हे अम्बे आबहुँ पलक उठाउ
हम अबोध सुत अम्ब अहाँ के
छोरी ने ककरो जानी
घुर फिर कऽ अपने लग आबि
ठोही पैर कऽ कानी
बैसलौ किया अनठा क अपने
ककरा लग हम जाउ
हे अम्बे आबहुँ पलक उठाउ
निरबुधिया के ऐ दुनिया
ककरहु सं नही नाता
सगरो जग सं घुरि कऽ आबि
अहिं के सरण में माता
जन्म जन्म के जौं अपराधी
सोंझा सं नै भगाउ
हे अम्बे आबहुँ पलक उठाउ
कुयो भजै छैथ जय श्री राधे
कियो जपत जय सीता
कियो पढ़थ सब दिन रामायण
कियो पढ़ै छैथ गीता
कियो पुराण पुराणे गावथी
हम की गाबि सुनाउ
हे अम्बे आबहुँ पलक उठाउ
हे राधे सब शक्ति अहिं छी
श्री लक्ष्मी गायत्री
गंगा तुलसी सरस्वती
दुर्गे माँ धारित्री
काली तारा मंगल चंडी
मन सं माँ अपनाउ
हे अम्बे आबहुँ पलक उठाउ
जहिये अहाँ करायब अम्बे
परिचय परम् पिता सं
तहिये सब किछु जानि सकब
अपनेक प्रदीप प्रभा सं
युग युग सं भटकैत जीव कऽ
चिनमय बाट दिखाउ
हे अम्बे आबहुँ पलक उठाउ
गीतकार: प्रभु नारायण झा (मैथिली पुत्र प्रदीप)
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