हे हर विपति पड़ल सिर भारी
अन्न-बसन बिनु तन-मन बेकल,
पुरजन भेल दुखारी हे
हर विपति पड़ल सिर भारी
अपन कि आन कान नहि सूनय,
गूनय जानि भिखारी हे
मंगने कहय हाथ अछि खाली,
रहितो द्वार बखारी हे
गंग नियर बसु गायब हम
हँसि बनब जे तोर पुजारी हे
अछैत मनोरथ सभ भेल बेरथ,
बनलहुँ अन्त भिखारी हे
लिखल-पढ़ल कत बात गढ़ल कत,
किछुओ ने भेल हितकारी हे
शशिनाथ माथ पद टेकल,
आबहु लएह उबारी हे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
अपन रचनात्मक सुझाव निक या बेजाय जरुर लिखू !