माण पाँच व्यक्ति मिल क कैल गेल हुनका वाजसनेयि ब्राह्मण आ जिन ॠचा के निर्माण तीन व्यक्ति मिल क केलक हुनका छन्दोग ब्राह्मण कहल जाइत अछि। यज्ञोपवीत के तीन तानी के सूत्र हिंदू त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनु के प्रतीक कहल गेल अछि।अहि प्रकार तीन तानी के दु टा तैयार यज्ञोपवीत एकटा जोड़ा ब्रह्म सूत्र कहैत अछि जेकरा उपनयन संस्कार सं संस्कारित हेबाक बाद धारण करबाक विधान अछि। अभिमंत्रित कैल गेल जनेऊ बाँया कन्धा सं ल के दाहिना दिस डार सं लगभग छह इंच नीचा धरि लटका क पहिरबाक विधान अछि अपवित्र भेलाह पर यज्ञोपवीत बदैल लेल जाइत अछि, बिना यज्ञोपवीत धारण केने अन्न जल गृहण नै कैल जाइत अछि।



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