शनिवार, 21 सितंबर 2024

जगदम्ब सम्हारू पतित जन के लिरिक्स - Jagdamb Samharu Patit Jan Ke Lyrics

जगदम्ब सम्हारू पतित जन के
जगदम्ब सम्हारू पतित जन के
अवलम्ब अहिं एक वैथित मन के
क्षमा करू, क्षमा करू
क्षमा करू अपराध पतित जन के
अवलम्ब अहिं एक वैथित मन के
अवलम्ब अहिं एक वैथित मन के

छी ठुकरायल जग सं माते
चरण शरण हम आयल
कैल गेल अपराध अनेको
चरण शरण हम आयल
क्षमा करै छी , क्षमा करै छी...
क्षमा करै छी अपन जन के
अवलम्ब अहिं एक वैथित मन के
अवलम्ब अहिं एक वैथित मन के

काली लक्ष्मी कल्याणी छी
तारा माँ जगदम्बे 
सरस्वती जगजननी सीता
हमर मात अवलम्बे
कोरा उठाबू, कोरा उठाबू...
कोरा उठाबू टुअर जन के
अवलम्ब अहिं एक वैथित मन के
अवलम्ब अहिं एक वैथित मन के

जो नै सुनब पुकार हमर माँ
आब कहु कहाँ जायब
गुज-गुज सगर अन्हार जगत अछि
ठार कतय हम पायब
रक्षा करै, रक्षा करै...
रक्षा करै अपन जन के
अवलम्ब अहिं एक वैथित मन के
अवलम्ब अहिं एक वैथित मन के

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